15 जुलाई को विलास घोघरे, जो क्रांतिकारी जनकवि व दलित एक्टिविस्ट के रूप मे जाने जाते है का स्मृति दिवस है। उन्होंने आजीवन लोकगायन के माध्यम से जनता को इस सड़ी-गली मानवद्रोही व्यवस्था को बदलने के लिए संगठित करने का प्रयास किया। इसके लिए वह गली- गली, चौक - चौराहें पर जाकर जन- गीत गाया। हज़ारों सालों से दलित समुदाय ने जाति के आधार पर शोषण झेला है एवं उसके खात्मा व सम्मानपूर्वक जीवन के लिए संघर्ष किया। 11 जुलाई 1997 को महाराष्ट्र के रमाबाई नगर मे जब ब्राहमणवादियों ने 'डा० अंबेडकर' को जूते- चप्पल का माला पहनाया तो लोगों ने एकत्रित होकर इसका विरोध जताया। लेकिन ब्राह्मनवादी - साम्राज्यवादी राज्यसत्ता के पुलिस ने गुनाहगारों को गिरफ्तार करने के बजाय विरोध करने वालों दलितों को मारा पीटा एवं गोलियां भी चलाई। इस गोलीबारी मे 10 निहत्थे दलित मारे गए तथा दर्जनों घायल हुए। इसके चार दिन बाद घटना से क्षुब्ध होकर विलास घोघरे ने आत्महत्या कर ली। यह बताता है कि आजादी के इतने सालों बाद भी यह व्यवस्था दलितों, मजदूरों, गरीबों, किसानों को न्याय नही दिला सकता।
आनंद पटवर्धन की डॉक्युमेंटरी "जय भीम कॉमरेड" में इस घटना का सर्वेक्षण है।
भगत सिंह छात्र मोर्चा जनकवि विलास घोघरे के संघर्ष को क्रांतिकारी सलाम करता है। जिन्होंने इस शोषणकारी व्यवस्था को बदलने के लिए आजीवन संघर्ष किया।
आनंद पटवर्धन की डॉक्युमेंटरी "जय भीम कॉमरेड" में इस घटना का सर्वेक्षण है।
भगत सिंह छात्र मोर्चा जनकवि विलास घोघरे के संघर्ष को क्रांतिकारी सलाम करता है। जिन्होंने इस शोषणकारी व्यवस्था को बदलने के लिए आजीवन संघर्ष किया।