1 नवम्बर की शाम बनारस के अस्सी घाट पर जलेस,प्रलेस, जसम, ऐपवा,भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीसीएम),स्टूडेंट फॉर चेंज (एसएफसी) व अन्य संगठनो ने साझा तौर पर देश में बढ़ती असहिष्णुता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाया | जिसे राष्ट्रपति को सौपा जायेगा |
इस अभियान को कालबुर्गी व अन्य साहित्यकारों,लेखको,विचारको की हत्या और उन पर बढ़ रहे फासीवादी खतरे के विरोध में तथा साहित्यकारों,लेखको,विचारको,इतिहासकारो,फिल्मकारों,वैज्ञानिको द्वारा पुरष्कार वापसी प्रतिरोध की कड़ी में चलाया जा रहा है |
इस मौके पर मुख्य रूप से काशीनाथ सिंह,ज्ञानेन्द्रपति,चौथीराम यादव ,अवधेस प्रधान ,बलिराज पाण्डेय,श्री प्रकाश शुक्ल,आर.के मंडल,मूलचन्द्र सोनकर व शहर के अन्य बुद्धिजीवी उपस्थित थे | बीसीएम व एसएफसी के साथियो ने अपने गीत "हाथी-हाथी सोर करके गधहो न ले आईलस रे,अच्छा दिन के सपना देखा के बुरा दिन देखयलस रे,कोड़ा मारा ई सारे के हमनी के मूरख बनवलस रे...","चले चलो की आज साथ-साथ चलने की जरुरत है,चलो की ख़त्म हो न जाये जिंदगी की हसरतें "मशाले लेकर चलना कि जब तक रात बाकि है " और नारों (फासीवाद को ध्वस्त करो! अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता पर हमलें बंद करो! फासीवाद का एक जवाब इंकलाब ज़िंदाबाद !) से अभियान का माहौल बनाये रखा |
पंजाब यूनिवर्सिटी से बीएचयू में कबड्डी का टूर्नामेंट खेलने आये छात्रों ने भी हस्ताक्षर किया | चौथीराम यादव ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि हमें बैठ कर कार्यक्रम बनाने कि जरुरत है कि हम अगला और बड़ा प्रतिरोध कब और कैसे करेंगे ? ज्ञानेंद्रपति ने इन घटनाओ के विरोध पिछले दिनों बनारस में हुए प्रतिरोध मार्च जो महसूस किया उस पर आधारित लिखी गयी कविता का पाठ किया |
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