Powered By Blogger

Saturday, November 22, 2014

बीएचयू में छात्रसंघ आंदोलन

छात्र  एकता  ज़िंदाबाद  !           मुकम्मल छात्रसंघ बहाल करो !!
  • गिरफ्तार छात्रों को तत्काल रिहा करो !
  • बीएचयू में छात्रसंघ आंदोलन पर पुलिसिया दमन का विरोध करें  !!
  • विश्वविद्यालय प्रशासन व गुंडा तत्वों के मिलीभगत से छात्रसंघ आंदोलन को बदनाम करने व छात्र एकता को तोड़ने की शाजिस का पर्दाफास करें  !!!
  • विश्वविद्यालय परिसर से पुलिस व पीएसी को तत्काल बहार निकालो !!!!
  • निकाले गए छात्रों की हॉस्टल  व्यवस्था को तत्काल बहाल करो !!!!!

साथियों ,
             बीएचयू में पिछले कई दिनों से छात्र परिषद के बहिष्कार व मुकम्मल छात्रसंघ की बहाली के लिए चल रहा आंदोलन अब एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है ।  धरना, प्रदर्शन व भूख हड़ताल से होते हुए यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ रहा था | लेकिन छात्रों के तमान विरोधो व आंदोलनों के बावजूद वि०वि० प्रशासन ने छात्र परिषद चुनाव कराने की तिथि घोषित कर दी | प्रशासन के इस निर्णय ने आग में घी डालने का काम किया | इस तरह से बेहद शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा आंदोलन उग्र रूप लेने लगा | छात्रों ने कक्षा बहिष्कार शुरू कर दिया और   वि०वि० से लगे गेटो को बंद कर दिया | 


          स्थिति तब बहुत ज्यादा बिगड़ गयी जब प्रशासन के निर्देश पर पुलिस व पीएसीने आन्दोलनरत छात्रों पर लाठीचार्ज कर दिया | इस घटना से छात्र उग्र हो गए और पुरे वि०वि में छात्रों व पुलिस के बीच गुरिल्ला संघर्ष छिड़ गया | इस संघर्ष में बिरला ,राजाराम व लाल बहादुर शास्त्री  आदि छात्रावासों के छात्रों की अग्रणी भूमिका रही | संघर्ष को उग्र रूप लेता  देख कुलपति ने छात्र परिषद चुनाव को रद्द करने की घोषणा कर दी | लेकिन जैसा की हमेशा से होता आ रहा है प्रशासन ने एक बार फिर बांटो और राज करो की नीति को अपनाया | वि०वि० प्रशासन ने कुछ गुंडा तत्वों व सत्ताधारी राजनितिक पार्टियों के दलालों की मिलीभगत से एक बार फिर छात्र एकता को तोड़ने व  छात्रसंघ को बदनाम करने की साजिश शुरू कर दी | और अगले ही दिन यानी २१ नवम्बर को वि०वि० में छात्रसंघ बहाली के लिए चल रहा आंदोलन बिरला बनाम ब्रोचा छात्रावास व साईंस बनाम आर्ट्स के आपसी मुठभेड़  का शिकार हो गया |

        इस स्थिति का फायदा उठाते हुए वि०वि० प्रशासन व जिला प्रशासन ने कैम्पस को पुलिस छावनी में बदल दिया | सैकड़ो -हजारो की संख्या में पुलिस व पीएसी के जवान कैम्पस में गश्त करने लगे | छात्रों को बेरहमी से पीटा गया |  बिरला ,राजाराम व लाल बहादुर शाश्त्री छात्रावास को बलपूर्वक खली करा दिया गया | इसके लिए हॉस्टल वार्डेन को सूचित करना भी जरुरी  नहीं समझा गया | सैकड़ो की तादात में छात्रों को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया | हॉस्टल कर्मचारियों और वार्डेन को भी नहीं बख्शा गया |करीब डेढ़ दर्जन छात्रों पर गंभीर धाराए लगायी गयी हैं  | 

बीसीएम छात्रसंघ बहाली जैसे बुनियादी व लोकतांत्रिक माँगो के पुलिसिया दमन का तीखा विरोध करता है तथा प्रशासन से तत्काल सभी छात्रों को रिहा करने व उनकी हॉस्टल व्यवस्था को बहाल करने की मांग करता है | तथा छात्रों से अपील करता है कि वह आपसी एकता व एकजुटता को बनाये रखे व छात्रसंघ बहाली के आंदोलन को जारी रखें |

