ब्राहम्णवादी हिन्दू फासीवाद मुर्दाबाद ! छूआछूत - जाति व्यवस्था को ध्वस्त करों!
“हिन्दू धर्म मूलतः जाति व्यवस्था और उससे जुड़ा कानून है। इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए श्रुतियों और स्मृतियों का नाश करना होगा। अछूतों के लिए हिन्दू धर्म अथाह उत्पीडन का केन्द्र है और ऐसे गैरबराबरी वाले धर्म को हमें लात मार देनी चाहिए।” - डाॅः भीमराव आम्बेडकर
जब से केंद्र में भाजपा की सरकार, विकास का नारा देकर, हमें मूर्ख बनाकर सत्ता में आयी है। महंगाई आसमान छू रही हैं और बेरोजगारी इनके ”मेक इन इन्डिया” और ”स्किल इन्डिया” के जुमलों से कम होती नजर नही आ रही हैं। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, वही कड़ी मेहनत के बावजूद जनता को जीने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ रहा हैं। जनता की आर्थिक जरूरतों को पूरा करनेे में असफल भाजपा सरकार जनता को सामाजिक बराबरी और न्याय भी देना नही चाहती। रोहित वेमुला के हत्यारे आज भी आजाद हैं वही उनके लिए अन्दोलन कर रहे छात्रों को पुलिस कभी मारती हैं तो कभी जेल में बंद कर देती हैं। संघ द्वारा संचालित ये सरकार, कभी भारत मां, कभी गौरक्षा, तो कभी हिन्दू राज के नाम पर जनता पर ब्राहम्णवादी संस्कृति को थोप रही हैं| खास तौर पर दलितों, मुसलमानों और महिलाओं के लिए हिन्दू राज में सिवाय बेइज़्ज़ती,गुलामी और मौत के अलावा कुछ नही हैं|
हाल ही में भारत के कई राज्यों में गौमांस रखना और खाना संवैधानिक तौर से गैरकानूनी कर दिया गया। तब से दलितों और मुसलमानों पर भारत के राज्यों में गौरक्षा और धर्मरक्षा के नाम पर कई हिंसक हमले हुए, जैसे दादरी में अखलाक को पीट- पीट कर मार देना, फरीदाबाद में दो मुसलमान ट्रक ड्राइवरों को जबरदस्ती गोबर खिलाना, लातेहार में दो मुस्लिम नवयुवको को पेड से लटकाकर मार देना। इस ब्राहम्णवादी व्यवस्था के संरक्षण में गौरक्षा के नाम पर कई कट्टर हिन्दूत्ववादी संगठनों जैसे कि गौरक्षक दल को सरकार और संघ द्वारा ईनाम भी दिए जाते रहे, खासतौर पर गुजरात में। इन सब हमलों के बावजूद सरकारे चुप रही, पुलिस खड़ी तमासा देखती रही, प्रशासन और कोर्ट ने तो कई घटनाओं में गौमांस रखने के आरोप में पिटानेवाले वाले दलितों और मुसलमानों पर ही मुकदमा चला दिया और मीडिया खामोश रहा। मानों कि पूरा तंत्र विकास के एजेन्डे को छोड़ ब्राहम्णवाद और हिन्दूराज को स्थापित करने के लिए दलितों और मुसलमानों को निसाना बना रहा हों।गौरतलब है की गौरक्षा के नाम पर इतना बवाल करने के वाबजूद भी भारत दुनिया में गाय मांश के निर्यात में पहले स्थान पर है |निर्यात करने वाली टॉप की छह कंपनियों में दो ब्राह्मणनो और बाकी बनियों की है |वही चमड़े और मांस का काम, करने वाले दलितों और मुसलमानो के छोटे उद्योगों पर हमला कर उन्हें बंद करवाया जा रहा है|
