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Saturday, April 25, 2020

दिल्ली और कश्मीर में कार्यकर्त्ताओं एवं पत्रकारों की दुर्भावनापूर्ण खोज बन्द की जाये तथा कठोर कानून यूएपीए को रद्द किया जाये।



24 अप्रैल, 2020

पिछले दो सप्ताहों के दौरान नई दिल्ली में दिल्ली पुलिस द्वारा अनेकों कार्यकर्ताओं और छात्रों को लक्षित एवं परेशान किया गया है। खुले फर्द बयानों के तहत काम करती पुलिस उन व्यक्तियों, जिनमें से कई कोविड-19 जनित अनियोजित लॉक डाउन के चलते भोजन एवं अन्य जरूरी आपूर्त्ति से मरूहम लोगों एवं मजदूरों को अपरिहार्य रिलीफ प्रदान करने में लगे हुए हैं, को फरवरी 2020 के अन्त में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा को भड़काने और उसमें शामिल होने के आरोप में फंसाने की कोशिश कर रही है। अभी तीन कार्यकर्त्ताओं- जामिया मीलिया इस्लामिया के मीरन हैदर एवं सफूरा जरगर और जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद को यूएपीए जैसे कठोर कानून और आईपीसी की कई संगीन धाराओं में आरोपित किया गया है। 

इन आरोपों को कतई अलग से नहीं देखना चाहिए। बल्कि ये साम्प्रदायिक एवं जन विरोधी नागरिक संशोधन कानन एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ उभरे जोरदार जनवादी अधिकार आन्दोलन को कई तरीके से दबाने की धारावाहिकता में उठाये गए कदम हैं। यह नोट करना चाहिए कि इन व्यक्तियों को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा फैलाने  का आरोप लगाकर राज्य वस्तुतः न्याय का पूर्ण उपहास कर रहा है। 

किसने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में को हिंसा में विध्वंश किया, वह अविवादित था। हालांकि, इसके वास्तविक दोषियों एवं आयोजकों को न केवल स्वतंत्र छोड़ दिया गया है, बल्कि उन्हें पुलिस एवं प्रशासन की सुरक्षा भी प्रदान की गई है। अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा और रागिनी ठाकुर जैसे भाजपा नेताओं, जिनके भड़काऊ एवं साम्प्रदायिक भाषणों को रिकॉर्ड किया गया, जिसमें मुसलमानों और सीएए, एनआरसी एवं एनपीआर विरोधियों के खिलाफ हिंसा करने के आग्रह किये गये अभी तक उन्हें पूछताछ तक नहीं की गई। अनेकों आरएसएस एवं बजरंग दली कार्यकर्त्ताओं, जिन्हेंने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा एंव तोड़-फोड़ करने के लिए हिन्दुत्व भीड़ को गोलबन्द किया और नेतृत्व दिया, पर मुमदमा चलाया नहीं गया है। अनेकों पुलिसकर्मीयों जिन्होंने बर्बरतापूर्वक मुस्लिम युवकों पर हमला किया, सक्रियता के साथ हिन्दुत्व की भीड़ को मदद किया, वे अभी भी दण्डमुक्त होकर गलियों में पेट्रॉलिंग कर रहे हैं और खाना और राशन विहीन दिल्ली के असहाय एवं भूखमरी के शिकार निवासियों पर बर्बरता कर रहे हैं। 

हालांकि, यह सब राजधानी में होता है, कश्मीर की हालत भी अगर बदतर नहीं है तो ऐसी ही है। जबकि भारत में लाक डाऊन 22 मार्च, 2020 से शुरू हुआ, कमश्मीर में 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 को हटाने के बाद से ही लाक डाउन है, जिससे कश्मीरी जनता को अमावनीय शारीरिक एवं मानसिक क्षत्ति पहुंच रही है। आवाजाही की कमी, संसाधनों के अभाव, सूचनाओं पर पाबन्दियां, काम और शिक्षा में व्यवधानें, जिनका, देश की जनता सामना अभी कर रही है, कश्मीरी जनता के जीवन में यह सब पिछले 9 माह से ही चल रहा है। 

देश भर में मेडिकल सुविधाओं की कमी है और कश्मीर में यह कमी और ज्यादा है, जहां डॉक्टर बनाम मरीज का अनुपात देश के औसत से काफी कम है। मसरत जहरा, मुश्ताक गानेई और गौहर गिलानी जैसे पत्रकारों ने कश्मीरी जनता, खासकर कोविड-19 वायरस के फैलने की अवधि में, द्वारा झेली जा रही कठिनाईयों के दस्तावेजीकरण के प्रयास किये गए तो राज्य उनसे नाराज हुआ और उन्हें यूएपीए एवं आईपीसी की कई धाराओं के तहत आरोपित किया गया है। ध्यान देने की बात है कि पत्रकार परजादा आशिक, जिन्होंने कश्मरि से कोविड-19 किटों के जम्मू भेजने की कार्यवाही का पर्दाफाश किया, को भी इसी प्रकार आरोपित किया गया। यह हमारे समय का गंभीर प्रतिबिम्ब है कि यहां तक कि पत्रकारिता के कर्त्तव्य के पालन को भी आतंकी कार्रवाई माना जाता है। 

