हमारी उनसे बहुत आपसदारी होने लगी है।
हमको भी क्या वही बीमारी होने लगी है ।।
यहाँ घोड़ों को गाय का गोबर सुंघा कर ।
दिल्ली में गधों की सवारी होने लगी है ।।
चौथा स्तंभ अब "चार मुंह- चार बातों" सा है।
और अब तुम्हारी जुबां सरकारी होने लगी है।।
धर्म का सुरमा लगा कर खुद ही आंखे फोड़ लो।
देखने वालों पर अब छापेमारी होने लगी है ।।
किसान की लाश पर विकास का झंडा गड़ेगा ।
बंदूक की गोली जनहित मे जारी होने लगी है।।
अब सपने ग़र देखने है, तो आंख खोलकर देखो।
अब हमारे सपनो की कालाबाजारी होने लगी है।।
-वरूण लाल अहिरवार
No comments:
Post a Comment