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Tuesday, October 20, 2015

फासीवाद के विरोध में पुरष्कार वापसी मुहीम चला रहे साहित्यकारों-लेखको को सलाम !


साथियो , 
         ऐसी क्या स्थिति आ गयी है कि साहित्यकारों,लेखको,विचारको को सम्मान पुरष्कार वापस करने की मुहीम चलानी पड़ी | तब हम देश की हालत पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि, आज हमारे देश में जो स्थिति बनी हुयी है ऐसा पहले कभी नहीं रहा | हमारे देश का सारा आर्थिक विकास अमेरिका व जापान पर निर्भर  है | ये काम देश के गद्दार दलाल शासक वर्गों द्वारा किया जा रहा है | जिसका प्रतिनिधित्व सभी संसदीय पार्टियां और उनके नेता कर रहे है | अभी इस काम को भाजपा व मोदी सबसे तेजी से कर रहे है | इससे भारत कि स्थिति गुलामी से भी बदतर हो गयी है |  

        जनता की मुलभुत अवस्यकताए रोटी-कपड़ा-मकान को भी छीन जा रहा है | साम्राज्यवादी देशों का हमारे देश पर जैसे-जैसे वर्चस्व बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे महंगाई, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है | इसको आप इस उदहारण से समझ सकते है कि दाल और प्याज के दाम क्या है ? इसी तरह जल-जंगल-जमीन जिस पर बहुसंख्यक जनता का जीवन निर्भर है को कार्पोरेट व मल्टिनेसनल कंपनियों के हवाले किया जा रहा है | विकास के नाम पर मध्यम वर्ग को भ्रमित किया जा रहा है ।  जबकि सच्चाई यह है कि रोजगार में लगातार कमी आ रही है | यहाँ तक कि रोजगार सृजन न के बराबर है | जसकी वजह से इहें नाटक करने पड़ रहे है | जैसे वैकेंसी निकालना और रद्द करना, कोर्ट में लटके रहना व संविदा पर काम इत्यादि |

     देश के इस भयंकर संकट पर जनता सचेत न हो,एकजुट न हो,आवाज न उठाये,प्रतिरोध व संघर्ष न करे और दलाल शासको के कृत्यों पर पर्दा पड़ा रहे इसके लिए जाति-मज़हब के नाम पर जनता को बांटने काम किया जा रहा है | साम्प्रदायिकता फैलाई जा रही है | इसमे आरएसएस,भाजपा,बजरंग दल जैसे हिन्दू आतंकवादी व फांसीवादी संगठन शामिल है |

         दादरी में एक मुस्लमान युवक एखलाक को यह कह कर मार दिया जाता है कि इसने गाय का मांस खाया | लेकिन जाँच करने पर पाया गया कि मांस गाय का नहीं था | हरियाणा में मरी हुयी गाय का  खाल निकाल रहे पांच दलितों व मरे हुए पशुओ का शव ले जा रहे दलित ठेकेदार की हत्या कर दी गयी | इस तरह से समाज में उन्माद फैलाया जा रहा है | ताकि मूल मुद्दो से लोगो का ध्यान भटका रहे |

 
        वहीँ अंधश्रद्धा के खिलाफ संघर्ष करने वाले,तर्क के पक्ष में सोचने वाले प्रगतिशील-क्रांतिकारी  विचारों वाले कार्यकर्ता,बुद्धिजीवी व लेखक गंटी प्रसादम,नरेंद्र दाभोलकर,गोविन्द पानसरे,एम एम कालबुर्गी की हिन्दू आतंकवादियों द्वारा निर्मम हत्या कर दी गयी | और लगातार ऐसे सोचने,लिखने,बोलने व संघर्ष करने वालों को धमकियां मिल रही है | यह फासीवाद की चरम अभिव्यक्ति है | जिसका चरित्र ब्राम्हणवादी है | यह एक लोकतान्त्रिक समाज के लिए सबसे खतरनाक है | इससे हर स्तर पर लड़ना पड़ेगा | इसका मुकाबला हम तभी कर पाएंगे जब देश की उत्पीड़ित मेहनतकश जनता (मजदूर, किसान, आदिवासी, दलित,अल्पसंख्यक, छात्र-नौजवान, राष्ट्रीयताये) एकजुट होगी और ब्राम्हणवादी सामंतवाद पर चोट करते हुए साम्राज्यवाद को उखाड़ फेंकेगी | 
       
    इसी कड़ी में साहित्यकारों ने फासीवाद के खतरे व अभिव्यक्ति आज़ादी के खतरे को महसूस किया और प्रतिरोध स्वरुप सम्मान पुरष्कार वापस करने की मुहीम चलाई है जिसको भगत सिंह छात्र मोर्चा छात्रों-विद्यार्थियों की तरफ से सलाम करता है और शिक्षको,बुद्धिजीवियों,लेखकों से आह्वान करता है कि जिस तरह से फासीवादी शासक वर्ग WTO-GATT से समझौता कर हमारी शिक्षा व्यवस्था व विश्वविद्यालयों-कालेजो को साम्राज्यवाद के हवाले कर रहा है | और परिसर में लोकतान्त्रिक स्पेस को ख़त्म कर रहा है | इसके विरोध में अपनी प्रतिरोधी विचारों व कलम की धार को तेज करें ! और देश में फासीवाद के विरुद्ध चल रहे क्रन्तिकारी जन-संघर्षों का समर्थन करें ! 

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