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Tuesday, June 25, 2013

कौन है मूलनिवासी ?

 कँवल भारती की फेसबुक पर से कुछ पोस्ट क्रमवार :


(1) :  21 जून को मैंने मुरादाबाद में वामन मेश्राम जी के साथ उनके भारत मुक्ति मोर्चा के कार्यक्रम में भाग लिया. कार्यक्रम से पहले गेस्ट हाउस में उनसे निजी मुलाकात हुई, करीब डेढ़ घंटे तक उनसे राजनीति और साहित्य पर बातचीत हुई. उनका इरादा एक भव्य और बड़ी पत्रिका निकालने का है, जो वैचारिकी-आधारित हो. वे चाहते हैं कि मैं उसकी जिम्मेदारी संभालू. मेरी क्षमता पर उनका विश्वास करना मुझे अच्छा लगा. पर मैं अभी बहुत से कारणों से स्वयं को असमर्थ समझता हूँ.
कार्यक्रम में वामन मेश्राम जी का भाषण वही था, जो मैं पहले नागपुर में भी सुन चुका था. भारत में आज़ादी की लड़ाई आज़ादी की लड़ाई नहीं थी, वरन वह ब्राह्मणों की आज़ादी की लड़ाई थी. भारत में केवल ब्राह्मणों का वास्तिविक प्रतिनिधित्व है, दलितो-पिछडों का वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं है.
श्रोताओं में सरकारी कर्मचारी और ट्रेड यूनियनों के लोग ही थे, जिनका एकमात्र और एक सूत्रीय कार्यक्रम पदोन्नति में आरक्षण के सिवा कुछ नहीं है. इस कार्यक्रम में मुझे आम आदमी की कोई भागीदारी नजर नहीं आयी.
बहुजनों के सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर कोई बातचीत नहीं हुई. मैंने अपने भाषण में शिक्षा का मुद्दा उठाया, जिसका निजीकरण कर दिया गया है और कहा कि सरकार द्वारा शिक्षा को आम आदमी की पहुँच से दूर कर दिया गया है. मैंने सवाल खड़ा किया कि इतनी बड़ी संख्या में अशिक्षा के रहते दलित-पिछड़ा समाज का क्या भविष्य हो सकता है? मैंने यह प्रश्न भी मंच से उठाया कि भारत मुक्ति मोर्चा के एजेंडे में यदि निजीकरण से मुक्त करने का मुद्दा नहीं है, तो बहुजन समाज के लिए उसका कोई महत्व नहीं है. मेरी बात का समर्थन वहाँ किसी ने नहीं किया, वामन मेश्राम जी ने भी नहीं.
मुझे लगता है, मेरी यात्रा यहीं समाप्त हो गयी.

(2) :  कौन है मूलनिवासी?


दलितों में एक नया संगठन बना है, जो मूलनिवासी की अवधारणा को लेकर चल रहा है. इस संगठन के लोग अभिवादन में भी ‘जय भीम’ की जगह ‘जय मूलनिवासी’ बोलने लगे हैं. ये लोग कहते हैं कि वे मूलनिवासी हैं और बाकी सारे लोग विदेशी हैं. क्या सचमुच ऐसा है? अगर इनसे यह पूछा जाये कि किस आधार पर आप अपने को मूलनिवासी कहते हैं, तो इनके पास कोई जवाब नहीं है. अधकचरे तर्क देते हुए ये ब्राह्मण-शूद्र की शब्दावली के आधार पर उन्हीं धर्मशास्त्रों का हवाला देना शुरू कर देते हैं, जिन्हें ऐतिहासिक दृष्टि से कभी मान्यता नहीं मिली. दरअसल इनके नेताओं ने जो सैद्धांतिकी बना ली है, उसी को इन्होने रट लिया है.

अगर वर्ण का अर्थ रंग है, तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का अलग-अलग रंग होना चाहिए था. ब्राह्मण गोरे होते, क्षत्रिय नीले होते, वैश्य पीले होते और शूद्र काले होते. पर क्या ऐसा है? दो ही रंग हैं—गोरा और काला. सभी वर्णों में ये दोनों रंग मिल जायेंगे. अगर दलित-शूद्र भारत के मूलनिवासी होते, तो ये सभी वर्ण काले रंग के होते और बाकी सारे लोग विदेशी होने के कारण गोरे रंग के होते. पर क्या ऐसा है? ब्राह्मणों में कितने ही काले और भयंकर काले रंग के मिल जायेंगे और दलितों में कितने ही गोरे और एक्स्ट्रा गोरे रंग के मिल जायेंगे. हजारों वर्षों के मानव-समाज के विकास के बाद आज अगर कोई यह दावा करता है कि वह मूलनिवासी है, तो वह बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है. अगर कोई यह मानता है कि आर्य और अनार्यों में रक्त-मिश्रण नहीं हुआ है, तो वह सबसे बड़ा मूर्ख है. आज रक्त के आधार पर कोई भी अपनी नस्ल की शुद्धता का दावा नहीं कर सकता.
मूलनिवासी संगठन के लोग अगर डा. आंबेडकर को मानते हैं, तो उन्हें यह भी समझना चाहिए कि डा. आंबेडकर ने आर्यों को विदेशी नहीं माना है. उन्होंने इस सिद्धांत का खंडन किया है कि आर्य बाहर से आये थे. डा. आंबेडकर इस सिद्धांत को भी नहीं मानते कि आर्यों ने भारत पर आक्रमण करके यहाँ के मूलनिवासियों को गुलाम बनाया था. वे कहते हैं कि “इस मत का आधार यह विश्वास है कि आर्य यूरोपीय जाति के थे और यूरोपीय होने के नाते वे एशियाई जातियों से श्रेष्ठ हैं, इस श्रेष्ठता को यथार्थ सिद्ध करने के लिए उन्होंने इस सिद्धांत को गढ़ने का काम किया. आर्यों को यूरोपीय मान लेने से उनकी रंग-भेद की नीति में विश्वास आवश्यक हो जाता है और उसका साक्ष्य वे चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था में खोज लेते हैं.” ब्राह्मणों ने इस सिद्धांत का समर्थन क्यों किया? इसका कारण डा. आंबेडकर बताते हैं कि ब्राह्मण दो राष्ट्र के सिद्धांत में विश्वास रखता है. इस सिद्धांत को मानने से वह स्वयं आर्य जाति का प्रतिनिधि बन जाता है और शेष हिंदुओं को अनार्य कह कर वह उन सबका भी श्रेष्ठ बन जाता है. यही कारण है कि तिलक जैसे घोर सनातनी ब्राह्मण विद्वानों ने इस सिद्धांत का समर्थन किया.
दलित इस सिद्धांत को क्यों मानते हैं, यह समझ से परे है. पर, उनका मूलनिवासी दर्शन पूरी तरह डा. आंबेडकर की वैचारिकी के विरोध में है. मेरी दृष्टि में यह दलित-पिछड़े वर्गों में एक बड़े रेडिकल उभार को रोकने का षड्यंत्र है. इस षड्यंत्र का सूत्रधार पूंजीवाद है, जो फंडिंग एजेंसी के रूप में भारतीय और विदेशी दोनों हो सकता है. हमारे सीधे-साधे दलित-जन अपने नेतृत्व पर आंख मूँद कर विश्वास करते है. अपने आरक्षण को बनाये रखने के लिए वे उन्हें अपना तन-मन-धन तीनों का अर्पण करते हैं. वे बेचारे नहीं जान पाते कि उनके मुखिया उन्हें काल्पनिक शत्रु से लड़ा कर दलित आन्दोलन को भटकाने का काम कर रहे हैं.
मूलनिवासी संगठन हो या भारत-मुक्ति-मोर्चा, वामसेफ हो या कोई और ‘सेफ’, ये सारे के सारे संगठन इसलिए फलफूल रहे हैं, क्योंकि कहाबत है कि जब तक बेवकूफ जिंदा है, अक्लमंद भूखा नहीं मर सकता. जो लड़ाई डा. आंबेडकर ने अपने समय में लड़ी थी, ये संगठन उसी कीली के चक्कर काट रहे हैं. आंबेडकर की जिस लड़ाई को आगे बढ़ना था, उसे पूंजीवाद के दलालों ने आज वहीँ रोक दिया है.
23 जून 2013

