कविआत्मा जी की एक कविता :
पंद्रह अगस्त
चौक चौराहों पर पुलिस की गस्त है,
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |
सर पे टोपी तिरंगा नेताजी के हस्त है,
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |
अनहोनी आशंका से दिल बड़ा त्रस्त है,
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |
गांवों में आज़ादी का सूरज अस्त है,
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |
कुछ लोग काला दिवस मना रहे ,
नकली आज़ादी समझौता परस्त है |
आधी रात अँधेरे में नकली आज़ादी मिली,
नेहरू - एडविना प्रेम में मस्त है |
कौन आज़ाद हुआ कौन गुलाम रहा,
बहस मुहाबसे में सारा देश व्यस्त है |
असली आज़ादी तो क्रांति द्वारा ही मिलती है,
खोखली आज़ादी का देश अभ्यस्त है |
- कविआत्मा
- कविआत्मा
जनग़ज़लकार महेंद्र मिहोनवीं जी की इक ग़ज़ल :
आज़ादी
ये आज़ादी इसीलिए लगती नहीं हमें,
जैसा की तुमको छूट है वैसी नहीं हमें |
कैसे कहें की हम रहते है बाग़ में,
इक पंखुड़ी भी फूल की मिलती नहीं हमें |
तुम कहते हो आसमां में किस्मत लिखी गई,
कुछ भी कहे मगर ये बात जंचती नहीं हमें |
इसकी वजह भी पूछना संगीन जुर्म है,
मेहनत के बाद भी क्यूँ रोटी नहीं हमें |
तिरे निज़ाम में कभी इंशाफ़ भी हुआ,
तारीख तो ऐसी याद आती नहीं हमें |
- महेंद्र मिहोनवीं
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