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Tuesday, November 20, 2012

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रेट एग्जम्टेड की सीटो पर आरक्षित श्रेणी का कोटा लागू कराने के लिए किये गए संघर्ष की एक रिपोर्ट :



गत 16 नवम्बर , दिन शुक्रवार को नेट व् जे आर ऍफ़  क्वालीफाई कर चुके sc-st-obc वर्ग के छात्र -छात्राए bhu के हिंदी विभाग  में उस वक्त धरने पर बैठ गए जब उन्हें पता चला की रेट एग्जम्टेड  की सितो पर आरक्षित वर्ग के लिए  कोटा लागू नहीं किया गया है। पहले तो विभागाध्यक्ष  प्रो .बलराज पांडे से मिलकर यह निवेदन किया की सभी 38 सितो जिन पर सामान्य भर्ती  की गयी है उन पर अरक्षित श्रेणी के लिए कोटा लागु किया जाये। लेकिन प्रो . बलराज पांडे ने कोटा लागु करने से यह कह कर इंकार कर दिया की यु जी सी  से जो निर्देश आये  है उनके तहत रेट एग्जम्तेद की सितो पर कोटा देने का कोइ प्रावधान नहीं है। इसके बाद भगत सिंह छात्र मोर्चा और अनुसूचित जाति -जन जाति छात्र संगठन के सयुंक्त  नेत्रित्व में आरक्षित श्रेणी के छात्र-छात्राए हिंदी विभाग के सामने ही धरने पर बैठ गए। लगभग दो घंटे तक धरनारत छात्रो द्वारा नारेबाजी करने के बाद अपनी किरकिरी होते देख विभागाध्यक्ष प्रो . बलराज पांडे , प्रो .अवधेश प्रधान सहित अन्य सिक्षाको के साथ धरना दे रहे छात्रो के पास आये। पहले तो इन लोगो ने धरनारत छात्र -छात्राओ को समझाने-बुझाने की कोशिश की लेकिन छात्र-छात्राओ द्वारा कड़ा प्रतिवाद करने पर अंततः इन्हें झुकना पड़ा और यह कहना पड़ा की कल sc-st-obc आरक्षित सीटो पर कोटा दिया जायेगा और संशोधित सूचि निकली जायेगी। अगले दिन संशोधित सूचि निकली गयी जिसमे सीटे 38 से बढाकर 62 कर दी गयी ताकि पहले द्वारा सामान्य वर्ग के चुने गए छात्रो को बहार न निकलना पड़े।
अब सवाल यह उठता है की एक दिन में ये अतिरिक्त साईट कहा से आ गयी ? sc-st वर्ग की कुछ छात्राओ को जो जे आर ऍफ़ क्वालीफाई  है और फ़ोर  फर्स्ट क्लास भी हैउन्हें सेलेक्ट नहीं किया गया जबकि यु जी सी का ये निर्देश है की जे आर ऍफ़ को पहले वरीयता दी जायेगी। इन छात्राओ द्वारा इंटरव्यू और सेलेक्शन में पारदर्शिता न होने का आरोप लगाने पर विभाग के कुछ सिक्षाको और कर्मचारियों द्वारा यहाँ तक  कहा गया की जे आर ऍफ़ निकालने से क्या होता है ,जाओ जाकर घास गढ़ो।
धरने पर बैठी छात्राएं और छात्र