(3) :   बाबासाहेब डा. आंबेडकर ने कहा था कि दलित वर्गों के दो शत्रु हैं--एक ब्राह्मणवाद और दूसरा पूंजीवाद. हमारे दलित संगठन ब्राह्मणवाद के खिलाफ गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे हैं, पूंजीवाद के खिलाफ मौन धारण किये हुए हैं. क्यों? क्या पूंजीवाद शत्रु नहीं है? क्या बाबासाहेब गलत थे?


(4) :   भारत के दलित आंदोलन को ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद ने गोद ले लिया है. दलित संगठनों के मुखिया विदेश घूम रहे हैं और उनसे कोई पूछने वाला नहीं है कि उनकी फंडिंग कहाँ से हो रही है?


(5) :   अपने नेताओं से पूछो कि हम किस तरह मूलनिवासी हैं? उनसे तर्क करो. उनके गुलाम मत बनो. सरकारी कर्मचारी और भ्रष्ट अधिकारी तुम्हारे नेताओं के आसान शिकार हैं. उन्हीं के पैसे पर वे मौज मार रहे हैं.


(6) :  स्वामी सहजानंद लिखते हैं कि उन्हें समाजवाद की प्रेरणा भगवद्गीता से मिली. भारत में सभी समाजवादियों का यही हाल है. धर्म में आस्था से बंधे हुए लोग क्रान्ति कर ही नहीं सकते, वे केवल ढोंग कर सकते हैं, जो उन्होंने किया. इसीलिए यहाँ समाजवाद फेल हुआ.

 
Kanwal Bharti      :-  कँवल भारती

Thursday, June 13, 2013

बलिया, उ. प्र. में सामन्ती तत्वों और पुलिस के गठजोड़ द्वारा दलितों एवं अन्य श्रमिकों के दमन-उत्पीड़न पर एक रिपोर्ट :




                                     दिनांक 15 मई 2013

   जनवरी-फरवरी 2013 में बलिया पुलिस ने बिहार से सटे दीयर क्षेत्र और रसड़ा तहसील मेंडेढ़ दर्जन दलित और अन्य श्रमिक तबके के लागों को गिरफ्तार कर फर्जी मुकदमों में फँसाया। यह रिपार्ट इसी घटनाक्रम से संबंधित है।

