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Friday, November 17, 2017

बिरसा मुंडा से लेकर साईं बाबा तक



भगत सिंह छात्र मोर्चा  ने बिरसा मुंडा के 142 वे जयंती पर एक परिचर्चा का आयोजन किया।जिसका विषय- संसाधनों की लूट और इसके खिलाफ आन्दोलन(बिरसा मुंडा से लेकर साईं बाबा तक) था।
बी.एच.यू के मधुबन में यह परिचर्चा 15 नवंबर 2017 को दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक चली।
जिसमे वि.वि. के लगभग 20 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया। गाँव छोड़व नहीं,जंगल छोड़व नहीं गीत भी गाये गये।

परिचर्चा में उपस्थित bcm के सचिव विनोद शंकर ने बिरसा की एक संक्षिप्त जीवनी बताई और आज जल-जंगल-जमीन के चल रही व्यापक आन्दोलन को ही बिरसा मुंडा के आन्दोलन का उन्नत रूप बताया। जिसे आज भारतीय सरकार नक्सल आन्दोलन कह कर आदिवासियों का दमन कर रही है।
आगे दुसरे साथियों में इसी में जोड़ते हुए कहाँ की
आदिवासियों का यह आन्दोलन सिर्फ उनके जीने-मरने का आन्दोलन नहीं बल्की पूरी मानवता को बचाने का आन्दोलन है।
जिस तरह अंग्रेजो के द्वारा बिरसा मुंडा को जेल के अंदर जान से मार कर उनके आन्दोलन को खत्म करने की कोशिश की गई थी उसी तरह जी.एन. साईं बाबा के साथ किया जा रहा है।
मालूम हो की साईं बाबा 90% विकलांक है,जिसे कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास दिया गया है। ये बिलकुल गैर-मानवीय व्यवहार है। साथ ही साथ सभी ने एक समझदारी बनायीं की साईं बाबा को जल्द से जल्द रिहा करना चाहिए।
संसाधनों की लूट के लिए मध्य भारत में  ये सरकार सेना और हथियार के दम पर आसिवासियो की हत्या,बलात्कार,मार-पिट कर रही है।
ताकि वो डर जाय और उनके लिए रास्ता साफ़ कर दे।
इसी के खिलाफ लाखों- लाख आदिवासी एक जुट होकर इसके खिलाफ लड़ भी रहे है।
कुल मिलाकर आज मध्य भारत में भारतीय अर्ध-सैनिक बलों और आदिवासियों के बीच एक भीषण युद्ध चल रहा जिसे ये सरकार लड़ तो रही है पर आम जनता को बताने से बच रही है।
जिन सैनिको को देश की सीमा पर होना चाहिए उन्हें बड़े-बड़े पूंजीपतियों के लिए प्लांट और कच्चा-माल उपलब्ध कराने के लिए आदिवासियों के खिलाफ खड़ा कर दिया गया है।
आज हम सभी यूनिवर्सिटी में पढने वाले विद्यार्थियों-नौजवानों को सरकार के इस कदम का विरोध कर वहां से सैनिक हटाने और आदिवासियों के ऊपर ढाहे जारे जुर्म को जल्द से जल्द समाप्त करने की की मांग की जानी चाहिए।

क्योंकि जब जंगल-नदी-पहाड़ बचेगें तब ही पूरी मानवता बचेगी।आज हम आये दिन प्रदुषण की समस्या और इस से होने वाले मौत के बारे सुनते रहते है।
इसलिए बिरसा मुंडा की लड़ाई और आज मध्य भारत में आदिवासियों की दोनों लड़ाई एक ही है।जबकी आज की लड़ाई पहले के अपेक्षा और उन्नत-बड़ी लड़ाई है क्योकी आज उनके पास समजावाद और साम्यवाद नामक वैज्ञानिक-दर्शन है। जो पूरी मानवता की मुक्ति का दर्शन है।

लड़ो पढाई करने को- पढो समाज बदलने को!
हुल जोहर!   
इन्कलाब जिंदाबाद!   
जल जंगल जमीन की लड़ाई जिंदाबाद!

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