तमाम छात्र -छात्राओं का यह आरोप है की इंटरव्यू में बड़े पैमाने पर मनमानी की गयी है न केवल sc-st-obc बल्कि सामान्य वर्ग के छात्रो के साथ भी नाईन्शाफी  हुई है . बहुत से छात्र -छात्राओं द्वारा यह आरोप लगाया गया की इंटरव्यू में उनकी जाती पूछी गयी st वर्ग की एक छात्रा ममता ने जो की काफी गरीब घर से आती है और काफी मेहनत करके अपनी पढाई जारी राखी हुई  है आरक्षित वर्ग के लिए कोटा न लागू होने की वजह से  दुखी होकर विभागाध्यक्ष को आत्मदाह की  लिखित धमकी दी। यह कहना आशान है की आत्मदाह की धमकी देना गलत है ,इससे गलत सन्देश जाएगा , यह कमजोरी का परिचायक है लेकिन उस छात्रा का दर्द महसूस करना कठिन है जो बेरोजगारी और तंगहाली के इस दौर में एक गरीब ,दलित परिवार की होकर भी यहाँ तक पहुची है। यहाँ तक कहा गया की ''सेलेक्सन से क्या होता है गाईड तयं करेगा किसको लेना है और किसको नहीं। विश्वविद्यालय उच्चतर ज्ञान उत्पादन  का केंद्र होता है , हम अयोग्य लोगों को रिसर्च नहीं करायेंगे छाहे वो किसी वर्ग के हो।अयोग्य लोग   m.a.पास कर लिए है इतना ही काफी है। '' आरक्षण के लिए संघर्ष के पीछे यही विचार था किकम्जोर वर्ग के छात्रो को थोडा अतिरिक्त अवसर देकर उन्हें उच्च शिक्षा व् नौकरियों तक पहुचाया जा सके ताकि शिक्षा ,संस्कृति व् अन्य छेत्रो में वो भी अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व कर सके/
स्वाभाविक है आरक्षित श्रेणी में प्रवेश पाए छात्र अन्य छात्रो की अपेक्षा थोड़े कमजोर होंगे ही और इसके एतिहासिक कारण भी है ऐसे में यदि सभी तेज -तर्रार छात्रो को आप रिसर्च करायेंगे तो थोड़े कमजोर छात्रो का क्या होगा ? सामाजिक न्याय की संकल्पना का क्या होगा ?
इस वर्ष पुरे विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने वाले छात्रो के साथ बड़े पैमाने पर नाईन्शाफी व् मनमानी की गयी है। लेकिन हिंदी विभाग जो बी एच यूं  . में वामपंथी मूल्यों व् विचारो का केंद्र समझा जाता है , जहां इतने बड़े पैमाने पर कवी ,कहानीकार .,व् आलोचक रहते है वहां अपने ही समाज के दबे -कुचले वर्ग के छात्र-छात्राओं के साथ अन्याय काफी निराश करता है और यह स्पस्ट करता है की ब्राम्हणवादी मूल्य इन तथाकथित वामपंथी शिक्षको के भीतर गहराई से घुसी हुई है।
अब सवाल उठता है की प्रो . बलराज पांडे और प्रो .अवधेश प्रधान जैसे वरिष्ठ शिक्षक जो जन-संस्कृति मंच से भी जुड़े हुए है  क्या उनकी इतनी नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती थी की यदि आरक्षित श्रेणी को कोटा देने का निर्देश ऊपर से नहीं भी आया हो तो वो अपनी तरफ से कोशिश  करे और सम्बंधित अधिकारियो से बात करके इनका कोटा लागू  करवाए।
आखिर दो घंटे के धरने में ये कोटा कहाँ से आ गया ?,बढ़कर 62 कैसे हो गयी ?
नाईन्शाफी तो इस व्यवस्था के बुनियाद में ही है और आरक्षण भी वैसे ही है जैसे भीड़ में कुछ सिक्के उछाल कर फेक दिए जाए।