                                  गिरफ्तारी की पृष्ठिभूमि

बलिया उत्तर प्रदेश का वह सीमांत जिला है जो 1942 में आजाद सरकार के पथ-प्रदर्शक जनप्रयोग से लेकर ‘60-‘70 के दशक में जमीन व इज्जत की लड़ाई के नये दौर की शुरूआत के क्रम में हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहा है। आज भी इस जिले के गरीब किसान, भूमिहीन और दलित लोग वहां के आततायी सामंती तत्वों के खौफ का मुकाबला करने का माद्दा रखते हैं।यही वजह है कि वहां के शक्तिशाली सामंती तत्व, गुण्डे-बदमाश, सूदखोर और चुनावबाज नेतागण इस अन्तराल में मेहनतकश वर्ग के लोगों और उनके स्थानीय नेताओं को कुचलने के लिए बेइंतहा जुल्म और हत्या तक का सहारा लेते रहे हैं।
इसी का जीता-जागता उदाहरण सहतवार थाना क्षेत्र के अतरडरिया गांव के पूर्व सरपंच फूलमती देवी व उसका पति मुसाफिर चैहान और उनकी हत्या/हत्या के प्रयास के बाद का घटनाक्रम है।विदित है कि इन दोनों पर 2001 में स्थानीय दलित नेता संजय रंगवा की हत्या की और इसके बाद पुलिस-नेता गठजोड़ के सहयोग से उनके साथीसंजय और छाता गांव के निवासी बबलूकी भी हत्या कराने का आरोप रहा है। मुसाफिर-फूलमती की शुरुआती पृष्ठभूमि चोरी-डकैती की बतायी जाती है, जिस सिलसिले में इन पर दर्जनों मुकदमेदर्ज हुए। इसके बावजूद इनको क्षेत्रीय विधायक, सांसद और पुलिस का भरपूर संरक्षण मिलता रहा है।
18 नवम्बर 2012 की रातकथित रूप से दलित नेता संजय रंगवा की हत्या के प्रतिशोध के तौर परकिये गये एक हमले में पूर्व सरपंच फूलमती देवी की हत्या हो गई और उनके पति मुसाफिर बाल-बाल बचे।इस हमले में दो दर्जन लोग शामिल बताये जाते हैं।हमले के तत्काल बाद पुलिस ने सहतवार थाना क्षेत्र के अतरडरिया गांव के उन 5 लोगों को नामजद कर गिरफ्तार किया जिनसे फूलमती-मुसाफिर दम्पत्ति की निजी रंजिश के प्रमाण हैं। इससे मन नहीं भरा तो लगभग दोमाह बाद से रेवती थाना क्षेत्र के गायघाट गांव; बाँसडीह रोड थाना के बिशुनपुरा व बभनौली; थानादुबहर के बेयासी व सहरसपाली; कोतवालीरसड़ा के लवकरा व गौरपुरा और थाना मनियर के मुडि़यारी गांव के कुल 25 लोगों की गिरफ्तारी की मुहीम चलायी, जिन परपहले हत्या, हत्या का प्रयास, आगजनी जैसी आई.पी.सी. की धाराओं के तहत और आम्र्स एक्ट के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज किया और फिर गैंगस्टर एक्ट के तहत भी। इनमें से 12 गिरफ्तार कर जेल भेज दिये गये, जबकि शेष पर कुर्की की कार्यवाही अभी चल रही है। अधिकतर अभियुकतों को पुलिस ने बेइन्तहां शारिरीक-मानसिक यातनाएँ दीं। शरीर के अंगोंमें बिजली का करंट दिया गया, शरीर पर बूटों से, डण्डे से, पट्टे से और राइफल के बटों, इत्यादि से प्रहार किया गया।
पुलिस रिपोर्ट के आधार पर अखबारों में पहले इस घटना मंे नक्सलवादियों का हाथ होने की आशंका जताई गई। लेकिनजब पुलिस किसी नक्सली का कोई सुराग ढूँढने में नाकाम रही, तो बाद में उसने ‘दमन मुक्ति मोर्चा’ नामक किसी संगठन का नाम सामने लाया। जो अगर कभी अस्तित्व में रहा हो तो जैसा कि वाम जनवादी दायरे की गतिविधियों का कोई भी जानकारइस तरह के नाम से बता सकता है, यह कोई खुला संगठन रहा होगा जो पुलिस के इस दमन अभियान के बाद या तो बिखर गया होगा या भूमिगत होने को विवश हुआ होगा। हमें इस संगठन से जुड़ा कोई व्यक्ति पूरे इलाके में नहीं मिला। बलिया प्रशासन ने ‘दमन मुक्ति मोर्चा’जैसे एक खुले जनवादी संगठन को ‘संगठित गिरोह’ के रूप मंे दुष्प्रचारित कर एक-एक कर इसके कथित कार्यकर्ताओंअथवा समर्थकों को फर्जी मुकदमों में फँसाना शुरू किया और किसी ठोस सबूत के बगैर गिरफ्तार किये जाने के कारण जैसे ही उनकी जमानत उच्च न्यायालय से मंजूर होने लगी, तो झट्-से गैंगस्टर एक्ट थोप कर जेल से रिहाई मुश्किल बना दी।
इनं गिरफ्तार ‘दमन मुक्ति मोर्चा’ के कथित कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर क्या-क्या गुजरी और वर्तमान में उनकी क्या स्थिति है? इसे जानने के लिएहम कुछ छात्रों, पत्रकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओंने एक फैक्ट-फाइंडिंग टीम बनाकर 6-8 मई 2013 तक बलिया के प्रभावित ग्रामीण इलाकों में पीडि़त परिवारों से मिलकरगहन जांच-पड़ताल करने का प्रयास किया। 6 मई की शाम बलिया शहर में प्रारंभिक पूछताछ के बाद 7 मई 2013 की सुबह हम लोगों ने थाना बाँसडीह के बभनौली गांव से अपनी जांच-पड़ताल शुरू की जो रसड़ा तहसील के प्रभावित गांवों तक चली। इससे निम्न तथ्य क्रमवार सामने आये।

स्थनीय सामन्त पूर्व सरपंच फूलमती देवी की हत्या और उनके पति मुसाफिर चैहान की हत्या के प्रयास आदि में झूठा फँसा कर जेल भेजे गये कुल 17 निर्दाष गंरीबोंकी कहानी उनके ग्रामीण परिजनों नेकुछ इस तरह बयां कीः-
 #  अभियुक्त का नाम-मनोज पासवान, पिता-श्री गौरीशंकर पासवान,ग्राम-बभनौली, थाना-बाँसडीह रोड; जाति -दुसाध पासी;पेशा-राजमिस्त्री; उम- 27 के करीब

मनोज पासवान की माँ सोनी देवी ने बताया कि बेटे की गिरफ्तारी से घर की हालत और भी बदतर हो गयी है। आज 7 मई को तीन दिनों बाद उनके यहाँ खाना बन पाया है। इसी तरह कभी चूल्हा जल पाता है और कभी उपवास रखना पड़ता है।
मनोज की पत्नी इंसेफलाइटिस के अटैक से दोनों आँखों की रोशनी खो चुकी हैं। उनकी दवा में घर का गहना-जेवर बिक गया। 21 हजार की भैंस, 45 हजार का सूअर बेच देना पड़ा। एक तरफ बीमारी, दवा व सही इलाज के अभाव में मनोज की पत्नी व परिवार की हालत बदतर हो चुकी है तो दूसरी तरफ मनोज पासवान की जिन्दगी को पुलिसिया दमन ने बदतर बनाकर रख दिया है।
09 फरवरी 2013 को 11 बजे रात में सोते समय पुलिस ने भेष बदलकर मनोज के सहकर्मी वशिष्ठ के सहयोग से दरवाजा खुलवाया। और उसे पटरा-बल्ली के मामले मंे बातचीत के बहाने उठा ले गयी। पिता गौरीशंकर ने बताया कि मनोज को उठाने के बाद उसे तुखीपारा नहर पर रात 12 बजे गाड़ी से उतारकर पुलिस ने बहुत मारा-पीटा। पुलिस ने मनमाफिक उत्तर नहीं मिलने पर एन्काउण्टर करने की भी धमकी दी। उस जगह पर तीन अन्य गाडि़याँभी थीं। पिता गौरीशंकर ने थाने मंे जाकर बेटे के बारे में पूछा तो पुलिस ने कुछ भी जानकारी नहीं होने की बात कही। घर के लोगों को तीन दिन के बाद 12 फरवरी 2013 को अखबार के माध्यम से मनोज के गिरफ्तार होने की सूचना मिली। पुलिस ने 48 घंटे बाद मनेाज पासवान को गिरफ्तार दिखाया और मुकदमा अपराध संख्या 280/2012 भारतीय दंड संहिता के तहत धारा 147, 148, 149, 307, 302, 427, 435, 504, 506, 120बी के तहत जेल भेज दिया।
48 घंटे तक की कहानी का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि 2 दिन तक अज्ञात स्थान पर रखा गया और गौरीशंकर जब जेल में मनोज से मिलने गये थे, तो वह ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था- उसेबिजली का झटका दिया गया था! गौरीशंकर व मनोज की माँ ने बताया कि उसे बहुत गंदे व अश्लील तरीके से टार्चर किया गया है। हम लोगों का लिहाज करते हुए उन्होंने अभी पूरी बात नहीं बतायी है।
मनोज के पिताजी का मानना है कि मनोज पासवान गठौली गाँव के पन्ना सुनार से अपनी जायज व बकाया मजदूरी की मांग की थी। लेकिन पन्ना सोनार मजदूरी देने के बजाय और बेगारी कराना चाहता था। इसी बात पर कहा-सुनी हो गयी थी। जिसके कारण मनोज को पुलिस ने उठाया।
गाँव के लोगों ने बताया कि मनोज बहुत मेहनती व जागरूक युवक है। उसने गाँव में किसी से कोई झगड़ा-फसाद नहीं किया। उस पर कहीं भी कोई केस नहीं है। लेकिन आज उसके माँ-बाप स्थानीय नेताओं के घर जा-जाकर चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं।
गौरीशंकर के सामने कई चुनौतियाँ हैं। वह बीमार मनोज की पत्नी, जिसकी स्थिति गम्भीर है, का ईलाज करवाये या मनोज को जेल से बाहर निकाले। गौरीशंकर के पास धन बचा नहीं है और कोई उन्हें कर्जा देगा नहीं, क्योंकि उसके पास कोई सम्पत्ति ही नहीं है।

