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Tuesday, December 9, 2014

अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे आदिवासी !


      उत्तर प्रदेश में चंदौली जिले के चकिया तहशील के महात्मा गांधी पार्क में आदिवासी-वनवासी जनजाति अधिकार मंच के तहत कुछ स्थानीय आदिवासी अपनी मांगों को लेकर २६-११-२०१४ से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे है | लेकिन अभी तक कोई स्थानीय अधिकारी उनसे बात करने नहीं आया  और न ही प्रदेश सरकार ने उनकी समस्याओं  को जानने की कोशिश की | फिर भी इस कपकपाती शर्दी में खुले मैदान में वे इस संकल्प के साथ  भूख हड़ताल पर बैठे है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जाती है, तब तक वे इस भूख हड़ताल को जारी रखेंगे | भले ही इस ठण्ड में दो-चार लोगों कि जान ही क्यों न चली जाये |

  
        जब हमने उनके बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि वे चंदौली जिला के चकिया थाना के चौबीसहां  बैराठ फॉर्म के रहने वाले है | जहाँ कि जमीन पर उनके पूर्वज काशीराज के वलिनीकरण के समय से ही खेती करते आ रहे है | पहले ये जमीन डा० विभूतिनारायण सिंह पूर्व काशी नरेश को वन विभाग ने दिया था जो उस समय जंगल था | जिसका पूरा क्षेत्रफल एक हजार बीघा है | जिसको आस-पास के आदिवासियों से पेड़,झाड़ी कटवा कर उन्ही को अधिया,शिकमी देकर राजा ने खेती करना शुरू किया, लेकिन उक्त बैराठ फॉर्म राजस्व अभिलेखो में दर्ज नहीं हुआ | इसलिए जमींदारी कानून लागू होने के बाद भी उक्त भूमि जोतने वाले जोतदारों (आदिवासियों) को अपना लाभ नहीं मिला तथा अधिकतम जोत अधिनियम लागू होने के बाद बैराठ फॉर्म की कुल भूमि बचत भूमि घोषित कर दी गयी | इसके बावजूद जोतदार राजा को गल्ला देते रहे | लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि ये जमीन उनकी नहीं सरकार की है तब से उन्होंने पूर्व राजा को गल्ला देना बंद कर दिया और तब से सभी जोतदार खेती करते चले आ रहे है लेकिन जब से प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेतृृत्व में सरकार बनी है उसके कार्यकर्ता,समर्थक और बैराठ फार्म के पड़ोस के गांव के ग्राम प्रधान कल्लू यादव और उनके साथी बैराठ फार्म में आबाद और काबिज आदिवासियों को उजाड़ कर कब्ज़ा करने की नियत से फार्म में घुस कर मड़ईया  लगाना शुरू कर दिए है.
            इसके पहले भी इस प्रधान ने सरकार द्वारा आवास बनाने की योजना के  अंतर्गत आदिवासियों के मकान बनाने के लिए आया पैसा धोखे से आवास स्वीकृत  करा कर उसका पैसा हड़प लिया |  जिससे आवास का निर्माण नहीं हो सका जिसकी जांच व आवश्यक कार्यवाही के लिए आदिवासियों दवारा प्रखंड कार्यालय में कई बार प्राथर्ना पत्र दिया गया, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुयी |


बैराठ फार्म के विवाद के चलते प्रशासन ने इन्हे उस भूमि पर से भी खेती करने से मना कर दिया है | जिस पर बैराठ फार्म की १००० बीघा भूमि में से सीलिंग जमींदारी उन्मूलन कानून लागू होने से पहले सिचाई विभाग ने ४४७ बीघा भूमि अधिग्रहण करके उसमे मोकरम बंधी बनाया और उक्त बंधी के अंतर्गत जितनी भूमि में पानी नहीं रहता उस भूमि पर भी आदिवासी शुरू से खेती करते आ रहे है और शिकमीदार के रूप में पूर्व राजा को लगान भी गल्ला देते रहे है, लेकिन सन १९९५ ई०  से जब यह पता चला की उक्त बंधे की भूमि सिचाई विभाग की है तो राजा को गल्ला देना बंद कर दिया | तब उक्त भूमि के कब्जे के सवाल को लेकर राजा और आदिवासियों के बीच धारा १४५ जमींदारी-फौजदारी का मुकदमा चला जो बाद में वापस ले लिया गया और राजा ने अपना दावा छोड़ दिया | तब से आदिवासी मोकरम बंधी की स्वतंत्र रूप से जोतते चले आ रहे है |

१ . उनकी मांग है कि उन मड़ईयों को तत्काल हटाकर आदिवासियों के कब्जे में दखल देने वाले कल्लू प्रधान व उनके साथियों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाई कि जाये |
२. ग्राम सभा लठिया अंतर्गत अावास निर्माण में धन कि हेरा-फेरी व घपलेबाजी कि जांच कराकर आदिवासियों का आवास निर्माण पूरा कराया जाए और दोषी प्रधान के खिलाफ कार्यवाही करते हुए पैसा वशूल किया जाए |
३, पूर्व से काबिज और मुकरम बंधी में आबाद आदिवासियों द्वारा जोतने-बोने में कोई हस्तक्षेप न किया जाये और जो कोई अन्य हस्तक्षेप करे तो उसके खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही कि जाये |

         कहने को तो प्रदेश में समाजवादी पार्टी कि सरकार है पर ये समाजवाद उनके पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थक के लिए है जो कमजोर तबको के शोषण करने में आगे है | भगत सिंह छात्र मोर्चा इनकी मांगों का समर्थन करता है और इनके संघर्ष में साथ देने का वादा करता है |

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