Monday, November 12, 2012

जेल से दयामनी बरला की चिट्ठी


झारखंड में ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष की अगुवा नेता और पत्रकार दयामनी बरला की ज़मानत याचिका पर कल सुनवाई नहीं हो सकी। अगली सुनवाई कल यानी 8 नवम्‍बर के लिए टाल दी गई है। कल कई राजनीतिक कार्यकर्ता उनसे जेल में मिलने गए थे। वहां से उन्‍होंने एक चिट्ठी भिजवाई है।

तुम बाहर जाकर संघर्ष करना दयामनी

राज्य के लुटेरे आज सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की नजर में देश के शुभचिंतक हैं. राज्य के संसाधनों को लूटनेवाले, मानवाधिकारों का दमन करनेवालों को सरकार और संवैधानिक संस्थाएं संरक्षण दे रही हैं और इस धरती के भूमिपुत्र/पुत्री- शुभचिंतकों को अपराधी करार दिया जा रहा है...


मैंने झारखंड की धरती को कभी धोखा नहीं दिया. झारखंड की जनता के सवालों से कभी समझौता नहीं किया. कोयल नदी, कारो नदी और छाता नदी का बहता पानी इसका साक्षी है. इस धरती के मिट्टी-बालू में अंगुलियों से लिखना सीखा. कारो नदी के तट में बकरी चराते-नदी के पानी में डुबकी लगा कर नहाते तैरना सीखा. आकाश के ओस के बूंदों से नहाये घास-फूस और पेड़-पौधों की छाया ने मुझे प्यार दिया - इसका कैसे सौदा कर सकती हूं?
ranchi-dayamani-barla-ranchi
दयामनी बारला
जिस समाज ने मुझे जीना सिखाया, उस समाज के दु:ख दर्द का साथी अपने को कैसे नहीं बनाती? इनके हक-हुकूक-जज्बातों की रक्षा करना भी हमारी (सबों की) जिम्मेवारी है. और जिम्मेवारी निभानेवालों के लिए शायद यही रास्ता है. इनके हिस्से सिर्फ संकट और परेशानी ही लिखी हुई है, यही जिंदगी का सच है. 

मैंने तो सरकार को बताने की कोशिश की थी कि आपका सिस्टम अपने नागरिकों के प्रति-अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन नहीं कर रहा है. रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्रामीणों का पलायन रोकने के लिए ग्रामीण इलाकों में ही 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराना है, जिसके लिए अनगड़ा के ग्रामीणों ने जॉब कार्ड मांगने के लिए रैली की. उन पर केस हुआ. उस आंदोलन में मेरे साथ कई साथी उपस्थित थे. सर्वविदित है मनरेगा योजना के घोटाला के बारे में. सच्चाई यही है कि ग्रामीणों को कुछ भी नहीं मिला. लेकिन, हक मांगनेवाले अपराधी करार दिये गये हैं. मैं जेल पहुंच गयी.

नगड़ी में सरकार गलत तरीके से नियम-कानून को ताक पर रख कर 227 एकड़ कृषि भूमि पर कब्जा कर रही है. सरकार को बताने की कोशिश की कि आप गलत कर रहे हैं. कानून और मानवता के आधार पर. खेती की जमीन छोड़ दीजिए और बंजर भूमि पर लॉ कॉलेज और आइआइएम बनाइए, आप का स्वागत है. हमार गुनाह बस इतना ही है. इसी अपराध में हमारे चार साथी पहले ही जेल काट चुके, कई के हाथ टूटे. आज मैं जेल में हूं.

राज्य के लुटेरे आज सरकार और संवैधानिक संस्थाओं की नजर में देश के शुभचिंतक हैं. राज्य के संसाधनों को लूटनेवाले, मानवाधिकारों का दमन करनेवालों को सरकार और संवैधानिक संस्थाएं संरक्षण दे रही हैं और इस धरती के भूमिपुत्र/पुत्री- शुभचिंतकों को अपराधी करार दिया जा रहा है. सिदो-कान्हू-बिरसा मुंडा सहित तमाम स्वतंत्रता सेनानियों को भी यही ताज पहनाया गया था.

क्या सच है, क्या गलत है, मैं नहीं समझ पा रही हूं, लेकिन यही जिंदगी की हकीकत है कि मैं आज पत्थर हो गयी हूं. पूरी दुनिया सो रही है. रात का एक बजा है अभी. बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के महिला वार्ड में बंदी भी सो रहे हैं. मैं अकेली बैठी हूं. जिंदगी में किसी के दु:ख से अपने को अलग नहीं किया. दिन हो या रात, हमेशा लोगों का आंसू पोंछने के लिए रात का अंधकार भी मेरा रास्ता कभी नहीं रोक सका. लेकिन आज मेरे पैर बंधे हुए हैं. हर आंख का आंसू पोछनेवाले हाथ जकड़ दिये गये हैं.

मेरे घर में भाभी की लाश पड़ी हुई है, मेरा परिवार भय से डूबा हुआ है और मैं जेल में निसहाय मूक-बधिर बन कर रह गयी हूं. आंख में आंसू हैं लेकिन बह नहीं पा रहे हैं. आज 6/11/12 को कोर्ट में जाना है. मुझे समझ में आ गया है कि कोई नया केस मेरे ऊपर चढे.गा, जिसके लिए मुझे कस्टडी में लिया जायेगा या रिमांड में या प्रोडक्शन वारंट जारी किया जायेगा. मैंने आज भाभी के अंतिम संस्कार माटी में शामिल होने के लिए कोर्ट को आवेदन दिया है. मुझे नहीं पता अनुमति मिलेगी या नहीं. मेरा भरोसा अब ‘भरोसा’ से भी उठ रहा है.