# अभियुक्त का नाम-साहेब शर्मा, पिता-बीगन शर्मा, गाँव-बभनौली, थाना-बाँसडीह रोड; पेशा-बढ़इर्;   जाति-बढ़इर्; उम्र-17 वर्ष

साहेब शर्मा पर भी मनोज पासवान वालामुकदमाऔरवही धाराएँ लगायी हैं। साहेब शर्मा के बुजुर्ग पिता बीगन शर्मा ने बताया कि जनवादी कार्यों की तरफ उनका रुझान शुरू से ही रहा है। जिसका प्रभाव उनके बेटे पर भी पड़ा। साहेब शर्मा अभी नाबालिग हैं।
उन्होंने बताया कि 15 दिनों तक लगातार पुलिस उनके घर का चक्कर काटती रही। पुलिस के डर से बीगन शर्मा व उनके सभी बेटे घर से फरार हो गये। पुलिस उनकी तलाश में घर पर आती और घर की महिलाओं के साथ गाली-गलौज व अभद्रता करती। पुलिस यहाँ तक बोलती कि‘उन सालों को जल्दी बुलाओ नहीं तो तुम्हारे बच्चों को ले जायेंगे।’ साहेब शर्मा 5वीं तक ही पढ़ पाया है और भूमिहीन मजदूर का बेटा है।वह गाँव में ही बढ़ई का काम करके जीविका चलाता था। पुलिस द्वारा लगातार महीनों तक घर की महिलाओं-बच्चों को प्रताडि़त करने और कोर्ट द्वारा कुर्की के आदेश के बाद उसने मजबूर होकर 3 महीने बाद कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। उसके आत्मसमर्पण के बाद ही उसके पिता व भाई घर आ सके। आज भी साहेब शर्मा के घर में दहशत का माहौल है।

# अभियुक्तका नाम-बड़क, पुत्र-नगीना राम-कोटेदार; संतोष राम, पुत्र-स्व. वशिष्ठ राम, पूर्व ग्राम प्रधाान; बब्बन राम, पुत्र-स्व. मोती राम, ग्राम सेवक अधिकारी,ग्राम-बिशुनपुरा,थाना-बाँसडीह रोड;जाति- हरिजन

ये तीनों अभियुक्त एक ही परिवार के सदस्य हैं। बड़क पुत्र नगीना राम को गांव से थोड़ी दूर पर गन्ने की पेराई करते समय सादी वर्दी में आयी पुलिस ने गन्ने का रस पिलाने के बहाने 9 फरवरी 2013 को जबरन उठा लिया। बड़क के दो भतीजे संतोष व बब्बन जो क्रमशः पूर्वप्रधान व ग्रामसेवक अधिकारी रहे हैं, अपने चाचा को पुलिस द्वारा उठाने का कारण पूछने गये, तो उनको भी थाने में बंद कर दिया गया। पुलिस ने तीनों को भयानक यातनाएँदीं। बिजली के झटके दिय गयेे। दो दिन बाद अखबार में गिरफ्तारी दिखायी गयी।इन तीनों कीभी मनोज के ही मुकदमे व उन्हीं धाराओं में गिरफ्तारी दिखायी गयी।
इन तीनों की 9 अप्रैल 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत हो गई। जमानत का आदेश आने से पहले ही 13 अप्रैल 2013 को गैंगस्टर एक्ट लगाकर जेल से नहीं छूटने दिया गया। पुलिस जनवादी व मौलिक अधिकारों को ताक पर रखकर लगातार उन्हें प्रताडि़त कर रही है। ये सभी लोग भूमिहीन दलित परिवार के हैं। बिशुनपुरा का यह हाल था कि बाँसडीह रोड थाने की तरफ से कोई ग्रामीण गुजरता तो पुलिस की पूछताछ होती और पूछा जाता कि किस गाँव के हो? लोग बताते -‘बिशुनपुरा’! किस जाति के हो? लोग बोलते- हरिजन-चमार! तब चल अन्दर !............. यही हाल था। इस तरह करीब दसियों लोगों को पुलिस ने उठाया और मारपीट करके प्रताडि़त करके छोड़ दिया। बड़क राम के घर राशन का कोटा था। सवर्ण जाति के लोग मनमाफिक चीनी राशन आदि मांगते थे। नहीं देने पर जो भी राशन की दुकान पर होता उसके साथ मारपीट करते। इन लोगों के बचाव व मदद में ग्रामप्रधान से लेकर विधायक तक कोई नहीं आया। उल्टे गाँव के दबंगों ने राशन की दुकान भी निरस्त करा दी। इन लोगांे का सिर्फ यही दोष था कि ये अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रहे थे। सामाजिक भेदभाव, शोषण व अन्याय के खिलाफ बोलने लगे थे। इस कारण से गाँव के दबंग, जमींदार, सवर्णों से लेकर राजकीय व्यवस्था -सभी प्रताडि़त कर रहे हैं। महीने भर तक लगातार पुलिस परिजनों को प्रताडि़त करती रही। घर में तलाशी ली जाती, पुलिस प्रताड़ना के भय से छात्रों ने परीक्षाएँ भी छोड़ दीं। पुलिस कहती थी कि‘साले तुम लोग नक्सलाइट बन रहे हो.............!’ आज भी इस गाँव में दहशत व्याप्त है।

