15 जुलाई 2020
प्रेस बयान
जेल अधिकारियों ने प्रोफेसर साईबाबा को अपनी हालत के बारे में वकील व परिजनों को अवगत कराने के लिए विशेष अनुमति दी जिसके बाद डॉ जी एन साईबाबा ने अपने परिवार व वकील को किये सबसे ताजा फोन में सूचित किया है कि नागपुर केंद्रीय जेल में कोविड-19 के फैलाव की स्थिति अनियंत्रित है। जेल प्रशासन के सावधानीवश उठाये उपायों के बावजूद सौ लोग कोविड-19 से संक्रमित हो गये हैं, जिनमें सजायाफ्ता, विचाराधीन कैदियों के साथ जेल सुरक्षाकर्मी भी हैं। संक्रमण व्यापक पैमाने पर तेजी से फैल रहा है और एक के बाद एक बैरेक संक्रमित हो रहा है। आठ जुलाई 2020 को अंडा सेल के सभी 20 कैदियों के नमूने जांच के लिए लिये गये और एक कैदी संक्रमित पाया गया। साईबाबा ने कहा, “बीमारी मेरे बहुत करीब पहुंच चुकी है।‘‘ उन्होंने कहा कि ‘कभी भी‘ यह उनके कक्ष तक पहुंच सकती है। उनके कमजोर स्वास्थ्य और मौजूदा बीमारियों के कारण कमजोर व क्षतिग्रस्त इम्युनिटी के कारण साईबाबा ज्यादा नाजुक स्थिति में हैं। उनके अनुसार जो अधिकारी बैरकों का दौरा करते थे, वह भी कोविड-19 से संक्रमित हुए हैं। इस पर अंकुश लगाने के लिए विशेष सुविधा या उपचार नहीं है। इसके अलावा उनके गंभीर रोगों के लिए भी उन्हें उपचार नहीं मुहैया कराया गया। साईंबाबा (53) के वायरस से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा हैं और एक बार संक्रमित हो गये तो उनका इससे उबरना और बच पाना संभव नहीं होगा। जेल ने उन्हें अपनी रोजाना जरूरतें पूरी करने के लिए भी ‘मददगार‘ मुहैया नहीं कराये हैं और उन्हें गंदगी वाली स्थितियों में रहना पड़ रहा है। विशेषकर संक्रमण के बाद उन्हें नितांत अकेला छोड़ दिया जाएगा। यह भयावह है कि यदि उन्हें कोविड पॉजिटिव पाया गया तो उन्हें सेल में अकेले बंद कर दिया जाएगा और स्वास्थ्य सेवा के लिए परिवार के पास जाने भी नहीं दिया जाएगा। यह उनके लिए निश्चित मौत की सजा है क्योंकि अपने वर्तमान हालात में उनमें संक्रमण आसानी से हो सकता है।
छह जुलाई 2020 को अपने पिछले फोन कॉल के दौरान उन्होंने मुझे बताया था कि उनके स्वास्थ्य की हालत अच्छी नहीं है। जेल अधिकारी कोविड-10 लॉकडाऊन के दौरान उन्हें दो बार नागपुर सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल ले गये थे। उन्हें अस्पताल में पांच विभागों में ले जाया गया और उन्हें और टेस्ट कराने की सलाह दी गई व कुछ पेन किल्लर दिये गये। अस्पताल ने एमआरआई-ब्रेन स्कैन व अन्य परीक्षण किये जिनकी रिपोर्ट अभी तक नहीं दी गई हैं। कई बार अनुरोध के बावजूद सितंबर 2018 से पुरानी जांच रिपोर्ट नहीं दी गई हैं। परिजनों के पास चूंकि चिकित्सा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं इसलिए वह उनके स्वास्थ्य संबंधित मुद्दों पर अपने फैमिली डॉक्टर से कोई मार्गदर्शन नहीं ले सकते।
नागपुर सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल डॉक्टरों ने 25 जून 2020 को फिर गाल ब्लैडर हटाने के ऑपरेशन की सलाह दी थी। लेकिन उनके बिगड़ते स्वास्थ्य हालात और कोविड-19 महामारी के कारण ऑपरेशन सही नहीं था क्योंकि उसमें संक्रमण का खतरा ज्यादा है। नागपुर सरकारी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल डॉक्टरों ने गर्म व ठंडे पैक के नियमित इस्तेमाल, सोने के लिए चिकित्सकीय बेड और छह तकिये (लगातार हो रहे दर्द से राहत देने के लिए) मुहैया कराने का सु्झाव दिया था, वह भी नहीं मुहैया नहीं कराया गया।