हां, फैसल दा, बासवी जी, नेलसन, अलोका, प्रवीण, सुशांतो, मीडिया के साथी सहित सभी साथियों (सबका नाम नहीं ले पा रही हूं जो नजदीक में हैं और दूर में हैं) ने मेरा हौसला बुलंद किया है. मेरी आंख के आंसू पोछे हैं.

जेल में बंद कई लोग दुआएं दे रहे हैं कि तुमको यहां नहीं, बाहर रह कर काम करना है. मैं कोशिश करूंगी अपने को उसी तरह खड़ा रखने की, जिस तरह नदी, नाला, पहाड़, जंगल, गांव-गांव में खड़ा होकर नारा बुलंद करते रहे हैं. हम अपने पूर्वजों की एक इंच जमीन नहीं देंगे. आशा है आज का, अभी का यह क्षण ही जिंदगी का अंतिम पड़ाव नहीं है. जब तक कोयल, कारो और छाता नदी की धराएं बहती रहेगी, जिंदगी की जंग जारी रहेगी.

आपकी बहन
दयामनी बरला
6 नवम्बर 2012, बिरसा मुंडा, केन्द्रिय काराग्रह, रांची (झारखंड)
                                                                                                                                                                                  


Saturday, November 10, 2012

बी एच यूं में ''धर्म की अवधारणा और दलित चिंतन '' पर एक दिवसीय गोष्ठी :


         पिछले 08 नवम्बर को राधाकृष्णन  सभागार में दो सत्रों में ''धर्म कि अवाधाराना और दलित चिंतन ''पर एकं दिवसीय गोष्ठी सम्पन्न हुई , पहले सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय से आये हुए सूरज बहादुर  थापा ने  कहा की दलितों की मुक्ति किसी भी धर्म में संभव नहीं है क्योकि धर्म खुद शोषण पर आधारित है इसलिए उन्हें अपनी मुक्ति सबकी मुक्ति में देखना होगा और सांस्कृतिक रूप से वैज्ञानिक चेतना एवं समाजवादी विचारधारा अपनाना  चाहिए।
      . उन्होंने रंगनायकम्मा की पुस्तक ''बुद्ध काफी नहीं,अम्बेडकर भी काफी नहीं , मार्क्स जरूरी है '' का जिक्र किया।

इस सत्र के मुख्य वक्ता  कँवल  भारती   ने वर्तमान व्यवस्था में दलित की उपेक्षा क्रन्तिकारी विचार रखा . कहा की दलित चिंतन ,चिंतन का तीसरा स्कूल है .और आज दलित ,दलित मुद्दे पर ही नहीं वह साम्राज्यवाद ,पूजीवाद ,एवं किसी भी मुद्दे पर बोल सकते है।
       अपने अध्यक्षीय व्यक्तव्य में चौथीराम यादव ने कहा कबीर अपने समय में मुल्लाओ एवं पंडितो से जबरदस्त टक्कर ली ,और मेहनतकस जनता से कहा की इनसे दूर रहे।
आखिरी सत्र में मुख्य अतिथि तुलसी राम ने कहा की ऋग्वेद धार्मिक ग्रन्थ न होकर उस समय के सामाजिक जीवन के दस्तावेज है .,जिसमे स्पस्ट तौर पर लिखा है की हम अग्नि की पूजा इसलिय करते है क्योकि वह हमारे दुश्मनों को जलाने का काम करती है , गौतम बुद्ध कैसे अपने तर्कों द्वारा ब्राह्मणवाद की धज्जियाँ उडाई .,उनके वर्ण व्यवस्था पर प्रहार किया इसे बहुत ही रोचक तरीके से बताया।
 ..  अंत में दर्शन विभाग के प्रो . पि0 बागड़े     ने कहा आंबेडकर और मार्क्स को ही साथ लेकर भारत में कोई भी आगामी सामाजिक परिवर्तन का कार्य किया जा सकता है।

जय भीम कामरेड !

-शैलेश कुमार