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Friday, September 5, 2014

आज के समय में मुशहरों की स्थिति

                                   -भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीसीएम) के एक सर्वे पर आधारित
    भारत की तथाकथित नम्बर वन यूनिवर्सिटी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय  (बी.एच.यू.) वाराणसी के पास एवं प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी शहर में एक ऐसी बस्ती हैं जहाँ पर लगभग 250 लोगों का 35 परिवार रहता है। जो कि मुसहर (दलित) समुदाय से वास्ता रखता है। जिनकी आजादी के 68 सालों बाद भी इतनी भयानक स्थिति है कि देश पर शर्म आती है, शर्म आती है ऐसे देश केविश्वविद्यालय पर, शर्म आती हैं ऐसे देश के प्रधानमंत्री पर।
उनकी स्थिती यह है कि वह लगभग 300 सालों से जब से बी.एच.यू. नहीं बना था तब से कई पुश्तों से छित्तूपुर गाँव में एक बीधे के  आस पास जमीन पर रह रहे थे। लेकिन कुछ वर्षों से वहाँ के स्थानीय दबंग ठाकुर सुनील सिंह ने उनकी जमीनों पर कब्जा करना शुरू किया और उनको मामूली सी जगह में समेट कर चारो तरफ से चहारदिवारी घिरवा दी। उसके बाद उनके पास कोर्इ्र्र रास्ता तक नहीं बचा एक रास्ता पतली सकरी गली के रूप मे है जिसमें से (उनके शब्दों मे) लाश भी तिरछी करके ले जायी जाती हैं।
   

वहाँ पर लैट्रीन, बाथरूम, नल, एवं सरकारी योजनाओं का तो कोई नामों-निशान तक नहीं है वह लोग किसी तरह से महीने मे एक-दो हफ्ते मेहनत-मजूरी करके इतनी महँगाई मे शहर मे जीवन गुजार रहे है । उनके साथ दलित जाति के होने के नाते इतनी सामाजिक दिक्कते है कि आज भी उनके साथ छुआछूत-भेदभाव होता है। जिससे वह कोर्इ पेसा या रोजगार नही करते है जैसे बाल काटना, सायकल बनाना आदि।
     उनकी बस्ती में पानी की कोई भी व्यवस्था नही है वहा पर गाँव में   प्रधान के होते हुए भी कोई सरकारी नल एवं सप्लाई के पानी की व्यवस्था नही है। दूसरे के यहा पानी लेने जाने पर वह यह कह कर भगा देते है कि ‘‘सुबह सुबह मुसहर जात खाली डिब्बा लेकर दरवाजे पर आ जाते है जिससे दोष पड़ता है अपशकुन होता है।‘‘

यहाँ पर सरकारी योजनाओं जैसे राशन कार्ड, वोटर कार्ड, जाब कार्ड, आदि की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं हैं। वहाँ के लोग कहतें है कि 15 साल से चुनाव हो रहा है एक ही प्रधान बनते है लेकिन वह कभी भी हमारी बस्ती में नही आये और पूछने पर कहते है कि मुसहर सब बदबू करते है। यहाँ तक कि वोट मांगने भी । प्रधान भी सामंत सुनील सिंह से मिले है और उनके दबाव में रहते है।
      आये दिन उनकी बस्ती मे दबंगो द्वारा जाति सूचक एवं महिला विरोधी गालियां देना जारी हैं। और आज भी दो-तीन लोग ऐसे हैं जो उनके यहाँ बेगारी खटते है और हिसाब-किताब का कोई भी लिखित ब्यौरा नही है। अशिक्षित लोग जानकारी के आभाव में एवं उनके डर से उसके यहाँ काम करने के लिए मजबूर है।
      सबसे बड़ी तो समस्या यह है कि उनके लैट्रीन करने की कोर्इ्र भी व्यवस्था नही होने की वजह से वह शौच के लिए बच्चे, बूढ़े, महिलायें आदि सभी बीएचयू में आते है। और उन्हें किसी तरह विश्वविद्यालय प्रशासन से छिप कर झाड़ियो मे शौच करना पड़ता है। प्रशासन को पता चलने पर महिलाओं के साथ अभद्रता का व्यवहार करते हैं। बीमार होने की स्थिति मे रात विरात में या बारिश होने पर शौच के लिए क्या करना होता होगा यह अकथनीय,अकल्पनीय है।
      शिक्षा की स्थिति तो यह है कि पूरी बस्ती में कोर्इ भी छोटा-बड़ा पढ़ा-लिखा नहीं है एक मात्र नौवी कक्षा मे पढ़ रहे संन्तोश को छोड़कर पिछली साल की बाढ़़ में चार-चार बच्चें, बूढ़े और एक नौजवान कुल मिलाकर नौ लोगो की विमारी से एक महीने के अन्दर ही दखते देखते मौत हो गई।   
   