अब तक उन्हें कोई सहायक अटेंडेंट मुहैया नहीं कराया गया। अटेंडेंट की अनुपलब्धता के कारण वह शौच जाने समेत रोजमर्रा के कार्य तक कर पाने में असमर्थ हैं। उनकी मदद के लिए कोई नहीं है और वह लंबे समय तक गंदे कपड़े व चद्दरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा अस्वच्छ माहौल अक्सर एलर्जी, संक्रमण जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है।
उन्हें मार्च से अखबार नहीं दिये जा रहे हैं। डॉ जीएन साईबाबा ने बताया है कि उनका बायां हाथ लगभग बेकार हो गया है। नर्वस सिस्टम ने दाहिने हाथ को भी प्रभावित किया है। तीव्र दर्द दोनों हाथों में उंगलियों के पोरों तक फैल रहा है।
पैरोल का पहला आवेदन इस आधार पर खारिज किया गया था कि उनके भाई का घर कोविड कन्टेनमेंट जोन में पड़ता था, जैसा कि साइबराबाद आयुक्त ने बताया था। एक महीने बाद भाई ने फिर साईबाबा के पैरोल का आवेदन किया पर संबंधित जेल अधिकारियों से कोई प्रतिसाद नहीं मिला।
14 जुलाई 2020 को बांबे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के समक्ष चिकित्सकीय आधार पर अर्जी दी गई और माननीय उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को दस दिन का समय अपना जवाब देने के लिए दिया और सुनवाई जुलाई के अंत में करना निश्चित किया।
डॉ जी एन साईबाबा हाथों की मांसपेशियों की क्षति के कारण तीव्र शारीरिक दर्द से गुजर रहे हैं। उन्हें पैंक्रिया में सूजन है, उच्च रक्तचाप है, हृदय की पेशियों का रोग है, पीठ में दर्द है, उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत है और अनिद्रा के रोग से भी ग्रस्त हैं। उनका स्वास्थ्य और बिगड़ा अपर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाओं के कारण, दर्द से राहत न मिलने के कारण। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के पदाधिकारियों के हस्तक्षेप के बावजूद अदालतों ने उन्हें लगातार जमानत देने से इंकार किया है। कैदियों के लिए बिना जमानत अनावश्यक देरी अनुच्छेद 21 के तहत जीवन एवं आजादी के मौलिक अधिकार से वंचित करना है।
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को बरकरार रखा है यह कहते हुए, “किसी मनुष्य के प्रति ऐसा व्यवहार जो मानवीय गरिमा को ठेस पहुंचाए, परिहार्य यातनाएं दे और इंसान को पशु के स्तर पर ला दे तो यह मनमानी होगी और अनुच्छेद 14 के तहत इस पर सवाल किया जा सकता है।“ भारत नागरिक व राजनीतिक अधिकारों अंतरराष्ट्रीय नियमों (आईसीसीपीआर) से भी बंधा है जो इंसानों की गरिमा और मुक्त मनुष्यों के नागरिक व राजनीतिक आजादी प्राप्ति के आदर्श को पहचानती है। इसके अलावा भारत ने एक अक्तूबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र के विकलांगों के अधिकार समझौते का भी अनुमोदन किया है। भारत ने कैदियों के व्यवहार पर मापक न्यूनतम नियमों (नेल्सन मंडेला नियम भी कहे जाते हैं) पर संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव भी अपनाया है। यह नियम, समझौते और प्रस्ताव सभी व्यक्तियों, कैदियों, विकलांगों को जीवन व गरिमा सुनिश्चित करते हैं और इसके अमल के लिए आवश्यक मापदंडों की रूपरेखा भी बताते हैं।
कोविड-19 का ऐसे स्थान पर प्रसार डॉ जी एन साईबाबा के लिए मृत्युदंड की तरह होगा। डॉ जी एन साईबाबा की नाजुक स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए, हम महाराष्ट्र सरकार से और केंद्र सरकार से अनुरोध करते हैं कि उन्हें तुरंत जमानत या पैरोल पर रिहा किया जाए ताकि उन्हें हैदराबाद या दिल्ली में जहां उनके पारिवारिक सदस्य रहते हैं, समुचित चिकित्सकीय उपचार मुहैया कराया जा सके।
लोकतंत्र की कैद सभी आवाजों को रिहा करें और उनके जीवन के अधिकार को बचाएं।
ए एस वासंता कुमारी
डा जीएन साईबाबा की पत्नी
नई दिल्ली
जी सूर्यवती
जीएन साईबाबा की मां
और
अन्य परिजन
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