Friday, November 21, 2014

भगत सिंह छात्र मोर्चा का दूसरा सम्मलेन सफलतापूर्वक सम्पन्न


      भगत सिंह छात्र मोर्चा का दूसरा एकदिवसीय सम्मलेन १५ नवम्बर २०१४ को सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया | जिसमे बीसीएम ने अपनी पुरानी १३ सदस्यीय कार्यकारिणी को भंगा किया और ११ सदस्यीय नई कार्यकारिणी कागठन किया | इसके आलावा कुछ नए पदाधिकारियों का चुनाव सर्वसम्मति से किया गया | जिससे की संगठन के काम-काज को और विस्तार दिया जा सके तथा आगे बढ़ाया जा सके | 

           भगत सिंह छात्र मोर्चा
                                             का
                दूसरा सम्मलेन
                    15 nov 2014

       इससे पहले सम्मलेन का शुरुआत करते हुए अध्यक्ष शैलेश ने अपने स्वागत भाषण में सम्मलेन में उपस्थित हुए अपने पुराने और नए सदस्यों का क्रन्तिकारी अभिवादन करते हुए संगठन के वर्तमान स्तिथि के बारे में सबको बताया | देश और कैम्पस के वर्तमान हालत पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि आज विकास के नाम पर भारत के दलाल शासक वर्ग देश के प्राकृतिक संसाधनो और शहरों को भी बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के हवाले कर रहा है | पहले तो हमें एक ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमें गुलाम बनाया आज बहुत सारी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हमें गुलाम बनाने आ रही है | ऐसे समय में हमारे जैसे संगठनो कि जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है | कि होम शासक वर्ग कि नीतिओं का पर्दाफास करे छात्रों और आम जनता को राजनीतिक रूप से सचेत ,जागरूक और संगठित करे तभी हम अपने देश को बचा सकते है और शहीद भगत सिंह के सपनो का भारत बना सकते है |

         सम्मलेन के पहले सत्र शुरू होने से पहले मशाल सांस्कृतिक मंच के साथियों ने गीत गाकर सदस्यों का अभिवादन किया | इसके बाद इलाहबाद से आये आईसीएम के पूर्वअध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता विश्वविजय ने उद्घाटन भाषण दिया उन्होंने विकास के माडल पर अपनी बात रखते हुए मोदी सरकार के मेक इन इंडिया कि नीतियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि देश एक दूसरी गुलामी में प्रवेश करने जा रहा है | आज देश में जनविरोधी नीतियों के खिलाफ पुरे देश में जनता आंदोलित हो रही है | जिन्हे सरकार विकास विरोधी और देशद्रोही बता कर दमन कर रही है | हमें इन सब को भी छात्रों और बुद्धिजीवियों को बताना चाहिए | छात्रों और शिक्षको को जनता के बीच ले जाने की कोशिश बीसीएम को करना चाहिए |

       सम्मलेन के पहले सत्र में साथी विनोद शंकर ने कार्यकारिणी की तरफ से बीसीएम की राजनीतिक-सांगठनिक रिपोर्ट पढ़ कर सुनाया | जिस पर सदस्यों ने अपनी बात रखते हुए कुछ कमियों और उपलब्धियों को बताया | इसके बाद घोषणापत्र-संविधान , मांगे व कार्यक्रम सदस्यों के बीच पढ़ा गया जिसे बहुमत से पास किया गया और सम्मलेन की अवधि को १ वर्ष से बढाकर दो वष कर दिया गया है | इसी बीच विभिन्न कारणों से संगठन छोड़कर जानेवाले सदस्यों और पदाधिकारियों का त्यागपत्र भी पढ़ कर सम्मलेन में सुनाया गया | दूसरे सत्र में नई कार्यकारिणी और नए पदाधिकारियों का चयन सर्वसम्मति से किया गया | जिसमें शैलेश (अध्यक्ष),आरती(उपाध्यक्ष),रितेश(सचिव),विनोद(सहसचिव),दिवेश(कोषाध्यक्ष),मनीष,धीरज,रोहित,शुशील,दुर्गेश,संतोष है |

          अन्त में सम्मलेन ने कुछ राजनीतिक प्रस्ताव पास किया जिसमे मुख्यतः मुनाफा केंद्रित विकास के मॉडल का पर्दाफास करना और मानव केंद्रित विकास के मॉडल के लिए संघर्ष करना है,छात्र परिषद का पूर्णतः बहिष्कार करना और लिंगदोह के खिलाफ व मुकम्मल छात्रसंघ के लिए संघर्ष करना आदि प्रस्ताव लिए गए |