जनता का दुःख डर में बदल गया और देशभर में आंतक का माहौल छा गया। देश की लोकतांत्रिक और प्रगतिशील आवाजे डर के मारे चुप रही । पर कहते हैं न कि एक चिंगारी पूरे जंगल में आग लगा सकती हैं। जनता का यही डर गुस्से में बदल रहा था जो 11 जुलाई की ऊना की घटना से विस्फोट के रूप में आज गुजरात में ब्राहम्णवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद के नारों के रूप में गूॅज रहा हैं।11 जुलाई, ऊना के पास के एक गांव में, कुछ दलित मरी हुई गाय का चमड़ा निकाल रहे थे| तब गौरक्षक दल के लोगों ने उन दलितों पर बर्बर हमला किया| उन में से चार को अगवा कर शहर ले आये, उन्हे आधा-नंगा कर, गाड़ी से बांध कर, लाठी और डन्डो से मारते हुए, गाली देते हुए,पूरे शहर की भीड़- भाड़ भरी सड़कों पर, पुलिस और प्रशासन के सामने घुमाया। इस घटना के विरोध में दलितों ने मरी हुई गायों को जिलाधिकारी कार्यालय, पुलिस परिसर और संध कार्यालय के सामने फेंका और कहा सवर्णों अपनी मां को तुम ही संभालों।हजारो दलितों ने गंदे पेशे ना करने की शपत ली और अपनी सुरक्षा के लिए हाथियार रखने की राज्य सरकार से मांग की|
यूपी चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी अच्छे और बुरे गौरक्षक दल की बात करते हैं। अपने भाषण में दलितों का हितैसी कहते है पर हमें यह नही भूलना चाहिए कि यही सरकार के नेता, दलितों को कुत्ता, नीच और रड्डी कहते हैं| ये वही सरकार हैं जिसकी मनु स्मृति इरानी ने संसद में रोहित वेमुला की घटना पर ऐलान किया था कि अगर वह गलत हैं तो अपना सर कटवा देगी, पर आज हाल यह कि उसे मंत्रालय छोडना पड़ा। कांग्रेस, आप और अन्य चुनावबाज पार्टियां जो पहले चुप थी, आज अन्दोलन को देखकर अपना सर्मथन दे रहें हैं। साथियों हकिकत ये हैं कि ये सत्ता के लिए दलितों और मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में देखते हैं, मानुष नहीं। कांशीराम जी द्वारा स्थापित बसपा भी आज अपने 12% ब्राहम्ण वोट को बचाने के लिए इस अन्दोलन की गूॅज को यूपी में नही आने दे रही। इस तरह गुजरात के इस अन्दोलन को, देश भर में दलित मूक्ति का अन्दोलन बनने से रोक कर, बसपा सत्ता के लिए बाबा साहब आंबेडकर और दलित जनता से ऐतिहासिक गद्दारी कर रही हैं।
आज के इस ऐतिहासिक क्षण में देश भर की उत्पीड़ित जातियां और शोषित वर्गो को संगठित होकर इस साम्राज्वादी ब्राहम्णवादी व्यवस्था के विरूद अन्दोलन खड़ा करना चाहिए। देश की प्रगतिशील शक्तियों जैसे कि छात्रों और बुध्दिजीवीओं को इस साम्राज्वादी ब्राहम्णवादी व्यवस्था को समझकर जनता के सामने लाना चाहिए और जनता के अन्दोलनों में शामिल होकर देश में जाति व्यवस्था और ब्राहम्णवाद के खिलाफ युध्द छेड़ देना चाहिए| दलितों को अपने इतिहास में की हुुई गलतियों से सीखकर चुनावी पार्टियों की तरह सत्ताखोर होने की बजाय, जाति उन्मूलन और आर्थिक समानता के संघर्ष को आगे रखते हुए, संसाधनों और सत्ता पर कब्जा करना चाहिए। दलितों, मुसलमानों और महिलाओं को अपने स्वाभिमान, इज्जत, आजादी और रोजी रोटी की लड़ाई के लिए साथ जुड़कर शक्तिशाली सयुक्त मोर्चे के रूप में खड़े होकर, साम्राज्वादी ब्राहम्णवादी व्यवस्था को उखाड़ फेकना चाहिए। तभी बाबा साहेब आंबेडकर के सपनो का आर्थिक समानता, सामाजिक बराबरी और न्यायपूर्ण व्यवस्था वाला समाज लाया जा सकता हैं।