भारत की मुख्य भूमि में मुसलमानों को लक्षित और दरकिनार करना और कश्मीरियों पर सैनिक दमन चलाना भारतीय राज्य के लिए कोई नई बात नहीं है। हालांकि, एक ऐसे समय में जब व्यापाक जनता की भौतिक हालतों में काफी गिरावट आई हैं और राज्य ने एक ब्राह्मणवादी हिन्दुत्व फासीवादी चरित्र अपना लिया है, इन कार्रवाईयों को हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के कए बड़े अख्यान के हिस्से के तौर पर देखना चाहिए। 
सीएए, एनआरसी एवं एनपीआर को कोविड-19 महामारी के दौरान भी जारी रखने, मरकज को ‘कोरोना जिहाद’ का हिस्सा बताने, आवश्यक सेवाओं को प्रदान करने वाले मुसलमानों का बहिष्कार करने और मुसलमानों (गर्भवती महिलाओं समेत) को मेडिकल सुविधा न देने की प्रयासों को मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। मुख्य धारा की मीडिया ने लोक विमर्श में पूर्वाग्रही एवं कट्टरता पूर्ण भड़काऊ हेडिंग डालकर एवं संदिग्ध रिपोर्टिंग कर साम्प्रदायिक अख्यान को घुसेड़ा है। 

आज भारतीय जनता का एक बड़ा हिस्सा भाजपा नीत केन्द्र सरकार द्वारा लाकडाउन के दौरान भोजन और दूसरे राशन देने की जवाबदेही लेने से इनकार करने के कारण संक्रमण और भूखमरी के दोहरे खतरे का समाना कर रहा है। ऐसे समय में जनता की भोतिक स्थितियों की पूर्ण अवहेलना के खिलाफ एक लोकप्रिय जनाक्रोश फूट सकता है। भाजपा नीति केन्द्र एवं राज्य सरकारें और मुख्यधारा की मीडिया जैसे उनके प्यादों ने इस आक्रोश को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ मोड़ने की पूरजोर कोशिश की है। कोविड-19 और उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के सम्बन्ध में दिल्ली एवं पूरे देश मे इसी तरह की कथा कही जा रही है। यह एक ऐसा अख्यान है, जिसकी तमाम जनवादी और प्रगतिशील ताकतों द्वारा अवश्य ही निन्दा और मुकाबला की जानी चाहिए। अन्त में यह नोट किया जाना चाहिए कि कार्यकर्त्ताओं को दागी बनाना और लक्षित करना उन्हें निरूत्साहित करने और आन्दोलन को दबाने की एक कार्यनीति है, जिसका प्रयोग राज्य द्वारा तेजी से एवं तीव्रता के साथ किया जा रहा है। एल्गार परिषद भीमा कोरेगांव मामले ंमें 11 शिक्षाविदों, वकीलों, पत्रकारों एंव कवियों की गिरफ्तारी हो या अखिल गोगोई, चिंगीज खान, इशरत जहां, डॉ. कफिल खान, खालिद सैफी, सरजील इमाम और कई अन्य की जेल बन्दी यह दर्शाता है कि राज्य किसी प्रकार की असहमति या विरोध के प्रति ज्यादा से ज्यादा असहिष्णु बनता जा रहा है। ऐसे समय में यह इसकी जरूरत है कि जनवादी एवं प्रगतिशील ताकतें अपनी आवाजें बुलन्द करें, नहीं तो सदा के लिए शांत कर दिये जाने का खतरा बढ़ेगा। 

राजकीय दमन विरोधी अभियान (सीएसएसआर) जनवादी एवं प्रगतिशील संगठनों और व्यक्तियों से आग्रह करता है कि वे कार्यकत्ताओं, पत्रकारों एवं छात्रों पर लगाये गए इन आरोपों की निन्दा करें और उनकी रिहाई और साथ ही दुर्भावनापूर्ण खोज को बन्द करने की मांग करें:

1. कठोर कानून यूएपीए के तहत दिल्ली एवं कश्मीर में कार्यकर्त्ताओं और पत्रकारों की दुर्भावनापूर्ण खोज तत्काल बन्द की जाये। 
2. खासकर कोविड-19 महामारी को देखते हुए मनगढन्त मुकदमों में सभी गिरफ्तार राजनीतिक बन्दियों और कार्यकर्त्ताओं को तत्काल रिहा किया जाये। 
3.  सीएए विरोधी आन्दोलन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की आड़ में, खासकर उत्तरी-पूर्वी दिल्ली हुई हिसां के मद्देनजर सभी दोषी व्यक्तियों के खिलाफ (कोविड-19 की सीमाओं के साथ) तात्काल कार्रवाई की जाये। 
4. यूएपीए, एनएसए, पीएसए और दूसरे सभी कठोर कानूनों को रद्द किया जाये। 

*कम्पेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन*

(आयोजक टीम : एआईएसएस, एमआईएसएफ, एपीसीआर, बीसीएम, भीम आर्मी, बिगुल मजदूर दस्ता, बीएससीईएम, सीइएम, सीआरपीपी, सीसीएफ, दिशा, डीआईएसएससी, डीएसयू, आईएपीएल, आईएमके, कर्नाटक जन शक्ति, केवाईएस, लोकपक्ष, एलएसआई, मजदूर अधिकार संगठन, मजदूर पत्रिका, मोर्चा पत्रिका, एनएपीएम, एनबीएस,, एनसीएचआरओ, नवरूज, एनटीयूआई, पीपल्स वाच, रिहाई मंच, समाजवादी जन परिषद, सत्यशेधक संघ, एसएफआई,, यूनाइटेड अंगेस्ट हेट, डब्ल्यूएसएस)

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