40 संविदाकर्मियों का निष्कासन तत्काल वापस लो !
छात्र-कर्मचारी व शिक्षक संघ को बहाल करो !
दिनांक २४-८-२०१५ से आज कर्मचारियों के भूख हड़ताल का छठवां दिन हैं | साथियों बीएचयू के ये कर्मचारी भूखे-प्यासे अपनी जान जोखिम में डालकर अपनी रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं | यही नहीं बल्कि इनका पूरा परिवार (कई जिंदगियाँ) इस संघर्ष में शामिल हैं | ये संघर्ष इनकी जिंदगी का सवाल बन चुका हैं | इन कर्मचारियों का कहना हैं कि जिस परिसर कि हम वर्षों से सेवा कर रहे हैं आज वही परिसर हमारे लिए बेगाना हो गया हैं | हमें हमारे कामों में महारथ हाशिल हैं , तजुर्बा हैं और वर्षों का अनुभव हैं | ये काम कोई नया कर्मचारी इतनी जल्दी इतने बेहतर ढंग से नहीं कर सकता हैं |लेकिन प्रशासन इन सारी चीजों का बगैर ख्याल किये बिना नोटिस दिए हमें (४० संविदाकर्मियों) नौकरी से निकाल दिया | यही नहीं बीएचयू प्रशासन ने ४७ पदो पर भर्ती का विज्ञापन निकला लेकिन ८३ पदो पर स्थाई भर्ती कर दिया | विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (ugc) द्वारा पारित एक नियम यह हैं कि किसी भी स्थायी भर्ती में २५ प्रतिशत संविदाकर्मियों को कोटा दिया जायेगा | कुछ कर्मचारी पोस्ट अगेंस्ट भी हैं | लेकिन प्रशासन इस कानून का उलंघन कर अपने मन-मुताबिक पैसा लेकर भर्ती कर रहा हैं | इस भ्रष्टाचार में बीएचयू के आला अधिकारी लिप्त हैं | जिसका मुखिया खुद वीसी गिरीश चन्द्र त्रिपाठी हैं |
कर्मचारी दुःख व्यक्त करते हुए कह रहे हैं कि हमारे घर-परिवार का क्या होगा ? माँ-बाप कि सेवा , बीबी-बच्चों कि देखभाल और पढ़ाई सब ठप्प हो गयी हैं |दो वक्त कि रोटी मुहाल हो गयी हैं | घर में चूल्हा जलना मुश्किल हो गया हैं | किसी तरह जिंदगी में इन्हे एक उम्मीद मिली थी | जिसके लिए भी इन्होने डिग्री हाशिल और मेहनत कर इंटरव्यू दिया | तब जाकर नौकरी मिली थी | लेकिन उम्र के इस मोड़ पर , ऐसी स्थिति में और बदलते हुए ज़माने में ये क्या करे ?और कहाँ जाये ?
कर्मचारियों में सन्नी बिरहा ,सुनील ,उमेश गिरी ,छविनाथ सिंह ,उपेन्द्र आमरण अनसन पर हैं | इनके बैनर पर लिखा हैं कि न्याय करो ! भूखमरी से हमें और हमारे परिवार को बचाओ ! ये कर्मचारी जल-विद्द्युत आपूर्ति विभाग,बीएचयू के हैं | इनकी मांग हैं कि निष्कासित ४० कर्मचारियों को बहाल करो और सभी संविदा कर्मचारियों को स्थायी करो | ये लोग मुख्य द्वार बीएचयू,लंका पर अपने बैनर व टेंट लगाकर बैठे हुए हैं | लगातार भाषण-नारों, सभा,लोगों के समर्थन व भूख हड़ताल से संघर्ष जारी रखे हुए हैं | इनके संघर्षों में लोगों कि भागीदारी बढ़ती जा रही हैं | छात्र-कर्मचारी -अध्यापक ,नेता यहाँ तक कि शहर के अन्य तबके रेहड़ी पटरी व्यवसायी व आम लोग भी शामिल होते जा रहे हैं | लेकिन इन हड़तालकर्मियों कि हालत भी बिगड़ती जा रही और प्रशासन कोई खबर तक नहीं ले रहा हैं |
