हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने रविवार रात फांसी लगाकर ख़ुदक़ुशी कर ली.
दलित समुदाय के रोहित को उनके चार अन्य साथियों के साथ कुछ दिनों पहले हॉस्टल से निकाल दिया गया था.
इसके विरोध में वो पिछले कुछ दिनों से अन्य छात्रों के साथ खुले में रह रहे थे. कई अन्य छात्र भी इस आंदोलन में उनके साथ थे.
आत्महत्या से पहले रोहित वेमुला ने एक पत्र छोड़ा है. यहां हम अंग्रेज़ी में लिखे उनके पत्र का हिंदी में अनुवाद दे रहे हैं:
गुड मॉर्निंग,
आप जब ये पत्र पढ़ रहे होंगे तब मैं नहीं होऊंगा. मुझ पर नाराज़ मत होना. मैं जानता हूं कि आप में से कई लोगों को मेरी परवाह थी, आप लोग मुझसे प्यार करते थे और आपने मेरा बहुत ख़्याल भी रखा. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मुझे हमेशा से ख़ुद से ही समस्या रही है. मैं अपनी आत्मा और अपनी देह के बीच की खाई को बढ़ता हुआ महसूस करता रहा हूं. मैं एक दानव बन गया हूं. मैं हमेशा एक लेखक बनना चाहता था. विज्ञान पर लिखने वाला, कार्ल सगान की तरह. लेकिन अंत में मैं सिर्फ़ ये पत्र लिख पा रहा हूं.
मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से, लेकिन मैंने लोगों से प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक़ दे चुके हैं. हमारी भावनाएं दोयम दर्जे की हो गई हैं. हमारा प्रेम बनावटी है. हमारी मान्यताएं झूठी हैं. हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के ज़रिए. यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुखी न हों.
एक आदमी की क़ीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. एक वोट तक. आदमी एक आंकड़ा बन कर रह गया है. एक वस्तु मात्र. कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया. एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी. हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में.
मैं पहली बार इस तरह का पत्र लिख रहा हूं. पहली बार मैं आख़िरी पत्र लिख रहा हूं. मुझे माफ़ करना अगर इसका कोई मतलब न निकले तो.
हो सकता है कि मैं ग़लत हूं अब तक दुनिया को समझने में. प्रेम, दर्द, जीवन और मृत्यु को समझने में. ऐसी कोई हड़बड़ी भी नहीं थी. लेकिन मैं हमेशा जल्दी में था. बेचैन था एक जीवन शुरू करने के लिए. इस पूरे समय में मेरे जैसे लोगों के लिए जीवन अभिशाप ही रहा. मेरा जन्म एक भयंकर दुर्घटना थी. मैं अपने बचपन के अकेलेपन से कभी उबर नहीं पाया. बचपन में मुझे किसी का प्यार नहीं मिला.
इस क्षण मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस ख़ाली हूं. मुझे अपनी भी चिंता नहीं है. ये दयनीय है और यही कारण है कि मैं ऐसा कर रहा हूं.
लोग मुझे कायर क़रार देंगे. स्वार्थी भी, मूर्ख भी. जब मैं चला जाऊंगा. मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता लोग मुझे क्या कहेंगे. मैं मरने के बाद की कहानियों भूत प्रेत में यक़ीन नहीं करता. अगर किसी चीज़ पर मेरा यक़ीन है तो वो ये कि मैं सितारों तक यात्रा कर पाऊंगा और जान पाऊंगा कि दूसरी दुनिया कैसी है.
आप जो मेरा पत्र पढ़ रहे हैं, अगर कुछ कर सकते हैं तो मुझे अपनी सात महीने की फ़ेलोशिप मिलनी बाक़ी है. एक लाख 75 हज़ार रुपए. कृपया ये सुनिश्चित कर दें कि ये पैसा मेरे परिवार को मिल जाए. मुझे रामजी को चालीस हज़ार रुपए देने थे. उन्होंने कभी पैसे वापस नहीं मांगे. लेकिन प्लीज़ फ़ेलोशिप के पैसे से रामजी को पैसे दे दें.
मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो. लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. आप जान जाएं कि मैं मर कर ख़ुश हूं जीने से अधिक.
'छाया से सितारों तक'
उमा अन्ना, ये काम आपके कमरे में करने के लिए माफ़ी चाहता हूं.
अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन परिवार, आप सब को निराश करने के लिए माफ़ी. आप सबने मुझे बहुत प्यार किया. सबको भविष्य के लिए शुभकामना.
आख़िरी बार
जय भीम
मैं औपचारिकताएं लिखना भूल गया. ख़ुद को मारने के मेरे इस कृत्य के लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है.
किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए भड़काया नहीं, न तो अपने कृत्य से और न ही अपने शब्दों से.
ये मेरा फ़ैसला है और मैं इसके लिए ज़िम्मेदार हूं.
मेरे जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को परेशान न किया जाए.
भगत सिंह छात्र मोर्चा ने आज प्रातः 11 :30 बजे सिंहद्वार,बी.एच .यू ,लंका पर एम.एच .आर .डी मिनिस्टर का पुतला फूका |इसके तुरंत बाद एक विरोध-सभा की गयी जिसमे बी.एच .यू के छात्र-छात्राओ और प्रोफेसरों ने शिरक़त की |सभा में बी.एच .यू के प्रोफेसर प्रमोद कुमार बागडे ने बताया की विश्वविद्यालयों में जातिवादी आधार पर वंचित-दलित छात्रों का सामाजिक बहिष्कार हो रहा है| और ब्राह्मणवादी-फासीवादी विचारधारा का बढ़ने के करना इस तरह की संस्थागत हत्या हो रही है |
साथ ही एपवा की सचिव कुसुम वर्मा ने RSS और ABVP जैसे लम्पट,जातिवादी-ब्राह्मणवादी छात्र संगठनो पर प्रतिबन्ध लगाने की बात कही|सभी ने इसे संस्थागत हत्या बताया |छात्रों ने हैदराबाद के वीसी और केंद्रीय मंत्री बंडारु दत्तात्रेय एवं स्मृति ईरानी के बिरुद्ध नारेबाजी की|साथी अनूप ने बताया की ये सिर्फ हैदराबाद यूनिवर्सिटी की बात नही है बल्कि ये जब से ये नयी फासीवादी सरकार आई है पूरे देश के कैंपस का भगवाकरन हो रहा है |और हमे साथ मिलकर इसके खिलाफ खड़े होना है और इसे रोकना है |
साथी रोहित को लाल सलाम,यह आत्महत्या नही हत्या है,स्मृति ईरानी मुर्दाबाद ,बंडारु दत्तात्रेय मुर्दाबाद, जातिवाद -मनुवाद -ब्राह्मणवाद को ध्वस्त करो ,संघी तानाशाही का एक जवाब,इंकलाब जिंदाबाद ,आदि नारे लगाये गए |
Friends of AISA, AISF and NSUI were also present at the site for the signature campaign to express solidarity with prof. Pandey organized by AIPWA . All of us unitedly burnt the effigy of BoG's chairman.
The meeting held the opinion that BoG's decision to sack prof. Pandey is an outcome of pre plotted mission of saffronizing educational institutions.Students shouted slogans supporting prof.Pandey and criticized baseless allegations of his being anti national and pro naxal as made by RSS driven administrative puppets.
Addressing the protest prof. Chauthiram Yadav said "The hindutva fascist regime is intellectually bankrupted and this has been made clear by what it has done with prof. Pandey. It has become totally intolerant towards plurality of ideas and has taken resort to tag every other idea as anti national."
prof. Baliraj Pandey said " BoG's decision is an example of sheer foolishness. It is ridiculous and unacceptable to term a man of as high a stature as prof.Pandey as anti nationalThe world knows that he has always worked for people's cause. This situation is even more alarming than the times of Emergency and role of our intellectuals has become very much crucial now. It is time that they should line up with the people's movement and resist the fascist attitude running in the name of Nationalism."
Meanwhile self proclaimed nationalists gathered shouting slogans of "jay shree Ram, BHU prshasan zindabad". These KAPOOTS of BharatMata showed their true faces by starting verbal abuse shouting "China k dalaalon ko jootey maaro saalo ko". Our beloved poet Muktibodh has rightly described these rogues in one of his poems
सत्ता के परब्रह्म ईश्वर के आसपास
सांस्कृतिक लहंगों में लफगों का लास रास
खुश होकर तालियाँ देते हुए गोलमटोल
बिके हुए मूर्खों के होठों पर हीन हास
शब्दों का अर्थ जब
And in this fascist era when every Word, including nationalism, is made detached from its real Meaning, it is on us to fight against this anomaly and place everything where it really belongs.