25 जून आपातकाल के अंधेरे दौर को याद करते हुए फ़ासीवाद विरोधी मोर्चा,गोरखपुर परिक्षेत्र ने 28 जून को अधिवक्ता सभागार कलेक्ट्री कचहरी गोरखपुर में एक संगोष्ठी आयोजित किया। जिसका विषय 'भारतीय राज्य का चारित्र:आपातकाल से फ़ासीवाद तक' था।
दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के शिक्षक रहे सामाजिक कार्यकर्ता शमसुल इस्लाम ने गोष्ठी में व्यक्तव्य देते हुए कहा कि "भारत में राजनीतिक फांसीवाद समाज से अपनी ताकत हासिल करता है। ब्राह्मणवाद एक प्रवृत्ति है यह हमारे परिवार से लेकर समाज तक व्याप्त है। ब्राह्मणवाद के कारण राजनीतिक फासीवाद को आधार मिलता है । फांसीवाद भारतीय राजनीति में स्थाई प्रवृति बन गई है। वर्तमान सरकार सामाजिक एवं राजनीतिक दोनों स्तरों पर दमन बढ़ा रही है । उसके दमन से सबसे कमजोर लोग उत्पीड़ित हो रहे हैं।आरएसएस जैसे सांप्रदायिक संगठनों ने कभी लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों का सहयोग किया। आपातकाल में भी माफी मांग कर जेलों से बाहर आए। इसका मुकाबला जनता को साथ लेकर और उसे प्रशिक्षित कर किया जा सकता है।
संगोष्ठी का प्रारंभ करते हुए हिंदी के प्रोफेसर राजेश मल्ल ने कहा कि "ऐसे समय कि हमने परिकल्पना नहीं की थी। एक विशेष सांप्रदायिक संगठन के उभार के साथ पूर्वांचल की परंपरा समाप्त होने लगी है। यहां की उदार संस्कृति का सांप्रदायिकरण किया गया। पूरे समाज को बिहड़ में बदलने की कोशिश की जा रही है। जनता को इस विषय में शिक्षित किया जाना शेष है।
शिक्षक व नेता राम प्रसाद राम ने कहा आज कि "सरकार सभी को अपने विचार व्यक्त करने से रोकती है। सरकार शिक्षा और संस्कृति का भगवाकरण करना चाह रही है ।"
शिक्षक असीम सत्यदेव ने कहा "सत्ता का पूरा जोर लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने का है या सत्ता किसी भी प्रकार की असहमति को बर्दाश्त नहीं कर रही है। जनता जुल्म के खिलाफ एकजुट हो रही है जबकि शासन सत्ता पूंजीपतियों के हित में उनका दमन कर रही है ।
सोनू सिद्धार्थ ने कहा "देश में सामाजिक स्तर पर सैकड़ों बरस से फ़ासीवाद है। आज़ादी के बाद लोकतंत्र से दलित जनता को यह उम्मीद थी कि उन्हें सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक बराबरी मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आज संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही है।"
जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने कहा कि "देश में अघोषित आपातकाल है। मानवाधिकार आयोग उत्तर प्रदेश की पुलिस को कानून के हिसाब से काम न करने वाली बताया। साम्प्रदायिक,जातीय उत्पीड़न की घटनाएं तगतरब्बड़ रहीं है। कबीर के नाम पर पाखंड हो रहा है कबीर के नाम से शुरु करने से अच्छा होता उस आमी नदी को साफ किया जाता। उनके बुनकरों की दशा सुधारी जाती। यह व्यवस्था सिर्फ प्रचार कार्य में ज्यादा मशगूल है। वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं है।
इस संगोष्ठी को बृजेश, महेंद्र, योगेंद्र, शोबिना, राजू, परदेशी बौद्ध जी ने संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो.चंद्रभूषण अंकुर ने किया तथा संचालन कृपाशंकर ने किया। गोष्ठी में जनवादी गीत भी गाकर सभागार को गुंजायमान रखा गया।