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Thursday, July 12, 2018

महान नक्सलबाड़ी विद्रोह के दौरान प्रेसीडेंसी जेल की कक्ष पर एक क्रांतिकारी छात्र की कविता

प्रेसीडेंसी जेल,कोलकाता की एक सेल की दीवार पर लिखी कविता जिसे सम्भवतः किसी विद्यार्थी ने महान नक्सलबाड़ी विद्रोह के समय लिखा था !

शांत!
यहां मेरा भाई सोया है
उसके लिये खड़े मत हो
एक पिला चेहरा और उदास हृदय लिये
वह तो एक मुस्कुराहट है
उसके शरीर को फूलों से मत ढको
एक फूल पर और फूल चढ़ाने से क्या फायदा ?
अगर कर सकते हो
तो उसे अपने दिल मे दफ़नाओ
तुम पाओगे की
तुम्हारे हृदय के पंक्षियों की चहचहाहट से
तुम्हारी सोई हुई आत्मा जाग गयी है
अगर कर सकते हो
तो कुछ आंसू बहाओ
और
बहा दो अपने शरीर का सारा रक्त ।

अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद-अंकित साहिर

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