 इन सारी परिस्थितियों से सारा का सारा प्रशासन सारे मानवाधिकार एवं सामाजिक संगठन बेखबर है । और तो और समस्याओं के निदान के लिए दिए गये प्रार्थना पत्रों धरना प्रदर्शन के बाद भी प्रशासन को कोर्इ फर्क नही पड़ता । इसी देश के इसी बनारस शहर मे जिसे मोदी जी जापान के क्योटो शहर जैसा हाईटेक बनाने जा रहें है तथा कथित आजाद भारत वर्ष
 के 84 वर्ष  बाद भी मुसहरों की बद्तर स्थिति है, क्रूरतम उत्पीड़न है और भयानक छुआछूत है। जिन्हें नाज है कि हिन्द पर वो कहाँ है दलितों कि हितैशी कहलाने वाली पार्टियाँ, जहाँ पर मुसहर अम्बेडकर तक को नहीं जानते है। कहाँ हैं पहचान कि राजनीति करने वाले वे लोग जो लोग अम्बेडकर को दलितों का मसीहां कहा करते है। इसके बावजूद भी कुछ लोग कहते है कि जाति-पाति खत्म हो गई है। देश में ब्राह्मणवाद सामंतवाद नही है। तो आइये महसूस करिये इस जिन्दगी के ताप को हम मुसहरों की गली तक ले चलेंगे आपकों,,।
      अब देखना यह है कि मोदी जी के इस अध्यात्मिक टेक्नोलॉजी , परलौकिक विकास करने वाले शहर मे इस मुसहरों का क्या होगा? कुछ नया या वहीं होगा जों इनके साथ हमेशा से होता आया है।

मुसहर बस्ती छित्तूपूर के 24 परिवारो का सर्वे किया गया जिसके आकड़े प्रस्तुत है -

1. रोजगार की स्थितिः-
क्रमांक रोजगार का स्वरूप स्ंख्या
1. अनियमित मजदूरी (महीने में 15 दिन) का काम करने वाले परिवार 18
2. लकड़ी बीनने, दातून बेचने, एवं दोना, पत्तल बनाने वाले परिवार 6
कुल परिवार  24

2. जॉब कार्ड की स्थिति -

क्रमांकस्थिति(जाँब)स्ंाख्या
1 ऐसे परिवार जिनके पास जॉबजॉब कार्ड नही है। 17
2 ऐसे परिवार जिनके पास जॉब कार्ड हैं काम नही मिला है। 4
3 ऐसे परिवार जिनके पास जाँब कार्ड है और 1 महीने काम मिला है।  3
कुल परिवारो की संख्या 24



3. आवास की स्थिति:-

क्रमांकटावास  संख्या
1 ऐसे परिवारों की संख्या जिनके पास आवास नही है। 23
2 ऐसे परिवार जिनके पास आवास है (अपने पैसे का)  1
कुल परिवारों की संख्या  24