Thursday, November 6, 2014

जेल से रिहा होने के बाद आईआईटी बीएचयू के छात्रों को प्रशांत राही का सम्बोधन :

   सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता व पत्रकार प्रशांत राही जिन्होंने IIT,BHU से ही बीटेक ,एमटेक और रिसर्च किया | प्रशांत राही अपने इस करियर की सुरुआत बीएचयू की शुरुआती दिनों अर्थात बीटेक के समय से ही की थी | तब परिसर में एक संगठन गतिविधि विचार मंच कार्य करता था जिसमें मुख्य रूप से सुभाष गाताड़े आदि लोग काम कर रहे थे | उसमें प्रशांत राही ने सक्रियता से भाग लिया और सामाजिक कार्यों में इतना व्यस्त होने की वजह से रिसर्च को बीच में ही छोड़ दिया |  बाद में उत्तराखंड में अलग राज्य की मांग व बांधों के विरोध में चल रहे आंदोलनों सक्रियता से भाग लिया | फिर सामाजिक-राजनीतिक  जीवन के दौरान जेल जीवन के बारे में प्रशांत राही ने अपने अनुभव साझा किया |

 प्रशांत राही की रिहाई के लिए व UAPA,124A जैसे काले कानूनों के खिलाफ संदीप पाण्डेय के नेतृत्व में आईआईटी बीएचयू के छात्रों व भगत सिंह छात्र मोर्चा ने संयुक्त रूप से एक आंदोलन चलाया था | जिसके फलस्वरूप आज प्रशांत राही हमारे सामने है | LT-1 NEW LECTURE BUILDING IIT,BHU में चल रहे "प्रशांत राही से बातचीत" कार्यक्रम में सैकड़ों छात्र-छात्राओं,बुद्धिजीवियों ने भागीदारी की |

प्रशांत राही के रिसर्च गाइड रहे प्रोफ़ेसर ए.एन त्रिपाठी ने भी अपनी बात रखते हुए कहा कि मुझे बहुत ख़ुशी है कि प्रशांत आज हम लोगों के सामने लेक्चर दे रहा है | प्रशांत जब भी जेल से छूटता है तो मुझसे जरूर मिलाने आता है | अगर छात्र इंसानियत-समाज के बारे  में नहीं सोचेगा केवल वह स्वार्थी होता चला जायेगा तो इस पढाई का कोई मतलब नहीं |

 इसके बाद प्रश्नोत्तर का दौर चला  जिसमे कई छात्र-छात्राओं ने UAPA,नक्सलवाद ,हिंसा ,पूंजीवाद और आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी से सम्बंधित सवाल पूछे  |
 प्रश्नोत्तर हो जाने के बाद प्रो ० असीम मुखर्जी ,सुनील सहस्त्रबुद्धे ,संदीप पाण्डेय और प्रो० आर.के.मंडल ने भी अपनी बात रखी | कार्यक्रम का संचालन  निखिल जैन ने किया |

Sunday, November 2, 2014

नागपुर सेन्ट्रल जेल से हेम मिश्रा का पत्र

दोस्तो,  
        पिछले महीने अगस्त की 20 तारीख को महाराष्ट्र की पुलिस द्वारा मेरी गिरफ्तारी किए एक साल पूरा हो गया है। एक संस्कृतिकर्मी और दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र रहने के बावजूद मुझ पर यूएपीए (गैर कानूनी गतिविधि निवारण कानून) की विभिन्न धाराएं लगाई गई हैं। और नागपुर सेंट्रल जेल के अति सुरक्षा विभाग (High Security Cell) ”अंडा सेल” की तनहाइयों में रखा गया है। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली सत्र न्यायालय (Session Court) ने 6 सितंबर 2014 को मेरी जमानत की अर्जी भी खारिज कर दी है। नागपुर सेंट्रल जेल की इन बंद दीवारों के बीच मुझे न्यायालय से न्याय की किरण फूट पड़ने की उम्मीद थी। लेकिन, न्यायालय ने मेरी जमानत याचिका खारिज कर मेरी इन उम्मीदों पर विराम लगा दिया है। न्यायालय का यह आदेश प्रकृति द्वारा मुझे दिए गए खुली हवा में जीने के अधिकार के खिलाफ जाता है। आज जनवाद व न्यायपसंद लोगों के संघर्षों की बदौलत सत्ता के शिकार जेलों में बंद हजारों हजार लोगाें की जमानत जल्द से जल्द सुनिश्चित किए जाने के अधिकार का सवाल एक ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। जिसके चलते सर्वोच्च न्यायालय भी इसी नतीजे पर पहुंची है कि सभी न्यायाधीन बंदियों की जमानत के इस अधिकार को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। और समय समय पर अपने अधीन न्यायालयों को इस संबंध में दिशा निर्देश भी देते रही है। इसके बावजूद भी सत्र न्यायालय ने मुझेे जमानत देने से इनकार कर मुझसे यह अधिकार छीन लिया है। और मुझ जैसे संस्कृति कर्मी को जेल की इन बंद दीवारों के बीच तनहाइयों में रहने को विवश कर दिया है ।


