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Sunday, June 25, 2017

गांव चलों अभियान- एक क्रांतिकारी अनुभव।


      25  छात्रों की एक टीम ने गर्मी की छुट्टियों में चंदौली के ग्रामीण इलाके में (10 जून से 20 जून) 10 दिन का गांव चलो अभियान लिया। gvc में सर्वे (आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक),नाटक-गीत की योजना थी। go to village campaign (gvc) के दौरान सर्वे में हमने पाया कि वास्तव में हमारा देश गांवो का देश है। गांवो के देश के इस इलाके (सहाबगंज ब्लॉक,चंदौली बिहार-यूपी सीमा) की स्थिति यह है कि यहां 80-85 प्रतिशत जनता भूमिहीन है। जबकि गांवों का रकबा हजारो बीघा है। सभी संसाधनों व राजनीति पर बड़ी जातियों-सामंतो का कब्जा है। जिसकी वजह से लोगों को सरकारी सुविधाएं भी प्राप्त नही हो पाती। अगर आवास,शौचालय,हैंडपम्प आये भी तो किस जमीन पर बनाये। हदबंदी-चकबंदी कानून भी सही से लागू नही हुआ है। अभी भी बहुत सारी बंजर, जीएस,नादिवास की अवैध कब्जा की हुई जमीन है। जिसको बांटा जाए तो 1-2 बीघा जमीन लोगो को दी जा सकती है। कुछ दलितों में भी नौकरी,प्रधान व जमीन वाले दिखे। जो उनके बीच एक वर्ग के रूप में पैदा हुए  दलाल की भूमिका में है। लोगों में अपने हक़-अधिकार के प्रति वर्ग चेतना दिखी। और उस इलाके में संघर्ष का इतिहास पता चला। तमाम संसदीय पार्टियों की भूमिका वर्ग संघर्ष की धार को कुंद करना रहा है। शिक्षा का स्तर बहुत ही कम है।जो बीए तक पढ़ा भी वह मजदूरी कर रहा है।  बड़े पैमाने पर सूदखोरी और कुछ बंधुआ भी देखने को मिला। सामाजिक-जातिगत-पितृसत्तात्मक भेदभाव भी देखने को मिला। कुल मिलाकर हमें वहां ब्राम्हणवादी सामंतवाद मौजूद दिखा। हमने अपने नाटक "किस्सा अपन गांव के" में मजदूरी,शिक्षा,जमीन,दहेजप्रथा, नोटबन्दी व ग्रामीण राजनीति के सवाल को दिखाया। कई जगह दहेजप्रथा दृश्य को देख कर महिलाये भावुक हो उठी।  हमारे गीत ले मशालें चल पड़े है लोग मेरे गांव के,इन्शान को अछूत और गुलाम किया है,भारत अपनी महान भूमि,बेटी पांव की बेड़ी, गुलमिया अब हम नाही बजईबो,सारी जिनगी गुलामी में सीरान पिया व हजारों सालों से गुलामी बेड़ियां लोगों को पसंद आये। gvc का अनुभव बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से साकारत्मक रहा। जो हम सालों किताबों में पढ़कर नहीं समझ सकते थे वह हमने 10 दिनों में समझा और सीखा। लोगों ने बहुत ही प्यार से हमारा स्वागत किया। अपने से भी बेहतर खाने-पीने-रहने की व्यवस्था की हमारे लिए। कल्पना लगने वाली जातिव्यवस्था-छुआछूत,सामंतवाद व नकली विकास को प्रत्यक्ष महसूस किया। कुछ साथी 2-5 दिन के लिए आये थे। लेकिन gvc से प्रभावित होकर इतनी गर्मी व गांव के अभावपूर्ण-अनुशासित (4 बजे जागना) परिस्थितियों के बावजूद 10 दिन रहे। जाते वक्त कुछ साथी भावुक हो गए।गांव व लोगों के बारे में बुरी धारणाये बदली कि गांव के लोग गंदे,बेईमान,झगड़ालू व अनपढ़ होते है। समझ मे आया कि यही लोग वास्तव में ईमानदार,मेहनती,व्यावहारिक,समझदार व दिलदार होते है। इन मजदूर-किसान किसानों के ही बल पर दुनिया चलती है। बहुत सारे छात्र शहरी मध्यमवर्गीय व अन्य भाषाई पृष्ठभूमि से होने के बावजूद भी जल्द ग्रामीण जीवनशैली में घुलमिल गए। अपने घर-गांव जाने पर शोषण-उत्पीडन,भेदभाव का पता नही चलता था लेकिन सचेत तौर पर gvc में आने पर सब साफ समझ आने लगा। अंत मे हमने वहां काम कर रहे "मजदूर-किसान एकता मंच" के नेतृत्व में घोड़सारी,खिलची,बरियारपुर,रोहाखी, खखडा,जेंगुरी, बेदहा-टीरो, सवैया,किल्ला-घानापुर व कोनियाँ गाँवो की समस्या को लेकर जिलाधिकारी ,चंदौली को ज्ञापन दिया। Gvc से यह समझ आया कि बिना राजनीतिक समझदारी व संघर्ष के कुछ नही हो सकता।और आज़ादी के 70 सालों बाद गांवो की हालत देखकर इस व्यवस्था से कोई उम्मीद नही बची है। सिवाय व्यवस्था परिवर्तन के, क्रांति के। सभी छात्रों-नौजवानों व उनके संगठनों के लिए भगत सिंह का कथन बहुत सार्थक लगता है कि नौजवानों को क्रांति का यह संदेश देश के कोने कोने में पहुँचाना है,फैक्ट्री-कारखानों के क्षेत्रों में गंदी बस्तियों और गांवो की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ो लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है। जिससे आज़ादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असंभव ही जायेगा।।   
              इंकलाब जिंदाबाद!   
  क्रांतिकारी अभिवादन के साथ-    
  गांव चलो अभियान आयोजक समिति








     

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