5 मई
को दुनिया के महान क्रंतिकारी कार्ल मार्क्स के जयंती के
200 वी वर्षगांठ पर मजीठिया भवन गोरखपुर विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी का आयोजन
किया गया। इस गोष्ठी का आयोजन भगत सिंह छात्र मोर्चा, इंकलाबी नौजवान सभा व भगत
सिंह अम्बेडकर मंच के सयुक्त तत्वाधान में किया गया।
संगोष्ठी
में संचालन करते हुए बीसीएम के शैलेश ने मार्क्स की 200 वी जन्म वर्षगांठ पर
वर्तमान आर्थिक समाजिक राजनीतिक संकट और मार्क्सवाद का परिचय रखा।
वक्ताओं
में चतुरानन ओझा ने कहा कि दास
समाज,सामंत समाज से लेकर पूंजीवादी समाज के गति को कार्ल मार्क्स
ने समझ और एक वैज्ञानिक सूत्र प्रस्तुत किया। दुनिया को वैज्ञानिक तरीके से समझने के
लिए उन्होंने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का दर्शन दिया। तब से लेकर अब मार्क्स के पहले
वाली दुनिया नही रह गयी। सारे संसाधन कुछ मुट्ठी भर लोगो के हाथ मे इकट्ठा होने के
साथ साथ शैक्षणिक संस्थाओ पर भी कब्जेदारी बढ़ी है। संसोधनवाद के रूप में वर्ग संघर्ष
को तेज करने के बजाए धीमा करने वालो को भी पहचानना होगा।
जे.एन.
साह ने कहा कि इस पूंजीवादी व्यवस्था
में संकट ही संकट है इसलिए मार्क्सवाद की प्रासंगिकता पर तो सवाल ही नही है। मार्क्स
से पहले भी असमानता थी,
शोषण था और उसकी व्याख्याएं थी
लेकिन मार्क्स ने पहली बार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उसका विश्लेषण,व्याख्या
किया और न सिर्फ व्याख्या बल्कि उसे व्यवहार में लागू करके भी दिखाया। और इसको लेकर
ईमानदारी से जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए लोग संघर्ष कर रहे है। हायर एंड फायर
नीति से बेरोजगारी का संकट है,
रेल दुर्घटना में मासूम बच्चे मारे
जा रहे है। तथाकथित लोकतंत्र का अंतिम खंभे की ये हालात है कि पूरी तरह से लीपापोती
जारी है। इसके स्थाई समाधान के लिए मजदूरों,किसानों, छात्रों,कर्मचारियों, दलितों,अल्पसंख्यकों
के बीच छोटे-छोटे समूह बनाकर लगातार संघर्ष करने की जरूरत है। मीडिया
द्वारा यह प्रचार किया जा रहा कि असली समस्या मुसलमान है, कामचोर
कर्मचारी है,पाकिस्तान है। इसका पर्दाफास करने की जरूरत है।
राजेश साहनी ने बात रखते हुए कहा कि दुनिया मे जब जब आर्थिक
संकट आया है तब तब चाहे पूंजीवादी हों या समाजवादी हों सबने मार्क्स के सिद्धांतों
का अध्ययन किया। मार्क्स ने समाज के गति का विश्लेषण करके बताया कि समाज मे वर्ग संघर्ष
चलेगा जब तक कि एक वर्गविहीन साम्यवादी समाज की स्थापना नही हो जाती। पूंजीवादी समाज
मे ही ये अंकुर पैदा होंगे और समाजवादी समाज का निर्माण होगा। यह कोई कल्पना नही है।
सामाजिक कार्यकर्ता कृपाशंकर ने कार्ल
मार्क्स के जीवन व त्याग पर प्रकाश डाला और त्याग के महत्व को रेखांकित किया कि मार्क्स
ने विचार व दर्शन को समाज परिवर्तन का हथियार बनाया और उस समय के मजदूर आंदोलन का नेतृत्व किया।
उनके विचार व व्यवहार से तत्कालीन राज्य डरता था और उन्हें देश निकला देते रहे । उनकी पत्नी के बड़े भाई प्रंशा राज्य
के गृहमंत्री होने के बावजूद उनके 7 बच्चों
में से मात्र तीन बच्चे ही बचे। जबकि उनकी पत्नी की कैंसर से मौत हो गयी। वर्तमान समय में आदिवासियों के
संघर्ष व उन पर
राज्य मशिनिरियो के दमन की चर्चा किया।
संध्या पांडेय
ने कहा कि जब पूरी दुनिया को फ़ासीवाद नरक बनाने पर तुला था उस समय में स्टालिन के नेतृत्व
में जो संघर्ष हुआ और फ़ासीवाद हारा। यह सबसे बड़ा उदाहरण है कि मार्क्सवाद ही एकमात्र
रास्ता है शोषण से मुक्ति का। हमे अपने निजी जिंदगी में भी सर्वहारा के मूल्य, अनुशासन