अभियुक्त-विरेन्द्र निषाद,गाँव- बेयासी, थाना-दुबहर;जाति-मल्लाह;पेशा-राजमिस्त्री

विरेन्द्र निषाद को पुलिस ने 9 फरवरी को घर से उठा लिया। पुलिस ने 12 फरवरी 2013 को गिरफ्तारी दिखायी, तीन दिन तक अज्ञात स्थान पर रख कर प्रताडि़त किया, बिजली का करंट लगाया जिससे उनके कान झुलस गये हैं। वही मुकदमा तथा वही धाराएँ थोपी गयीं जो मनोज पर। इसके बाद उन्हें जमानत भी मिल गयी लेकिन जमानती आदेश मिलने से पहले गैंगस्टर लगा दिया गया। विरेन्द्र को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उनके घर पर लगातार एक महीने तक दबिश देती रही। विरेन्द्र के घर पर अकेली पत्नी और पाँच छोटे-छोटे बच्चे हैं। पुलिस घर की तलाशी लेती। पत्नी सुशीला के साथ बदसलूकीकरती। पूछती कितने बच्चे हैं? सुशीला कहती -‘पाँच’! पुलिस बोलती -‘‘साले पांँच बच्चे बड़े होकर पाँच जगह छापेंगे!’’ पुलिस विरेन्द्र को गिरफ्तार करने के बाद भी विरेन्द को खोजने घर आती रही। पत्नी के विरोध करने पर पुलिस बोलती-‘साली जबान चलाती है, इसे पानी में खड़ा कर दो। इसे भी ले चलो’! पत्नी बोलती -‘ले चलो’! पुलिस गाली-गलौज करती और तलाशी लेकर चली जाती। तलाशी के समय कोई महिला पुलिस भी नहीं होती थी।
विरेन्द्र राजमिस्त्री हैं। घर में आमदनी का कोई साधन नहीं है। गिरफ्तारी के बाद फीस के अभाव में मास्टर ने नक्सली के बच्चे बताकर और फीस न देने के कारण स्कूल से निकाल दिया। गाँव के सवर्ण प्रधान ने वीरेन्द्र की पत्नी को पहचानने से मना कर दिया। आज यह हालत है कि घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है। विरेन्द्र की कानूनी मदद अकेली सुशीला देवी बिना पैसे कैसे करे?

अभियुक्त का नाम-आनन्द शर्मा,  पिता-श्री दयाराम शर्मा,गाँव बेयासी, थाना-दुबहर; जाति बढ़ई

आनन्द शर्मा की गिरफ्तारी को लेकर भी पुलिस ने खूब कहानी रची। पहले 13 फरवरी को उनके छोटे भाई अरविन्द शर्मा को थाने ले गयी। अरविन्द को लेने शाम को आनन्द गये, तो उन्हें थाने में बैठा लिया और अरविन्द शर्मा को छोड़ दिया। सभी लोग जानते हैं कि ‘आनन्द प्रिटिंग प्रेस’ में छपाई का कार्य होता है। पुलिस उनके कम्प्यूटर को भी उठा ले गयी थी। कम्प्यूटर का ‘रैम’ बदलकर डाटा की तलाशी करकेलौटा दिया। पुलिस ने आनन्द को 16 फरवरी 2013 को सहतवार थाने के छाता रेलवे स्टेशन पर भागते हुए गिरफ्तार दिखाया है। जबकि उन्हें 13 फरवरी 2013 को ही थाने में बैठा लिया था। आनंद शर्मा को भी पुलिस ने बाकी लोगों की ही तरह प्रताडि़त किया। उन्हें भी जमानत मिल गयी थी, लेकिन गैंगस्टर एक्ट लगाकर जेल से बाहर निकलने नहीं दिया गया। उनकीसगी बहन की शादी 16 मई को है, लेकिन शादी में हथकड़ी लगाकर लाया जाना शोभनीय न होने के कारण पैरोल की अर्जी नहीं दी गयी है, जबकि आनन्द के पिताजी विकलांग हैं।

# अभियुक्त का नाम-छोटक प्रजापति, नन्दजी शर्मा, अम्बिका राम, टेलू जी, संतोष जी,ग्राम- सहरसपालीथाना-दुबहर

2013 मंे दूसरी बार कुर्की का आदेश आया है, क्योंकि ये लोग भी फरार हैं। जांच-पड़ताल से पता चला है कि 2008 के वक्त 17-18 लोग गांव के दबंग व जमींदार सोहन सिंह की हत्या के आरोप में नामजद थे। 20-22 लोगों को उस गांव में टार्चर किया गया था। 30-35 लोगों को बन्द किया गया था। 17-18 नामजद थे वो लोग आज भी मुकदमा लड़ रहे हैं। संतोष के घर जब हमारी टीम पहुंची तो पाया कि उनका घर पहले ही कुर्की से खाली पड़ा है लेकिन अब फिर से कुर्की का आदेश चस्पा किया गया है। उनके बाकी तीनो भाई-बहनों का भी सामान कुर्क कर दिया गया है। गांव पर सरकारी अफसरों और जमींदारों, दबंगों की दहशत व्याप्त है।