4. शिक्षा की स्थितिः-

क्रमांक  शिक्षासंख्याप्रतिशत
1 अशिक्षित व्यक्तियों की संख्या 198 99ः
2 शिक्षित व्यक्तियों की संख्या  2 1ः
कुल जनसंख्या 200 100ः

5. राशन कार्ड की स्थितिः-

क्रमांक राशन कार्ड संख्या
1 ऐसे परिवार जिनके पास राशन कार्ड है। 17
2 ऐसे परिवार जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। 18
कुल परिवारो की संख्या 35

नोटः- यह सर्वे (बुजुर्ग) पिता के आधार पर किया गया हैं जिसमें 24 परिवार है। लेकिन अलग-अलग रह रहे है। परिवारो एंव घरों के आधार पर परिवारो की संख्या 35 है।
Øराषन महिने में केवल 10 से 15 दिन तक चल पाता हैं बाकी के 15 दिन का स्वयं खरीद कर खाना पड़ता है।

6. बृद्धा पेंशन की स्थितिः-

क्रमांक  बृद्धा पेंशन संख्या
1 ऐसे परिवार जिनके पास बृद्धा पेंशन नहींहै। 20
2 ऐसे परिवार जिनके पास वृद्धापेंशन है परन्तु मिलती नही है। 2
3 ऐसे परिवार जिनके पास वृद्धा पेंशन है परन्तु मिलती भी है। 2
कुल परिवार 24

7. हेल्थ कार्ड की स्थितिः-

क्रमांक हेल्थ कार्ड संख्या
1 ऐसे परिवार जिनके पास हेल्थ कार्ड नही है। 17
2 ऐसे परिवार जिनके पास हेल्थ कार्ड है पर उपयोग नही हुआ। 7
कुल संख्या 24


नोटः- जो भी योजनाये प्रदान भी की गयी है उनके लिए लोगों से पैसा भी लिया गया है। और योजना का कोई उपयोग नही है।


8. पिछली बाढ़ में हुई मौतो की स्थितिः-

क्रमांक मौते  संख्या
1 वृद्धा की हुई मौत की संख्या 4
2 बच्चों की हुई मौतों की संख्या 4
3 नौजवान की हुई मौत की संख्या  1
कुल हुई मौतो की संख्या 9

नोटः- यह केवल एक महीने के अन्दर मौते है। कोई भी सरकारी दवा सुविधा उपलब्ध नही कराई गयी सिवाय छिड़काव के।

और भी कुछ स्थितियाँ -


1. 250 लोगो 35 परिवारों की बस्ती में एक भी नल एंव सौचालय की कोई व्यवस्था नही हैं।
2. केवल  2 लोगों के पास बैंक खाता है। और बाकी लोगो के पास खाता नही है।
3. किसी के पास अपना कोई रोजगार नही है।
4. (मुषहर) दलित होने के नाते अम्बेडकर को जानने वाला कोई नही है।
5. इससेे पहले वह अपनी स्थितियों को लेकर एक बार डी.एम. के यहाँ प्रार्थना पत्र दिये और धरना भी दिये थे। एक बार वह दिल्ली भी गये थे लेकिल कोई भी रिस्पांस नही मिला बल्की वहाँ पर पहले से सामंत सुनील सिंह पहुच जाता था।