“अछुतों तुम सोये हुए शेर हो। उठों, तुम ही इस देश के असली सर्वहारा हो। सामाजिक आंदोलनों से राजनितिक और आर्थिक क्रांति शुरू कर दो| क्रांति के झन्डे को थामकर, क्रांति को बुलन्द करों।”- शहीद भगत सिंह
“हिन्दू धर्म मूलतः जाति व्यवस्था और उससे जुड़ा कानून है। इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए श्रुतियों और स्मृतियों का नाश करना होगा। अछूतों के लिए हिन्दू धर्म अथाह उत्पीडन का केन्द्र है और ऐसे गैरबराबरी वाले धर्म को हमें लात मार देनी चाहिए।” - डाॅः भीमराव आम्बेडकर
साथियों,
अभी गुजरात में एक ऐतिहासिक घटना चल रही हैैं। हजारों-हजार दलित और मुसलमान अहमदाबाद से ऊना तक 350 किलोमीटर तक “आजादी रैली” निकाल रहे है। गुजरात की गली-गली, गांव-गांव और बस्ती-बस्ती -ब्राहाम्णवाद मुर्दाबाद! जतिवाद हो बर्बाद! मोदी, भाजपा तुम शर्म करो! स्ंाघी गुन्डों को जेल करो! इन्क़ालाब जिन्दाबाद! के नारो से गूॅंज रही हैं। हैरान मत होइए कि इसकी खबर अभी तक आपको नही मिली । आप तो जानते ही हैं कि ब्राहाम्णवादी मीडिया अमीरों की जेब में हैं और सत्ता की चापलूसी करती हैं । जनता की समस्याओं और अन्दोलनों से उसे कोई मतलब नही हैं। जब से केंद्र में भाजपा की सरकार, विकास का नारा देकर, हमें मूर्ख बनाकर सत्ता में आयी है। महंगाई आसमान छू रही हैं और बेरोजगारी इनके ”मेक इन इन्डिया” और ”स्किल इन्डिया” के जुमलों से कम होती नजर नही आ रही हैं। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं, वही कड़ी मेहनत के बावजूद जनता को जीने के लिए रोज संघर्ष करना पड़ रहा हैं। जनता की आर्थिक जरूरतों को पूरा करनेे में असफल भाजपा सरकार जनता को सामाजिक बराबरी और न्याय भी देना नही चाहती। रोहित वेमुला के हत्यारे आज भी आजाद हैं वही उनके लिए अन्दोलन कर रहे छात्रों को पुलिस कभी मारती हैं तो कभी जेल में बंद कर देती हैं। संघ द्वारा संचालित ये सरकार, कभी भारत मां, कभी गौरक्षा, तो कभी हिन्दू राज के नाम पर जनता पर ब्राहम्णवादी संस्कृति को थोप रही हैं| खास तौर पर दलितों, मुसलमानों और महिलाओं के लिए हिन्दू राज में सिवाय बेइज़्ज़ती,गुलामी और मौत के अलावा कुछ नही हैं|
हाल ही में भारत के कई राज्यों में गौमांस रखना और खाना संवैधानिक तौर से गैरकानूनी कर दिया गया। तब से दलितों और मुसलमानों पर भारत के राज्यों में गौरक्षा और धर्मरक्षा के नाम पर कई हिंसक हमले हुए, जैसे दादरी में अखलाक को पीट- पीट कर मार देना, फरीदाबाद में दो मुसलमान ट्रक ड्राइवरों को जबरदस्ती गोबर खिलाना, लातेहार में दो मुस्लिम नवयुवको को पेड से लटकाकर मार देना। इस ब्राहम्णवादी व्यवस्था के संरक्षण में गौरक्षा के नाम पर कई कट्टर हिन्दूत्ववादी संगठनों जैसे कि गौरक्षक दल को सरकार और संघ द्वारा ईनाम भी दिए जाते रहे, खासतौर पर गुजरात में। इन सब हमलों के बावजूद सरकारे चुप रही, पुलिस खड़ी तमासा देखती रही, प्रशासन और कोर्ट ने तो कई घटनाओं में गौमांस रखने के आरोप में पिटानेवाले वाले दलितों और मुसलमानों पर ही मुकदमा चला दिया और मीडिया खामोश रहा। मानों कि पूरा तंत्र विकास के एजेन्डे को छोड़ ब्राहम्णवाद और हिन्दूराज को स्थापित करने के लिए दलितों और मुसलमानों को निसाना बना रहा हों।