अभियुक्त-प्रदीप कुमार प्रजापति, पुत्र-सीताराम, रामराज राम,गांव-गायघाट,थाना-रेवती

10 फरवरी 2013 को सुबह 6-7 बजे के करीब इन्हें अपनी निजी आटा चक्की के पास से सोते समय पुलिस उठा ले गयी। प्रदीप आटे की चक्की से गुजारा करते थे। पिता सीताराम जब रेवती थाने गये तो उन्हें सहतवार थाने में होने की बात बतायी। सहतवार थाने पहंुचे तो उनको भी दो दिन थाने में बन्द रखा गया और बूट की ठोकरों से खूब मारा-पीटा गया। बाद में पुलिस ने 10 हजार रूपये लेकर पिता को छोड़ दिया।
प्रदीप प्रजापति को 13 फरवरी 2013 को सुरैया बगीचा से गिरफ्तार दिखाया गया है। प्रदीप को भी शारीरिक प्रताड़ना दी गयी। आज वह भी इसी मुकदमे व इन्हीं धाराओं में बन्द हैं। 15 अगस्त के दिन प्रदीप प्रजापति के दो भतीजे गांव में मिठाई खाकर सरकारी नल पर पानी पी रहे थे। वह सरकारी नल राजपूत जाति के द्वार पर था। एक राजपूत ने सवाल किया कि क्या कर रहे हो? लड़कों ने कहा कि ‘पानी पी रहे हैं बाबा!’ इसी पर राजपूत आदमी ने भड़ककर कहा, ‘साले! छोटी जाति का होकर बाबा कहे!’ उसने बरामदे के घर में ले जाकर दोनों लड़कों को काफी मारा-पीटा और घर में चोरी के जुर्म में जेल भी भेजवा दिया। इन लड़कों का जुर्म था कि इन्होंने ठाकुरों के यहां सरकारी नल से पानी पीने की जुर्रत की और ठाकुर साहब को बाबा कह दिया। इन्हें दलित होने की कीमत चुकानी पड़ी जिसका प्रदीप ने विरोध किया था। इसीलिए लोगों का मानना यह भी है कि पुलिस के साथ सवर्ण लोगों ने मिलकर प्रदीप को फंसाया है।
इसी गांव के कोटेदार रामराज राम को रेवती थाना व सहतवार थाना की पुलिस ने मिलकर उठा लिया और मारा-पीटा, महिलाओं को गाली दी तथा रेवती थाने के सिपाही शालिक सिंह ने गाली देते हुए कहा कि, ‘‘भोसड़ी वाले तुम्हारा एक-एक ईंट उखाड़ कर ले जायेंगे।’ वे गांव में एम. ए. तक की पढ़ाई करने वाले दलित हैं। उनको पुलिस दो बार उठा ले गयी। एकबार उठायी तो तीन दिन रखी और पूछताछ करके छोड़ दिया और उसके बाद फिर उठायी और आठ दिन रखी। 10-12 बार पट्टे से पिटाई करके छोड़ दी। 29 दिन बाद फिर उनके घर छापामारी शुरू कर दी। रामराज राम पुलिस उत्पीड़न के भय से घर छोड़ दिये। उनको भी पुलिस ने उपर्युक्त मुकदमे व धाराओं में ही अभियुक्त बनाया है और उनके घर की कुर्की का आदेश हो चुका है।
जांचपड़ताल में लोगों ने बताया कि प्रदीप प्रजापति व रामराज राम गरीबों, दलितों के सामाजिक-राजनीतिक अधिकारों की बात करते थे। इनकी जागरूकता व चेतना गांव के दबंगो-सवर्णों को रास नहीं आयी। पुलिस-सामंती गठजोड़ इसी की सजा मुकदमे में फंसाकर दे रहा है।

अभियुक्तगण-गोरख पासवान, खेदन चैहान, लल्लन राजभर, गांव-गायघाट, थाना -रेवती

पुलिस ने गोरख पासवान को घर से उठाकर थाने में सात दिन तक रखा तथा गाली देकर पट्टे से पिटाई करके छोड़ा।
थाना सहतवार पुलिस खेदन चैहान को खेत में काम करते हुए पकड़ ले गयी और एक हजार रूपया लेकर छोड़ दी।
लल्लन राजभर पुत्र स्व. सुन्दर राजभर को भी पुलिस ने खेत में काम करते समय उठा लिया और सहतवार थाना में दो दिन बन्द रखकर गाली-गलौज करके छोड़ दिया। फिर दो दिन बाद दूसरी बार पूलिस सहतवार थाने में बुला ले गयी। जाने पर फिर सात दिन तक बन्द रखा।इनका मानसिक उत्पीड़न करके 600 रूपया लेकर छोड़ दिया गया।
# अभियुक्त-सूर्यनाथ राम पुत्र-स्व.अजोरराम, पेशा-शिक्षा मित्र,जाति-हरिजन,गांव-लवकरा  थाना-रसड़़ा
सूर्य नाथ राम जिन्हें लोग मास्टर साहब के नाम से जानते व पुकारते हैं। लेकिन पूरे मान-सम्मान की धज्जियां उड़ाते हुए एसओजी ने उन्हें ‘मास्टर माइंड’घोषित कर दिया। मास्टर साहब ढाई महीने बाद जमानत पर जेल से बाहर तो आ गयेहैं। लेकिन अभी भी वे पुलिसिया आतंक और बदतमीजी से बुरी तरह खौफजदा हैं।
उन्होंने बताया कि 5 फरवरी 2013 पुलिस उनको विद्यालय से मोबाइल के कागजात से सम्बन्धित किसी काम का बहाना बनाकर उठा ले गयी। दिन भर मानसिक टार्चर करती रही और शाम को छोड़ दी। पुनः 10 फरवरी 2013 को 4 बजे भोर में ही अचानक उठा ले गयी। यह काम पुलिस वालों ने बिना वर्दी पहनें अपहरणकर्ताओं की तरह किया। अज्ञात जगहों पर यातनाएं दी गयीं। चार दिन के टार्चर के बाद पांचवे दिन चालान कर दिया।
मास्टर साहब ने अपनी दास्तान सुनायी -‘‘गांव में 151 की धारा मंे भी अभी तक कोई बन्द नहीं हुआ था। यानि यह पहली घटना है। पुलिस प्रशासन में कोई मानवता नाम की चीज नहीं है। गांव में किसी से कोई विवाद नहीं रहा। कभी सोचा भी नहीं था कि यह दिन देखने पड़ेंगे। क्या ईमानदार होना, एक सामाजिक नागरिक होना इतना बड़ा अपराध हो गया है? जीवन में कभी मैं सहतवार क्षेत्र में नहीं गया था। वहां के लोगों से परिचित भी नहीं था लेकिन जबरन मुझे पूर्व ग्राम प्रधान फूलमति हत्या काण्ड का अभियुक्त घोषित कर दिया गया। थाने में पता चला कि मेरी ही तरह कई लोगों को पुलिस ने बंधक बनाया है। उनको मुझे पहचानने को कहा। लेकिन हम एक-दूसरे को पहचान नहीं पाये। फिर भी पुलिस हमसे सिर्फ ‘हां’ बुलवाने पर तुली थी। पहले एस.ओ.जी. के लोग नगरा थाने में ले गये, जहां काली पट्टी मुंह पर बांधकर कुछ लोगों को सामने पेश किया गया। फिर गड़वार थाने में ले गये। लगातार घर-परिवार की चिन्ता सता रही थी कि वहां पुलिस ने सूचना तक नहीं दी थी कि मैं कहां हूं, कैसे हूं, क्यों हूं?
‘‘गड़वार थाने में बार-बार पुलिस से गुजारिश करता रहा कि मेरे घर सूचित किया जाये, लेकिन पुलिस के लोग झूठी सांत्वना देते रहे। एस.ओ.जी. प्रभारी बी.के. चैधरी भी झूठी सांत्वना देते रहे। वे मुझे पुलिस की दूसरी गाड़ी में बिठाकर बांसडीह रोड थाना ले गये। वहां पर सी.ओ. की मीटिंग चल रही थी और वहां भी काली पट्टी से मुंह बंधे कुछ लोगों को पहचानने को कहा गया। लेकिन सभी अपरिचित थे। पुलिस ने मुझे वहां शाम को छोड़ने की बात कही। तो मैं बोला, अब रात में कैसे इतनी दूरी तय करके घर पहुंच पाऊंगा? दरअसल वे मुझे अज्ञात जगह ले जाना चाहते थे और मैंने रात में जाने का विरोध किया।
‘‘मेरा पूरा गांव थाने पर गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेरा जुर्म क्या है? कैसे मेरा जुर्म तय कर दिया गया? मुझ जैसे अध्यापक को पुलिस ‘मास्टर माइंड’ अपराधी क्यों बोल रही हैं?इन दिनों मैं कर्ज में डूब चुका हूं। अभी लड़की की शादी है और कर्जा लेकर ही जमानत हुई है।यह कैसा न्याय है? कैसी मानवता है? क्या गरीबों-दलितों का कोई मान-सम्मान नहीं है? हमारे दुःख को देखकर व पुलिसिया दमन को देखकर गांव भर में होली का त्यौहार नहीं मनाया गया।अभी जमानत मिली तो एक अखबार में खबर निकली कि ‘हत्या, डकैती, लूट में लगा गैंगस्टर।’ वाह रे कानून व्यवस्था! मनगढ़ंत कहानियां बनाकर मुझ जैसों को फंसाने का अधिकार पुलिस को कैसे मिल गया है?कैदियों को जेल में जानवरों जैसा भोजन मिलता था लेकिन कोई जांच नहीं।कैदियों को नहाने-धोने के लिए बाल्टी-लोटा तक नहीं दिया जाता। वैसे ही जमीन पर नहाना पड़ता था। हमें लगने लगा कि जेल तो गरीबों, दलितों, निर्दोषोंके साथ गाली-गलौजकरने, यातना देने के लिए ही बनी है।’’