विभिन्न प्रशासनिक अधिकारीयों एवं आयोगों को दिया गया पत्र

सेवा में,
श्रीमान् , राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली।

विषय-मुसहर बस्ती की अमानवीय स्थिति और स्थानीय दबंगों द्वारा उनके उत्पीड़न के संदर्भ में।
महोदय,
 सविनय निवेदन है कि हम प्रार्थीगण मुसहर बस्ती छित्तूपुर (बी0एच0यू0), वाराणसी के निवासी हैं। हम लोगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय है। हम लोग किसी तरह मेहनत-मजदूरी करके जिंदा हैं। हम जहाँ रहते हैं वो हमारी पुश्तैनी जमीन है। जहाँ पर हम 250 वर्षों से रह रहे हैं।लेकिन पिछले कुछ वर्षों से स्थानीय दबंगों और गुण्डे तत्वों द्वारा हमारी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा किया जा रहा है। एक-एक करके हमारे आने-जाने के सारे रास्ते बंद कर दिये गये हैं। केवल एक बेहद सकरी गली बची है जिसमें से होकर दो व्यक्ति भी एक साथ नहीं निकल सकते। हमारे यहां पानी, बिजली, सड़क, शौचालय आदि की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां तक की ग्राम पंचायत द्वारा दी जाने वाली या अन्य किसी भी तरह की सरकारी सुविधा या योजना हम तक कभी नहीं पहुँचती है। यहां के ग्राम प्रधान भी उन्हीं दबंगों से मिले हुए हैं और हमारी कोई मदद नहीं करते हैं।
बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों सहित बस्ती के सभी लोगों को शौच के लिये बी0एच0यू0 में चोरी-छिपे जाना पड़ता है। अति तो तब हो गयी है जब हमें पानी सप्लाई के सार्वजनिक नल से भी जबरदस्ती पानी लेने से रोक दिया गया है। अब हमें इसके लिये भी बी0एच0यू0 जाना पड़ रहा है। हमारे यहाँ एक सरकारी हैण्ड पम्प लगा था जो की पिछले कुछ वर्षों से खराब पड़ा हुआ है। बरसात में बस्ती की स्थिति ऐसी हो जाती है कि वहां रहने के लिये जगह ही नहीं बचता है। चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़ और गंदगी फैली रहती है। पिछले साल बाढ़ की वजह से बीमार होकर 8 लोगों की मृत्यु हो गयी थी। लेकिन कोई भी जन प्रतिनिधि या सरकारी अधिकारी हमारी स्थिति जानने के लिये नहीं आया। ये दबंग लोग जो हमारे पड़ोसी ही हैं। हमारी बस्ती में घुसकर जाति सूचक व गंदी-गंदी गालियां देते हैं और अक्सर मार-पीट करते हैं व तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं ताकि हम विवश होकर बस्ती छोड़कर चले जायें और वे हमारी जमीनों पर कब्जा कर लेें। महोदय हम लोगों ने इसके पूर्व भी कई बार अपनी स्थिति को लेकर आपके यहां दरख्वास्त दिया था लेकिन अब तक कोई सुनवायी नहीं हुयी।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हम गरीब व बेबस लोगों को इस अमानवीय एवं अकथनीय परिस्थिति से बाहर निकाला जाय तथा एक मनुष्य कहलाने के लिये जरूरी संसाधनों को तत्काल उपलब्ध कराया जाय। हमारी मांगे इस प्रकार हैं-
1.    हमारे लिये तत्काल पानी तथा शौचालय की व्यवस्था की जाय।
2.    रास्ते तथा आवास की व्यवस्था की जाय।
3.    जलभराव की समस्या का समाधान किया जाय।
4.    साफ-सफाई तथा जल निकासी की व्यवस्था की जाय।
5.    हमें सार्वजनिक नल से पानी न लेने देने, हमारी जमीन पर कब्जा करने व आये दिन जाति सूचक गालियां देने वाले इन गुण्डे व दबंग लोगों से हमारी रक्षा की जाय और उन पर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत व अन्य आवश्यक कानूनी प्रावधानों के अंतर्गत उन पर कार्यवायी की जाय।

प्रतिप्रेषित-
1.    वरिष्ठ पुलिस अधिक्षक, वाराणसी।
2.    जिलाधिकारी, वाराणसी।
3.    मानव संसाधन विकास मंत्रालय, नई दिल्ली।
4.    मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश।
5.    अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग, नई दिल्ली।
6.    राष्ट्रीय महिला आयोग, नई दिल्ली।
7.    प्रधानमंत्री, नई दिल्ली।


प्रार्थीगण (मुसहर बस्ती, छित्तूपुर)                हस्ताक्षर/अंगूठे का निशान



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