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Monday, February 3, 2014

रितेश विद्यार्थी और विनोद शंकर की कविता -

                 



दुबले पतले सिधे-साधे

हमेसा करते क्रान्ति की बाते

ये बच्चे मुझे लगते है सबसे प्यारे

इन बच्चों को साथ चलते देखना

हमेशा हँसते और बोलते देखना

कितना अच्छा लगता है ।


रात-दिन छात्रों से मिलते

उन्हें समझते और समझाते

पर्चे बाटते, पोस्टर चिपकाते

छात्रों के हित के लिये

पुरे विश्वविद्यालय प्रशासन से टकराते

खुद जगते सबको जगाते

देश दुनियां के संघर्षरत जनता

के खबरों से सबको अवगत कराते

ये कितने होनहार हैं लगते ।


क्रान्ति का पाठ पढ़ते और पढ़ाते

छात्र-छात्राओं के लिये

पुलिस और गुन्डों से टकराते

नौकर और गुलाम बनाने वाले

इन शिक्षण संस्थानों मे

छात्रों और शिक्षको को क्रान्तिकारी बनाते

ये कितने गम्भीर हैं लगते ।


सामंतो और शोषको के संस्कृति को तोड़ते

अपनी संस्कृति खुद बनाते

जनता के दुख-दर्द के गीत गाते

खुद उनके बीच जाते

उनके संघर्षों में कंधे से कंधा मिलाते

इंक़लाब जिन्दाबाद ! के नारे लगाते

ये कितने क्रान्तिकारी है लगते ।


इन बच्चों क होना भगत सिंह का होना है

उनके उम्मीदों और सपनो का जिन्दा रहना है

इन्हीं बच्चों मे कोई बनेगा लेनिन और माओ

और करेगा संघर्षरत जनता का नेतृत्व

ये सोचकर इन पर कितना गर्व होता है ।


इन्ही बच्चों मे मै भी एक बच्चा हुँ

जनता के संघर्षों,सपनो और उम्मिदों के गीत गाता हुँ

और इनके साथ चलते हुये

मर जाना चाहता हुँ ।


कभी ये सोच के भी

निराश हो जाता हु

कि इन बच्चों के नही रहने पर

ये विश्वविद्यालय कितना सुना लगेगा

ये देश कितना सुना लगेगा

और ये दुनियां कितनी सुनी लगेगी ।


फिर हर जगह पसर रही

इस मुर्दा शान्ति को कौन भंग करेगा

छात्रों और नौजवानो के

मजदुरों और किसानों के

बीच जाने को कौन कहेगा

पर सच बात तो ये है कि

 ये बच्चे आते-जाते रहेंगे


क्रान्ति के गीत गाते रहेंगे

याद दिलाते रहेंगे कि

जवानी का मतलब किसी के प्यार मे मरना

उसी मे दिन-रात डुबे रहना

और टुटपुंजिया नौकरियों के लिये

खुद को बेचना नही होता है

जवानी का मतलब बेहतर समाज

 के लिये मर मिटना होता है


                                                 - विनोद शंकर      


वे हमले करते हैं

क्योंकि वे डरते हैं

कि कहीं लोग हो न जाएं जागरुक

लूट दमन व दलाली के इस व्यवस्था के  विरूद्ध  

और वे पड़ न जाएं अलग-थलग

 हो न जाएं नंगे जनता के सामने

क्योंकि हम निर्मित कर रहे हैं

एक नई वैचारिक पीढ़ी को

हम कर रहे हैं अपने दुश्मनों को दोस्तों से अलग

अपने अखबार-पत्रिकाओं से

अपने लेखकों को एकजुट

कर रहे हैं संगठित

शोषणविहीन समाज का सपना लिये लोगों को

क्योंकि हम खत्म कर देना चाहते हैं

हर अन्यायपूर्ण बंटवारे को

इसलिये हम लैश कर रहे हैं

लोगों को

विचारों और हथियरों से

वे तेज कर रहे हैं

जनता पर चौतरफ़ा युद्ध

वे बेंच देना चाह्ते हैं अपने फ़ायदे के लिये

जल-जंगल-जमीन-हवा-सभ्यता-संस्कृति

और सब कुछ

क्योंकि वे खुद बिके हुये हैं

विदेशी ताकतों के  हाथों

वे बनाये रखना चाहते हैं

जनता को गुलाम

जनता एकजुट न हो सके

ईसलिये सुरक्षित रखना चाहते हैं

जातियों को,धर्मों को

ताकि कर सकें

अपने फायदे के लिये इनका इस्तेमाल

वे पैदा करते हैं

हमारे बीच से अपने दलाल

वे चाहते हैं

कि जनता बनी रहे इन गुलामों की गुलाम

लेकिन वे नही जानते हैं

कि सिर्फ़ और सिर्फ़

जनता ही होती है इतिहास की वास्तविक निर्माता



वे हमले करते हैं

क्योंकि हम लड़ते हैं

महिलाओं के सम्मान के लिये

छात्रों-नौजवानों के बेहतर भविष्य के लिये

दलितों-अल्पसंख्यको की बराबरी के हक के लिये

अपने श्रम के मुल्य पर श्रमिकों के अधिकार के लिये

जमीन जोतने वालों के लिये

जल-जंगल और जमीन पर जनता के हक के लिये


वे हमले करते हैं

क्योंकि जनता लड़ रही हैं

अपनी मुक्ति के लिये

और हम खड़ होते हैं

जनता की मुक्ति के संघर्षों के साथ


वे हमले करते है

क्योंकि हम बनाते हैं

शोषण व अन्याय के विरुद्ध संगठन

स्कूलों में-कालेजों में, खेतों में-खलिहानों में

गांवों में-जंगलों में, फ़ैक्ट्रियों में, झुग्गियों में-झोपड़ियों में


वे हमले करते हैं

कि वे डरा देंगे हमें

और हम समेट लेंगे अपना बोरिया-बिस्तर

हम बंद कर देंगे

पर्चे बांटना,पोस्टर लगाना,गीत गाना,नाटक करना

आवाज उठाना, लड़ाई लड़ना

लेकिन वे नहीं जानते हैं

कि देश के सम्मान और जनता कि मुक्ति के लिये

हमारे भीतर मर-मिटने की कितनी बेचैनी हैं

क्योंकि हम जानते हैं

अशफ़ाक,बिस्मिल,भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु,चन्द्रशेखर आज़ाद

कि तरह हमारी शहादत भी

हमारी आने वाली राजनैतिक पीढ़ियों को

जोश व उत्साह से भर देगी

और वे जिंदा रखेंगे इस संघर्ष को

जो अन्याय, शोषण व गैरबराबरी के खिलाफ़ शुरू  हुआ था


वे हमले करते हैं

क्योंकि वे नहीं जानते

वे नहीं लेते इतिहास से यह सबक

कि ''दमन की इन्तहां प्रतिरोध की धार को और पैना कर देती है''।


                   - रितेश विद्यार्थी


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