 पिछले साल अगस्त महीने में अपनी गिरफ्तारी से पहले मैं नई दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का छात्र था। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के साथ साथ, देश दुनिया के ज्वलंत विषयों पर होने वाले सेमीनार, पब्लिक मीटिंग, चर्चाओं छात्रों के जनवादी अधिकारों के लिए संघर्ष व जातीय उत्पीड़न, कारखानों में मजदूरों के शोषण,भूमि अधिग्रहण कर किसानों को उनकी जमीन से बेदखल किए जाने, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, जनवादी आंदोलनों पर दमन और साम्राज्यवाद द्वारा जनता पर थोपे जा रहे युद्धों के खिलाफ होने वाले संघर्षों में भागीदारी मरे छात्र जीवन का हिस्सा थी। छात्रों के इन संघर्षों में सांस्कृतिक प्रतिरोध को अनिवार्य मानते हुए एक संस्कृतिकर्मी के रूप में जनता के संघर्ष के गीतों व नाटकों के जरिए मेरी भागीदारी रहती थी। एक संस्कृतिकर्मी के रूप में मेरे इस सफर की शुरूआत उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा शहर से हुई। मुझे याद है जब मैं अल्मोड़ा से तकरीबन 30 किमी दूर एक अत्यंत पिछड़े हुए अपने गांव से स्कूल की पढ़ाई के लिए इस शहर में आया था, तब पृथक उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए आंदोलन चल रहा था। आंदोलन में शामिल नौजवान अक्सर स्कूलों को भी बंद करवाकर हजारों की संख्या में स्कूली छात्रों की राज्य आंदोलन की रैलियों में भागीदारी करवाते थे। इस तरह मैं भी राज्य बनाने के लिए चल रही इस लड़ाई का अंतिम दौर में हिस्सा हो गया। उस आंदोलन में समाज के हर तबके के लोग शामिल थे। छात्र, अध्यापक, कर्मचारी, महिलाएं, मजदूर, किसान, लेखक, पत्रकार, वकील और संस्कृतिकर्मी इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी कर रहे थे। विकास से कोसों दूर उत्तराखंड की महिलाओं के दर्द, युवाओं की बेरोजगारी की पीड़ा, पलायन, बराबरी पर आधारित समाज के सपने और जनवादी उत्तराखंड के निर्माण की रूपरेखा को अपने गीतों में समाये हुए मशहूर रंगकर्मी गिरीश तिवारी गिर्दा को हजारों हजार जनता के बीच गाते हुए देखना मुझे इन सांस्कृतिक गतिविधियों की ओर खींच लाया। स्कूली पढ़ाई के बाद जब मैं उच्च शिक्षा के लिए काॅलेज में आया मैंने देखा काॅलेज में उत्तराखंड राज्य आंदोलन से उद्वेलित कई नौजवान अपनी पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों के हकों की लड़ाई व एक जनवादी उत्तराखंड के निर्माण की लड़ाइयो में भागीदारी कर रहे थे। बराबरी पर आधारित शोषण-विहीन समाज का सपना संजोए, इन छात्रों के साथ मैं भी उन संघर्षों में भाग लेने लगा। जनगीत नाटक व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां इन संघर्षोें का प्रमुुख हिस्सा बन गए थे। जिनके जरिए हम छात्रों को उनके अधिकारों और समाज में चारों ओर हो रहे शोषण, अन्याय व उत्पीड़न के बारे में जागरूक करते थे। पृथक राज्य बन जाने के बाद भी उत्तराखंड के पहाड़ों में कुछ भी नहीं बदला। बड़ी-बड़ी मुनाफाखोर कंपनियों द्वारा यहां के प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसोट जनता को उनकी जमीन से बेदखल किया जाना, सरकारों द्वारा बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं पास कर नदियों को देशी-विदेशी कंपनियों के