स्थाई नौकरी का अगर हम इतिहास देखे तो पाएंगे कि स्थाई नौकरी मजदूरो के मांगों ,कुर्बानियों ,हड़तालों व क्रांतियों से अस्तित्व में आई थी | लेकिन उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण कि साम्राज्यवादी नीति के बाद स्थाई नौकरी कि अवधारणा ही ख़त्म कि जा रही हैं | यहाँ तक कि अब सरकार कि भी अवधारणा ख़त्म कर कार्पोरेट गवर्नेंस लाया जा रहा हैं | आज कोई भी छात्र स्थाई नौकरी के इतिहास पर रिसर्च करना चाहे तो उसे नहीं करने दिया जायेगा |
साथियों,
आज जो संविदा कर्मचारियों के सामने प्रश्न हैं यह केवल उन्ही का नहीं बल्कि यह छात्रों कभी प्रश्न हैं | साडी मेहनतकस जनता और पुरे देश का प्रश्न हैं |छात्रों को भी नौकरी करनी हैं उन्हें भी यही दिन देखने हैं |
बनारस को क्योटो बनाने के लिए विदेशी दलाल मोदी ने जापान को माडल बनाने के लिए कहा हैं | लेकिन क्या हमारे विश्वविद्यालय के छात्र इस काबिल नहीं हैं कि अपना घर-शहर बना सके ? इससे ज्यादा शर्म कि बात विश्वविद्यालय और छात्रों के लिए क्या हो सकती हैं ?बीएचयू कैम्पस में कितनी पढ़ाई होती हैं,कितनी नौकरी मिलती हैं | यह देश व शिक्षा के भविष्य का कितना निर्माण कर रहा हैं | लोकतंत्र कि कितनी रक्षा कर पा रहा हैं | इसका तो पता नहीं लेकिन हाँ कैम्पस लगातार पीएसी का अड्डा बना हुआ हैं | आरएसएस कि शाखाये चलती हैं, छात्रों से छेड़खानी होती हैं | छिनैती-चोरी होती हैं |
वीसी कहते हैं कि छात्रों को धरना नहीं करना चाहिए नहीं तो उनके अभिभावक से शिकायत कि जाएगी |नेतृत्वकारी छात्रों को हॉस्टल से बाहर कर अलग हॉल(बैरक) में रख दिया जाता हैं |प्रवेश के बाद छात्रों से अंडरटेकिंग ली जाती हैं कि किसी भी धरना-जुलूस में शामिल नहीं होंगी |यही हैं बीएचयू प्रशासन के लोकतंत्र कि संस्कृति | इस निर्माण में इसके मुखिया गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के बारे में किसी से छिपा नही हैं कि ये आरएसएस के हैं और शिक्षा के कितने बड़े माफिया हैं | LPG -PPP के पैरोकार हैं और मोदी द्वारा इन्हे नियुक्त किया गया हैं | ये महानुभाव बहुत ही घटिया तरीके से इन सारी चीजों को अंजाम दे रहे हैं |अब देखना ये हैं कि ये कितने दिन टिकेंगे !
साथियो,
इस स्थिति का सामना सभी को करना हैं क्योकि देश में जो नीति लायी गयी हैं और चल रही हैं उस व्यवस्था में यही होना हैं | हमारे कहने का तात्पर्य यह हैं कि पूरी दुनिया के जितने भी बड़े पूंजीपति (साम्राज्यवादी) हैं उनके लिए जीतनी भी संसदीय-दलाल पार्टिया हैं वह सभी संस्थानों में यही करेंगे | ये काम से काम लगत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा व श्रम लूटना चाहते हैं | चाहे इससे जनता भूखो क्यों न मरे,गरीब ,बदहाल क्यों न रहे |
ऐसे में जब तक देश में एक क्रन्तिकारी बदलाव नहीं होगा तब तक कुछ नहीं होने वाला हैं | इसके लिए जरुरी हैं कि सभी जगह के कर्मचारी-छात्र-अध्यापक व मजदूर-किसान इनके संघर्षों के साथ आये | इनके संघर्षों को ऊर्जा प्रदान करें | ताकि यह लड़ाई जीत में बदल जाये |इन्हीं छोटे-छोटे संघर्षों और जीतों को मिलकर हम एक ऐसे संघर्ष व जीत कि तरफ भी बढ़ेंगे जिससे क्रांति होगी और नव-जनवाद आएगा | तब भगत सिंह जैसे लाखों शहीदो का सपना साकार होगा !