अभियुक्त-विजय शंकर राम, पुत्र श्री यमुना राम, ग्राम-गवरपुरा, थाना-रसड़ा, पेशा-दिहाड़ी मजदूरी

विजय के घर 10 फरवरी 2013 को सुबह करीब 3 बजे छापामारी की। पुलिस ने शराब का बहाना बनाकर घर के सभी सामान तितर-बितर ंकर दिया, महिलाओं के साथ अभद्र गाली-गलौजकी तथा धमकी दी। पुलिस प्रताड़ना से डरकर विजय शंकर ने घर छोड़ दिया। घर में अकेली उनकी पत्नी सविता व तीन बच्चे मिले। पुलिस लगातार उनके घर पर आती रही है। पुलिस की एक टीम उनके घर का गहना और कीमती सामान उठा ले गयी है। विजय की पत्नी बीमार हालत में रहती हैं। उनके घर की तलाशी के वक्त कोई महिला पुलिस नहीं थी। कोई आय न होने के कारण सविता अपने पति विजय के लिए कोई कानूनी मदद भी नहीं कर पा रही है। अब पुलिस ने इसी मुकदमे और उन्हीं धाराओं में विजय के घर पर कुर्की का वारंट चस्पा कर दिया है।

#  अभियुक्त-श्रीराम राम, गांव-मुडि़यारी, थाना मनियर, जाति-चमार

श्रीराम राम के घर पर पुलिस ने तीन बार छापेमारी की। महिलाओं के साथ भी मारपीट और गाली-गलौज की। पुलिस श्रीराम की पत्नी से दो मोबाइल और एक डायरी छीनकर ले गयी। दूसरी बार जब श्रीराम को पुलिस पकड़कर ले गयी तो मनियर थाना में रखा और दरोगा ने धमकी दी कि ‘सही-सही बता दो नहींतो हाथ में हथियार दिखाकर मुठभेड़ में जान से मार दूंगा।’ गांव के प्रधान के निवेदन करने पर पुलिस ने श्रीराम को छोड़ दिया और कहा कि जब भी थाने पर बुलाया जाये तो आना पड़ेगा।

# अभियुक्त-राजेश राम, पुत्र-श्री दूधनाथ राम, ग्राम-कोटवारी, थाना-रसड़ा, जाति-चमार

राजेश राम को 11 फरवरी 2013 को घर से रात 12 बजे उठा ले गयी। रात भर थाने में पुलिस ने टार्चर किया, किन्तु सुबह जब सैकड़ों ग्रामीणों ने थाने का घेराव किया तो उनको छोड़ दिया गया। गांव के लोगों ने बताया कि पुलिस गांव के 40लोगों की लिस्ट बनाकर ले गयी है। गांव में कई बार छापेमारी चली। जिससे अधिकांश नौजवानों कोफरार होना पड़ा।

                                        निष्कर्ष

1.     बलिया में शक्तिशाली सामन्ती तत्व-गुण्डे-बदमाश, जमींदार, आदि प्रभावशाली तबकों के साथ पुलिस का गठजोड़ कायम हुआ प्रतीत होता है। परिणामस्वरूप गांवों में गरीब किसान, भूमिहीन, दलित जातियों मंे आतंक व भय व्याप्त है।
2.     मेहनतकश वर्ग के कुछ जागरूक व्यक्तियों को दबाने के लिए यहां किसी भी हद तक दमन का सहारा लिया जा सकता है।
3.     मालूम होता है कि प्रशासन किसी जागरूक, जनवादी या दमन विरोधी जन संगठन को बनने नहीं देना चाहता। इसके लिए झूठा मुकदमा तक बनाकर नक्सली या संगठित गिरोह बताकर जन संगठनों को कुचला जा सकता है।


                                       हमारी मांगें

1.     सभी निर्दोष लोगों पर से मुकदमे वापस लिये जाय।
2.     दोषी पुुलिस कर्मियों को बर्खास्त करंे।
3.     जनवादी संगठनों को ‘संगठित गिरोह’ बताना या किसी भी तरह प्रतिबन्ध लगाना बन्द हो।
4.     पुलिस द्वारा अनावश्यक छापामारी या तलाशी बन्द हो और महिला पुलिसकर्मियों को ऐसे अभियानों में अनिवार्य रूप से शामिल करें।

                     फैक्ट-फाइडिंग टीम के सदस्यगण

1.     प्रशान्त राही-स्वतन्त्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
2.     राजाराम चैधरी-गोरखपुर जिला महासचिव, पी.यू.सी.एल.
3.     शिव प्रसाद सिंह-एडवोकेट, वाराणसी
4.     सुशील-डेमोक्रैटिक स्टूडेण्ट्स यूनियन, दिल्ली
5.     रोहित-भगत सिंह छात्र मोर्चा, बी.एच.यू.
6.     राधेश्याम-विधि छात्र, हरिश्चन्द्र पी.जी. कालेज, वाराणसी
7.     ओमप्रकाश-पत्रकारिता छात्र, बी.एच.यू.
8.     राजेश- छात्र युवा एकता मंच, आजमगढ़

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Wednesday, June 12, 2013

बुनकर एकता मंच का नशाखोरी के खिलाफ एक परचा


     कोरस (कोरेक्स) और अन्य  सभी तरह की नशाखोरी के खिलाफ बजरडीहा की समस्त जनता एकजुट हों !
  अवैध तरीके से कोरस (कोरेक्स ) और अन्य सभी तरह के नशा बेचने वाली दुकानों का विरोध करो ! !