हवाले कर देना, पर्यावरण के नाम पर सेंचुरी और बड़े पार्क बनाकर जनता को उनके जंगलों पर अधिकारों से वंचित किया जाना, शिक्षित-प्रशिक्षित युवाओं का बेरोजगारी के जलते पलायन, महिलाओं पर अत्याचार, जातीय उत्पीड़न, प्राइवेट कंपनियों में मजदूरों के श्रम की लूट, ये सब कुछ पहले की तरह ही जारी रहा। राज्य में बड़े-2 भूमाफिया, शराब के तस्कर, दिनों दूरनी रात चैगूनी गति से पनपने लगे। सत्ता के नशे में चूूर सरकारें जनता के दुखदर्दों से बेखबर ही रहीं। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान खटीमा, मंसूरी व मुजफ्फरनगर में आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवाने वाले और महिलाओं के साथ बलात्कार करवाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का कुछ नहीं हुआ बल्कि उन्हें तरक्की ही दी गई। इस सबसे पैदा हुए असंतोष के कारण इन सवालों को लेकर फिर से अलग-2 आंदोलन होने लगे। मेरा भी इन आंदोलनों में हिस्सा लेना जारी रहा। इन्हीं आंदोलनों के दौरान कई छात्र साथियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, भूमिहीन किसानों मजदूरों व महिलाओं को राजद्रोह जैसे काले कानूनों में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इन साथियों की रिहाई के लिए हुए आंदोलनों में भी मैंने बराबर भागीदारी की। उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय में गणित विषय के साथ स्नातक व पत्रकारिता एवं जनसंचार में पीजी डिप्लोमा करने के बाद मैं वर्ष 2010 में चीनी भाषा की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली के प्रतिष्ठित संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय आ गया। जेएनयू में पढ़ाई के दौरान मुुझे मशहूर चिकित्सक डा. प्रकाश आम्टे के बारे में पता चला। महाराष्ट्र के भमरागढ़ में बेहद पिछड़े इलाकों में आदिवासियों के बीच उनके स्वास्थ के क्षेत्र में किए गए कार्यों से प्रभावित होकर मैं उनसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक था। अपनी इसी उत्सुकता के चलते मैं 19 अगस्त 2013 को उनसे मिलने के लिए दिल्ली से चला आया। अगले दिन यानी 20 अगस्त 2013 को तकरीबन सुबह 9:30 बजे बल्लारशाह रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरने के बाद मैं भमरागढ़ के हेमलकसा में स्थित डा. आम्टे के अस्पताल जाने के लिए वाहन ढूंढने रेलवे स्टेशन से बाहर जाने ही वाला था, तभी किसी ने अचानक पीछे से आकर मुझे अपने हाथों से मजबूती से पकड़ लिया। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता कि मुझे कोई इस तरह क्यों पकड़ रहा है एक के बाद एक 10-12 और लोग आकर मुझ पर झपट पड़े। ऐसी स्थिति में अपने साथ कुछ बुरा होने वाला है सोचकर मैं जोर जोर से चिल्लाने लगा ताकि आस पास से कोई मेरी तदद के लिए आ जाए। मेरे चिल्लाने से खुद को खतरा समझ इन लोगों ने अपने हाथों से मेरा मुंह बंद कर दिया। और मुझे कुछ कदम की दूरी पर खड़ी एक टाटा सुमो नुमा वाहन में ठूंसकर वहां से ले गए। मुझे पता नहीं था कि ये लोग कौन हैं और मुझे इस तरह अपहरण कर कहां ले जा रहे हैं। कुछ ही देर में मेरी आखों सहित पूरे चेहरे को एक काले कपड़े से बांध दिया गया और उनमें से एक ने मेरे दोंनों हाथों को कसकर पकड़ लिया ताकि न तो मैं देख