1 जनवरी 1818 को अंग्रेज़ो की सेना में शामिल 500 महार व कुछ अन्य सैनिकों द्वारा 28 हज़ार पेशवाओं को धूल चटाकर भारत में पेशवाई राज का खात्मा कर दिया। भीमा कोरेगाँव के युद्ध का जश्न, हर साल एक जनवरी को दलित समुदाय और देश के विभिन्न हिस्से से लोग शौर्य दिवस के रूप में मनाने पहुचते हैं।
इस साल चूँकि शौर्य दिवस का 200 साल पूरा हुआ था। इस कारण देश भर से भारी संख्या में दलित समुदाय और विभिन्न आंदोलनों से जुड़े लोग पहुचे थे।
चूँकि 200 साल पहले घटित हुई यह घटना, उनके द्वारा कही जाने वाली तथाकथित अछूतों,शूद्रों द्वारा वर्ण-जाति व्यवस्था को चुनौती देने वाली घटना थी। जहां पर दलितों को इंसान नहीं बल्कि अछूत समझा जाता था। उनके गले मे हाड़ी बांधी जाती थी ताकि उसी में थूकें नहीं तो जमीन अशुद्ध हो जाती थी। कमर में झाड़ू बांधी जाती थी ताकि चलें तो अपने पैरों के निशान भी मिटाते चलें। इसके खिलाफ यह विजययुद्ध मनुवादी श्रेष्ठताबोध को एक जोरदार चोट थी । और इस बार इस घटना का प्रचार प्रसार भी बड़े स्तर पर हुआ था। जिससे ब्राह्मणवादी और हिंदूवादी संगठन काफी घबराये हुए थे। इनका फर्जी श्रेष्ठताबोध जाग गया।
हालांकि ये हिंसक घटना बिना सरकार और स्थानीय पुलिस समर्थन के नहीं घट सकती थी। क्योंकि 30 दिसम्बर को ही अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ ने पहले ही शनिवार वाडा में जश्न मनाये जाने को लेकर आपत्ति जताई थी। पर पुलिस ने इसके वाबजूद इस जगह पर सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम नहीं की।बल्कि मनुवादी मानसिकता की वजह से उनके साथ नजर आयी। पत्थर मारने वालों और गाड़ियों में आग लगाने वाले साथ में भगवा झंडा लिये हुए थे। ये सब पुलिस के सामने होता रहा वो देखती रही। इसलिए दलितों के संघर्ष के इतिहास में , इस सशस्त्र संघर्ष को याद करने के लिए आयोजक एल्गार परिषद को बधाई। यह संघर्ष क्रांतिकारी प्रेरणा देता है। आज के दलित आंदोलन की कुंद धार को तेज करने की। संसदीय अवसरवादी-अस्मितावादी राजनीति की आलोचना करने की। और नव पेशवाई जो साम्राज्यवाद से गठजोड़ कर लिया है उन दोनों को समसान में गाड़ने की। अतः सभी उत्पीड़ित तबके,बराबरी-जनवाद-न्याय पसंद लोग इस घटिया,कायराना,अलोकतांत्रिक घटना का विरोध करें। तथा फासीवादी नव पेशवाई के खिलाफ गोलबंद हो और इसे ध्वस्त करें । जिससे जनवादी समाज निर्माण का रास्ता साफ हो।
#आज यह युद्ध संघर्षरत आदिवासियों,मजदूरों-किसानों,अल्पसंख्यकों,महिलाओं,छात्र-नौजवानों,नागरिक-बुद्धिजीवियों के साथ मिलकर (नव पेशवाई गठजोड़) फासीवादी मनुवादी-सामंती ताकतों और पूँजीवादी-साम्राज्यवादी ताकतों से लड़ना है।
-इंकलाब जिंदाबाद!
-अनुपम, सहसचिव, भगत सिंह छात्र मोर्चा(bcm)
No comments:
Post a Comment