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Monday, July 12, 2021

जनसंख्या नियंत्रण कानून आरएसएस की सांप्रदायिक तानाशाही का एजेंडा है।




 उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण कानून 2021 का नाम सुनते ही हर बार दिमाग में इमर्जेंसी के समय इंदिरा गांधी की नसबंदी नीति दिमाग में कौंध जाती है।सवाल आता है कि ऐसा क्यों है कि तानाशाह सरकारें जनसंख्या को जबरन रोकने की नीति बनती हैं? 

उत्तर प्रदेश में लाया गया यह कानून आरएसएस की  सांप्रदायिक तानाशाही का एजेंडा है।

 2019 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री ने "बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट" का हवाला देते हुए राज्यों से स्थिति पर नियंत्रण के लिए एक्शन लेने को कहा था। ( कांग्रेसी पी चिदंबरम ने भी अपनी इस पुरानी नीति का अनुसरण करते हुए प्रधानमंत्री की इस बात के समर्थन में लिखा) 

बीजेपी आईटी सेल ने ये अतार्किक मेसेज बांटना शुरू कर दिया कि मुसलमानों की इतनी आबादी तेजी से बढ़ रही है कि वे एक दिन हिन्दुओं से भी अधिक हो जाएंगे।

 इस तरह " जनसंख्या विस्फोट और मुसलमान विरोध" आपस में फिर से  जुड़ गए। अब जब ये नया जनसंख्या नियंत्रण कानून उत्तर प्रदेश में आया है तो हिन्दू आबादी खुश है कि ये कानून उनके लिए नहीं मुसलमानों के खिलाफ है।

सच्चाई ये है कि -

1-सरकारी नौकरियां है सरकार पैदा ही नहीं कर रही, तो लोगों को नौकरी के अयोग्य घोषित करने का एक बहाना ये भी बन गया।

2-दरअसल सरकार ने सरकारी नौकरियों की नसबंदी कर उस पर नियंत्रण लगा दिया है, जिस ओर से ध्यान हटाने के लिए "जनसंख्या विस्फोट"  (अघोषित तौर पर मुस्लिम जनसंख्या विस्फोट)का विचार हिन्दू अहम को सहलाने और मूल समस्या से ध्यान हटाने में कारगर होगा।

3-जैसा कि हिन्दू राष्ट्र में विश्वास रखने वालों को भ्रम है  इस कानून का प्रभाव केवल मुसलमानों पर न पड़ कर दलित आदिवासी पिछड़े और सभी गरीब तबकों पर होगा, जो किसी तरह से अब सरकारी नौकरी तक अपनी पहुंच बना रहे थे। 

4- मनुवाद हिन्दू संस्कृति के कारण सदियों से समाज के हाशिए पर धकेल दिए गए लोग एक झटके में सरकारी नौकरियों पदोन्नतियों के के बाहर कर दिए जाएंगे। क्योंकि अशिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच न होने के कारण उनके आमतौर पर दो से अधिक बच्चे हैं। (जिसमें परिवार नियोजन के उपाय भी शामिल हैं) इस तरह यह कानून भारत के संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण के अधिकार के विरोध का कानून है। इस तरह यह संविधान विरोधी कानून है।

5- क्योंकि यह देश सामंती पितृसत्तात्मक है, इसलिए इस कानून का बहुत बुरा असर महिलाओं पर होगा। बेटे की चाहत और दो बच्चों के दबाव में उन्हें बार बार अबोर्शन के लिए मजबूर किया जाएगा, कन्या भ्रूण हत्या में बढ़ोत्तरी होगी, महिलाओं को बेटा पैदा करने के लिए प्रताड़ित किया जाएगा। यह महिला विरोधी कानून है।

इस तरह ऊपर से हिन्दू राष्ट्र का सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने वाला उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण कानून दरअसल दलित, आदिवासी, गरीब, महिला विरोधी और संविधान विरोधी है। ऐसा कानून तानाशाह फासीवादी सरकारें ही ला सकती हैं।

जनसंख्या नियंत्रण करने की सचमुच अगर सरकार की मंशा है तो उसे देश प्रदेश से गरीबी ख़तम करने के उपाय करने चाहिए, ताकि स्वास्थ्य सुविधा और परिवार नियोजन के साधन सब तक आसानी से पहुंच सकें, उसे देश प्रदेश में लोगों को शिक्षित करने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए, ऐसी जनवादी शिक्षा जो पितृसत्तात्मक विचार को भी खत्म करें। उसे ऐसी अर्थव्यवस्था लाने पर काम करना चाहिए जो संपत्ति की पितृसत्तात्मक व्यवस्था को खत्म करे। ताकि सिर्फ बेटा पैदा करने की चाहत खत्म हो।

हम जानते हैं ये सरकारें ऐसा नहीं करने वाली, फिर जनसंख्या नियंत्रण का नाम लेकर वे किस मंशा को पूरा करती हैं, खुद समझ  लीजिए।

- Seema Azad

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