सकूं, कि मुझे कहां ले जाया जा रहा है। और ना ही अपने हाथों से उनके लात-घूसों से अपना बचाव कर पाऊं। चलते हुए, वाहन में मुझे इस तरह पकड़ लिए जाने और कहां ले जाया जा रहा है यह जानने की कोशिश करने पर जवाब में गालियां, धमकी और लात घूसों से मार पड़ती। इसी तरह लगभग एक घंटे बाद उनमें से किसी एक ने मेरे चेहरे से काले कपड़े को हटाकर अपना आइ कार्ड दिखाया तब मुझे मालूम चला मेरा इस तरह अपहरण करने वाले कोई और नहीं बल्कि खुद गढ़चिरौली पुलिस के स्पेशल ब्रांच के लोग थे। मुझे कहां ले जाया जा रहा है मुझे अब भी इसकी जानकारी नहीं दी गई। इसके लगभग दो घंटे बाद मुझे गाड़ी से उतारकर मेरी आंखों से काली पट्टी हटा दी गई। काली पट्टी हटा दिए जाने के बाद मैंने देखा मेरे बांयी ओर एक बड़े मैदान में एक हैलीकाॅप्टर खड़ा है और उसके आस-पास वर्दी में कुछ पुलिस के सिपाही चहलकदमी कर रहे हैं। मेरे दांयी ओर कुछ सरकारी बिल्डिंग्स और मेरे सामने की ओर भी कुछ बिल्डिंग थी। उनमें से एक बिल्डिंग की पहली मंजिल में मुझे ले जाया गया और कमरे में थोड़ी देर रखने के बाद एक अन्य कमरे में ले जाया गया। उस कमरे में ले जाते वक्त मेरी नज़र उस कमरे के बाहर लगी एक नेमप्लेट पर पड़ी। तब जाकर मुझे पता चला कि मुझे गढ़चिरौली पुलिस हैडक्वार्टर में तत्कालीन एसपी सुवैज हक के केबिन में ले जाया जा रहा है। केबिन में एक आलीशान चेयर पर बैठे सुवैज हक को मैंने अपना परिचय दिया और मुझे बिना कारण इस तरह गैर कानूनी तरीके से पकड़ लिए जाने का कारण पूछा। सुवैज हक भी खुद मुझे धमकियां देने लगे। थोड़ी ही देर बाद दो स्थानीय ग्रामीण युवकों को वहां लाया गया। दरअसल, इन युवकों को मेरी ही तरह कहीं पकड़कर यहां लाया गया था। ये वही आदिवासी युवा हैं जिन्हें पुलिस मेरे साथ गिरफ्तार किए जाने का दावा कर रही है। मेरे सामने उन युवकों के साथ जिस तरह बर्ताव किया जा रहा था उससे मैं समझ गया पुलिस द्वारा मुझे इस तरीके से पकड़ने के पीछे क्या मंसूबे हैं। इसके बाद मुझे दूसरे कमरे में ले जाया गया, जहां अगले तीन दिनों तक मुझ पर पुलिसिया उत्पीड़न के हर तरीके इस्तेमाल किए गए। बाजीराव (जिससे मारने पर शरीर में अधिकतम चोट लगती है और घाव भी नहीं दिखाई पड़ते) से मारा गया। पावों के तलवों में डण्डों से मारा गया। लात-घूंसों से मारा गया और हाथों से पूरे शरीर को नोंचा जाता। इन सब तरीकों से तीन दिनों तक बेहोशी की हालत तक हर रोज मारा जाता था। इन तीन दिनों में एक पल के लिए भी सोने नहीं दिया गया। इन क्रूर यातनाओं भरे तीन दिनों तक अवैध हिरासत में रखने के बाद मुझे दिनांक 23/08/13 को अहेरी पुलिस थाने के लाॅकअप में ला पटका। इस तरह पकडे जाने के लगभग 80 घंटों के बाद अहेरी के मजिस्ट्रेट कोर्ट में पेश किया गया। मेरे द्वारा बार-बार कहे जाने के बावजूद पुलिस ने अब तक मेरे घर में मुझे पकड़ लिए जाने की सूचना भी नहीं दी गई थी। जब मैंने कोर्ट में मजिस्ट्रेट से खुद मेरे घर में सूचना देने की बात कही तब पुलिस ने कोर्ट से ही मेरे परिचितों को सूचना देनी पड़ी। इस दिन मजिस्ट्रेट कोर्ट से मुझे 10 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में ले लिया गया। मुझे 20 अगस्त 2013 को बल्लहारशाह रेलवे स्टेशन से पकड़कर 3 दिनों तक अवैध हिरासत में रखने के बाद पुलिस ने कोर्ट और मीडिया ने मुझे बल्लहारशाह से लगभग 300 किमी दूर अहेरी बस स्टैंड के पास गिरफ्तार किए जाने का दावा किया। दरअसल पूरी तरीके से झूठे इस दावे का मकसद 3 दिनों तक मुझे अवैध हिरासत में रखे जाने को कोर्ट और मीडिया के जरिए दुनिया के सामने मेरी गिरफ्तारी को वैध दिखाना था। 