साथियों ,
          जैसा कि आप सब को मालुम है बजरडीहा में आज नशाखोरी की समस्या एक भयंकर रूप ले चुकी है। नशाखोरी की लत खासतौर पर हमारे घर-परिवार,पास-पड़ोस,मोहल्ले आदि के नौजवानो में बहुत तेजी से फैलती जा रही है। आज 100 मे से 60-70 घरों मे कम से कम एक युवा नशाखोरी का अवश्य शिकार है। नशाखोरी का आलम यह है कि  नशा करने वाले लोग अपने घर-परिवार,पास-पड़ोस,मोहल्ले आदि के घरों के सामान और बर्तन तक चोरी  करके नशे का सामान खरीदने के लिए मजबूर हैं। यही कारण  है कि  आज बजरडीहा में चोरी की समस्या बढ़ती जा रही है। नशाखोरी के कारण युवाओं की स्थिति  ऐसी हो गयी है कि नशे का सामान खरीदने के लिए वे अपना खून तक बेच रहे हैं। नशाखोरी की यह समस्या खास तौर पर बिनकारी करने वाले नौजवानों के बीच बहुत तेजी से बढ़ रही है। बिनकारी करने वाले नौजवान अपनी कमाई का सारा हिस्सा नशाखोरी करने में खर्च कर देते हैं। जिससे घर-परिवार की हालात भी दिन-प्रतिदिन  बिगड़ती जाती है चूँकि बजरडीहा एक बुनकर बाहुल्य इलाका है इसलिए नशाखोरी की यह समस्या बुनकरों के बीच ही ज्यादा पैर पसार रही है। 
  नशाखोरी की यह लत केवल पुरुषों के बीच ही बढ़ रही है की माहिलाओं के बीच। लेकिन सबसे ज्यादा कष्ट महिलाऑं को ही उठाना पड़ता है। घर का सारा काम करने के बाद उन्हें नशाखोरी की समस्या से भी जूझना पड़ता है।आज बजरडीहा में सैकड़ों युवा नशाखोरी के शिकार हैं। हर साल जाने कितने नौजवानों को नशे की लत के कारण अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है,ऐसे में आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि नशाखोरी की यह समस्या बजरडीहा में क्यों बढ़ रही है? और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? जैसा कि देखा गया है कि अगर हमारे आस-पास नशा बेचने वाली दुकानें  खोल दी जाती हैं तो देर-सवेर हमारे घर के बच्चो,बूढों तथा नौजवानों को अपने आप नशे की लत लग जाती है, ठीक उसी तरह जैसे हमारे आस-पास चाय और पान की दुकानों को खोलने पर बच्चों,बूढों तथा नौजवानों को चाय ,पान करने की लत लग जाती है अतः नशाखोरी की समस्या बढ़ने के लिए नशा करने वाले नहीं बल्कि नशा बेचने वाले जिम्मेदार हैं और साथ ही यह सरकार जिम्मेदार है जो की नशाखोरी को बढ़ावा दे रही है। 
      जैसा कि हम सब जानते है  कुछ खास तरह कि दवाओं का सेवन नशे के रूप में हमारे यहाँ के नौजवान कर रहे हैं। ये दवायें  मेडिकल की दुकानों पर अवैध तरीके से खुलेआम बेची जा रही हैं। इन दवाओं में मुख्यतया कफ सिरफ यानी खाँसी की दवाएं,पेन किलर्स यानी  दर्द की टिकिया आदि हैं। इन दवाओं  पर सरकार  ने रोक लगा रखा है क्योंकि ये दवाएं ओवरडोज लेने पर नशे का काम करती है। अगर कोई यह दवा खरीदता या बेचता है तो उसे किसी झोला छाप नहीं बल्कि प्रमाणिक डाक्टर द्वारा लिखित पर्चे को दिखाकर के ही खरीद सकता है या लिखित पर्चे को देख कर ही कोई दुकानदार इसे बेंच सकता है। लेकिन बजरडीहा की दवा की दुकानों पर ये दवाएं खुलेआम बिना किसी डाक्टर के द्वारा लिखित पर्चे के अथवा बिना सलाह -मशविरा के बिक रही हैं। ऐसी दुकानों की संख्या बजरडीहा में लगभग 20-25 होगी। इन दवाओं का नाम कोरेक्स ,कफ़बैन ,फीक्साडील ,रिसकफ़ आदि हैं। इन दवाओं में 30-40 प्रतिशत अल्कोहल की मात्रा  होती है। जिससे इन दवाओं का अधिक सेवन करने के बाद शराब की तरह नशा होता है।चूँकि शराब  की बुराई के बारे में सबको मालूम है इसलिए शराब खरीदने में नौजवानों को हिचकिचाहट होती है। अतः इसके विकल्प के रूप में इन दवाओं का सेवन करना आसान होता है क्योंकि इन पर कोई रोक-टोक नहीं है और लोगों को पता भी नहीं चलता है। 
    आज अगर वक्त रहते बजरडीहा के लोग नशाखोरी के खिलाफ एकजुट नहीं होते हैं तो वह समय दूर नहीं है कि हमारे घर-परिवार,पास-पड़ोस,मोहल्ले आदि के बच्चों,नौजवानों की एक पूरी पीढ़ी नशाखोरी के कारण मौत के मुह में चली जाएगी। हमारी सारी  मेहनत की कमाई नशे में चली जाएगी और हमारे समाज और कौम का विकास रुक जायेगा। अतः हमारा संगठन बजरडीहा के सभी बड़े बुजुर्ग ,महिलाओं तथा नौजवानों  से यह अपील करता है की नशाखोरी के खिलाफ एकजुट हो, नशा बेचने वाली दुकानों का विरोध करें और अपनी बात को सरकार तक पहुचाने के लिए जल्द से जल्द एक विरोध प्रदर्शन करने के लिए तैयार हो जायें।
                बुनकर   एकता   मंच
संपर्क सूत्र :- 9696745969,7505666842,9935490917,7499732643