गौरतलब है की गौरक्षा के नाम पर इतना बवाल करने के वाबजूद भी भारत दुनिया में गाय मांश के निर्यात में पहले स्थान पर है |निर्यात करने वाली टॉप की छह कंपनियों में दो ब्राह्मणनो और बाकी बनियों की है |वही चमड़े और मांस का काम, करने वाले दलितों और मुसलमानो के छोटे उद्योगों पर हमला कर उन्हें बंद करवाया जा रहा है|
यूपी चुनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी अच्छे और बुरे गौरक्षक दल की बात करते हैं। अपने भाषण में दलितों का हितैसी कहते है पर हमें यह नही भूलना चाहिए कि यही सरकार के नेता, दलितों को कुत्ता, नीच और रड्डी कहते हैं| ये वही सरकार हैं जिसकी मनु स्मृति इरानी ने संसद में रोहित वेमुला की घटना पर ऐलान किया था कि अगर वह गलत हैं तो अपना सर कटवा देगी, पर आज हाल यह कि उसे मंत्रालय छोडना पड़ा। कांग्रेस, आप और अन्य चुनावबाज पार्टियां जो पहले चुप थी, आज अन्दोलन को देखकर अपना सर्मथन दे रहें हैं। साथियों हकिकत ये हैं कि ये सत्ता के लिए दलितों और मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक के रूप में देखते हैं, मानुष नहीं। कांशीराम जी द्वारा स्थापित बसपा भी आज अपने 12% ब्राहम्ण वोट को बचाने के लिए इस अन्दोलन की गूॅज को यूपी में नही आने दे रही। इस तरह गुजरात के इस अन्दोलन को, देश भर में दलित मूक्ति का अन्दोलन बनने से रोक कर, बसपा सत्ता के लिए बाबा साहब आंबेडकर और दलित जनता से ऐतिहासिक गद्दारी कर रही हैं।
आज के इस ऐतिहासिक क्षण में देश भर की उत्पीड़ित जातियां और शोषित वर्गो को संगठित होकर इस साम्राज्वादी ब्राहम्णवादी व्यवस्था के विरूद अन्दोलन खड़ा करना चाहिए। देश की प्रगतिशील शक्तियों जैसे कि छात्रों और बुध्दिजीवीओं को इस साम्राज्वादी ब्राहम्णवादी व्यवस्था को समझकर जनता के सामने लाना चाहिए और जनता के अन्दोलनों में शामिल होकर देश में जाति व्यवस्था और ब्राहम्णवाद के खिलाफ युध्द छेड़ देना चाहिए| दलितों को अपने इतिहास में की हुुई गलतियों से सीखकर चुनावी पार्टियों की तरह सत्ताखोर होने की बजाय, जाति उन्मूलन और आर्थिक समानता के संघर्ष को आगे रखते हुए, संसाधनों और सत्ता पर कब्जा करना चाहिए। दलितों, मुसलमानों और महिलाओं को अपने स्वाभिमान, इज्जत, आजादी और रोजी रोटी की लड़ाई के लिए साथ जुड़कर शक्तिशाली सयुक्त मोर्चे के रूप में खड़े होकर, साम्राज्वादी ब्राहम्णवादी व्यवस्था को उखाड़ फेकना चाहिए। तभी बाबा साहेब आंबेडकर के सपनो का आर्थिक समानता, सामाजिक बराबरी और न्यायपूर्ण व्यवस्था वाला समाज लाया जा सकता हैं।
“अछुतों तुम सोये हुए शेर हो। उठों, तुम ही इस देश के असली सर्वहारा हो। सामाजिक आंदोलनों से राजनितिक और आर्थिक क्रांति शुरू कर दो| क्रांति के झन्डे को थामकर, क्रांति को बुलन्द करों।”- शहीद भगत सिंह