2 सितंबर 2013 को पुलिस द्वारा कोर्ट पेशी में मजिस्ट्रेट से मेरी पुलिस हिरासत को और 14 दिनों के लिए बढ़ा लिया गया। इस तरह कुल 24 दिनों तक मुझे पुलिस हिरासत में रखा गया। इन 24 दिनों तक मुझे अहेरी पुलिस थाने के एक बहुत ही गंदे व बद्बू भर लाॅकअप में रखा गया। लाॅक-अप में मुझे केवल जिंदा भर रखने के लिए खाना दिया जाता था। पहले 10 दिनों तक न तो मुझे नहाने दिया गया और न ही ब्रश करने दिया गया। मुझसे मेरे कपड़े ब्रश, पैसे, आईकार्ड सब कुछ गिरफ्तारी के समय ही छीना जा चुका था। 2 सितम्बर की कोर्ट पेशी के दिन मेरे पिताजी और दोस्तों द्वारा कपड़े, ब्रश, साबुन और रोजाना जरूरत की चीजें दी गई तब जाकर मुझे नहाना, ब्रश करना और इतने दिनों से पसीने में भीग चुके गंदे कपड़ों को बदल पाना नसीब हुआ। पुलिस हिरासत के 24 दिनों में महाराष्ट्र पुलिस, एसटीएस, आईबी, और दिल्ली, उत्तराखंड, यूपी, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश की इंटेलीजेंस ऐजेंसियां मुझे ठीक उसी तरह शारिरिक व मानसिक यातनाएं देती रही जिस तरह तीन दिनों की अवैध हिरासत में दी गईं थी। पुलिस द्वारा मेरे फेसबुक , जीमेल, रेडिफमेल की आईडी, लेकर इनका पासवर्ड भी ट्रेक कर लिया। मुझे पूरा यकीन है पुलिस और इंटेलीजेंस ऐजेंसियां अभी भी मेरे ईमेल और फेसबुक अकाउंट का दुरूपयोग कर रही होंगी। पूरे देश और दुनिया में मेरी गिरफ्तारी का विरोध होने के बावजूद पुलिस हिरासत में मुझे यातनाएं देने का सिलसिला जारी रहा। इतना ही नहीं पुलिस की योजना में मुझे और भी ज्यादा समय तक पुलिस हिरासत में रखना था। और इसके लिए उन्होंने 16 सितम्बर 2013 को मेरी कोर्ट पेशी के दिन कोशिश भी की लेकिन कोर्ट में मेरे वकील द्वारा हस्तक्षेप करने पर कहीं जाकर इनकी यह कोशिश सफल नहीं हुई। उस दिन मजिस्ट्रेट ने मुझे इस यातना शिविर (पुलिस हिरासत) में न भेजकर न्यायिक हिरासत में सेंट्रल जेल भेज दिया। नागपुर सेंट्रल जेल पहुंचने पर मुझे जेल के बैरेक संख्या-8 में भेज दिया गया। यह वही बैरेक है जहां मेरी तरह ही देशद्रोह और यूएपीए जैसे जनविरोधी कानूनों में गिरफ्तार किए गए महाराष्ट्र के की युनिवर्सिटियों में पढ़ने वाले छात्र-कार्यकर्ताओं, दलित और लगभग 40 आदिवासी नौजवानों को रखा गया था। झूठे मामलों में फसाए गए इन आदिवासी नौजवानों की संख्या समय के साथ साथ घटते बढते रहती है। जेल में धीरे धीरे समय बीतने पर मुझे इन आदिवासी युवाओं से बातचीत के दौरान, इन्हें महीनों तक पुलिस हिरासत में अमानवीय व क्रूर तरीके से दी गईयातनओं की कहानियां सुनने को मिलीं। कानून की किताबों में जल्द गति से ट्रायल (Speedy Trial) चलाए जाने का अधिकार दिया गया है। लेकिन, इन आदिवासियों में से कोई दो तो कोई तीन और कोई पांच सालों से जेल में यातनाएं झेलने को विवश हैं। न्यूनतम 6 से लेकर अधिकतम 40 तक फर्जी मामलों में जेल में बंद किए गए इन युवाओं के लिए जमानत की उम्मीद करना तो बेईमानी होगी। कोर्ट में महीनों तक इनकी पेशी नहीं होती। कभी एक दो पेशी समय से हो भी जाएं तो अगली पेशी कब होगी इसका कुछ नहीं पता रहता। इनमें से अधिकांश युवाओं के केस गढ़चिरौली सेशन कोर्ट में चल रहे हैं। मेरा केस भी इसी कोर्ट में चल रहा है। इस कोर्ट में प्रत्यक्ष कोर्ट पेशी की व्यवस्था बंद कर दी गई है। प्रत्यक्ष कोर्ट पेशी के स्थान पर वीडियो कांफ्रेंस के जरिए कोर्ट पेशी की जाती है। जिसके चलते बंदियों को न तो अपने केस के संबंध में अपने वकील से बात करने का अवसर मिलता है और नहीं जज से। इस तरीके से होने वाली कोर्ट पेशी में केवल अगली कोर्ट पेशी की तारीख का पता मात्र चल पाता है। अक्सर तकनीकी ख़राबी रहने के कारण यह संभावना भी खत्म हो जाती है। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए पेशी में निष्पक्ष ट्रायल (fair trial) संभव नहीं है। जिसके परिणाम स्वरूप् हाल ही में दो आदिवासियों को सजा भी हो गई। जेल में बंदियों के लिए अपने परिजनों व वकील से मुलाकात जाली लगी खिड़की के जरिए होती है। जेल के भीतर आकर बंदियों से मुलाकात की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण जाली लगी इस अत्यंत भीड़-भाड़ वाली खिड़की के जरिए 15-20 मिनट के समय में बंदियों की दूर-दूर से आने वाले अपने परिजनों और अपने वकील से केस के संबंध में विस्तृत बात हो पाना बिल्कुल भी संभव नहीं है। इस साल 31 जनवरी से जेल में तरह-तरह की यातनाएं झेल रहे 169 जेल बंदियों ने अपनी 4 सत्रीय मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की। इस आंदोलन में यूएपीए, मकोका, व मर्डर के आरोप में जेल में बंद न्यायाधीन बंदी शामिल थे। इस आंदोलन में यूएपीए के केस झेल रही 7 महिलाओं ने भी हिस्सा लिया। आंदोलन की मांगों, जल्द गति से ट्रायल चलाए जाने, न्यायाधीन बंदियों की प्रत्यक्ष कोर्ट पेशी किए जाने, बेल के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों बेल नाॅट जेल, को लागू कर सभी न्यायाधीन बंदियों को जल्द से जल्द बेल दिए जाने जैसी मांगें शामिल थी। आंदोलन के पहले दिन आंदोलन में भाग ले रहे यूएपीए के केस वाले बंदियों को जेल के अतिसुरक्षा विभाग (High Security Cell) अंडा सेल में भेज दिया गया। जिनमें से सात बंदियों (जिनमें से एक मैं भी हूँ) को 7 महीनों से भी अधिक समय से आज तक भी अंडा सेल में ही रखा गया है। हमें जेल के अंदर अन्य बंदियों से मिलने का कोई अवसर नहीं है। अंडा सेल के अंदर बंद दीवारों के बीच बने अत्यंत छोटे-छोटे बैरेक और उनके सामने मात्र 40 मीटर घूमने की जगह ही हमारा संसार है। पिछले एक साल में पुलिस हिरासत की यातनाओं और जेल की तनहाइयों के अनुभव व अपनी तरह जेल में बंद अन्य लोगों की कहानियां जानकर मैं यह महसूस करता हूं कि वे तमाम राजनीतिक व सांस्कृतिक गतिविधियां समाज एवं मेरे ही तरह जेल में बंद अन्य बंदियों की रिहाई के लिए कितनी जरूरी हैं। मेरा आप सभी से अनुरोध है, आप मेरी और विभिन्न जेलों में हजारों की संख्या में बंद आदिवासियों, दलित, महिलाओं, गरीब मजदूर किसानों, कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए आवाज़ उठाएं। 

date . 16-09-2014 
इसी विश्वास के साथ- 
हेम मिश्रा यू.टी.न. 56, 
अतिसुरक्षा विभाग अंडा सेल, 
नागपुर सेंट्रल जेल, नागपुर महाराष्ट्र