को अपनाना चाहिए। जातिवाद और पितृसत्ता पर बात करते हुए कहा कि इसके जड़ में संपत्ति
की व्यवस्था ही है जिसे मार्क्सवाद खत्म करने की राह दिखाता है।
आनंद पांडेय
ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विचार समाज से पैदा होता है चूंकि हमारा समाज सामंती है तो मार्क्सवादीयों में भी ब्राम्हणवाद
दिखाई दे सकता है और क्या सामाजिक न्याय की बात करने वाले या अम्बेडकराइटो में ब्राम्हणवाद
नही दिखाई देता है? एक मार्क्सवादी होने की सच्चाई ये है कि आप उन सिद्धांतो के प्रति सच्ची और
व्यवहारिक आस्था रखे। मार्क्स ने कभी दावा नही किया कि वो पैगम्बर या देवता है। मैं
सिखाऊंगा और तुम सीखोगे। भारत मे पर्याप्त समय के बाद भी क्रांति नही कर पाने का कारण
जाहिर है कि हमने मार्क्सवाद को नही सीखा,परिस्थितियों
को ठीक से नही समझा,हमने अपने भीतर संकोच और ढोंग बनाये रखा। सदियों से हमारे अंदर मध्यमवर्गीय,सामंती
सोच कूट कूट कर भरा है लेकिन सचेत तौर पर हमे अपने अंदर की लड़ाई और बाहर समाज की लड़ाई
को लड़ना होगा तभी हम मार्क्स को सच्ची बधाई दे सकते है जन्मदिन की।
शायर महेश अश्क ने कहा कि आदमी के भीतर जो कई तरह के आदमी
है उसे अध्ययन करके कैसे निर्मूल करें। मार्क्स
दुनिया का पहला विचारक है जिसने आदमी की सत्ता से उसके आत्मविस्वास को हटाके समूह की
सत्ता से जोड़ा। मार्क्स आदमी को आदमी के प्रति ईमानदार बनने की प्रेरणा दी। उसने कहा
कि पसीना मेहनत के क्षणों में शरीर से निकलने वाला द्रव नही है यह उस मुद्रा में इसकी
जगह है जो प्रचलन में हुआ करते है। वर्ग से जब हम आत्मीयता से नही जुड़ेंगे तब तक हमारा
आत्मविश्वास बाद नही होगा। हमारी दृष्टि व्यापक नहीं होगी। जो आदमी को आदमी और आदमी
को आदमी के लिए बनाती है यह सारी चीजें मार्क्स से पहले तीतर वितर पड़ी थी।
मुख्य वक्ता डॉ. असीम
सत्यदेव ने कहा कि मार्क्सवाद के विश्वनजरियों में आज कोई भी बड़े से बड़ा विद्वान ये दावा नही कर सकता कि
मुनाफा अतरिक्त मूल्य नही है। दुनिया
को देखने के लिए द्वंद्वात्मक भौतिकवादी
नजरिया गलत है कोई और नजरिया है कोई ये साबित नही कर सकता। मानव सभ्यता का इतिहास वर्ग
संघर्ष का इतिहास है इसका खंडन कोई नही कर सकता। उसी तरह से राज्य एक वर्ग द्वारा दूसरे
वर्ग का उपकरण है इस पर कोई सवालिया निशान तक नही लगा सकता।
हा सवाल मार्क्सवाद कैसे लागू हो
यह सवाल है। वो भी भारत में। इसे
व्यवहार का दर्शन कहा गया। कहा जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश
है। कितना लोकतांत्रिक है यह व्यवहार में पता चल जाएगा। इस गोष्ठी की क्या क्या कठिनाईया
हुई उससे पता चल जाता है कि जिस लोकतंत्र का दावा 1947 के
बाद भारतीय गणराज्य ने किया था। और विश्वविद्यालयों को मुक्त चिंतन का केंद्र बनाने
का और राजकीय दमन मुक्त रखने का दावा था। वो भी आज के समय मे कदम कदम पर छीना जा रहा
है। एक कार्यक्रम की अनुमति देने वाले के अंदर भय है। क्यो अनुमति दी इसका जवाब देना
पड़ेगा। फिर भी हम कहे कि सबसे बड़ा लोकतंत्र है कितना हास्यास्पद है। उसी तरह संपत्ति
की व्यवस्था किस तरह काम कर रही है। मार्क्सवाद अनुसूचित जाति में नही जनजाति तक पहुच
गया है। इसलिए उनका बस चले तो हर आदिवासी को मार डाले। क्योकि वो जंगल,पहाड़
और धरती को बचा रहे है। जिनका दोहन करना आज दुनिया के दौलतमंदों के लिए जरूरी हो गया
है। इस व्यवस्था का संकट है। वो संकट इतना गहरा है। बाजार के संसाधनों की लूट की खुली
छूट दे दी जाए तो भी वो अपनी समस्या का समाधान ढूंढ नही पाएंगे। मार्क्सवादी जानते
है कि साम्राज्यवाद के पास इसका कोई इलाज नही है । और संकट अपने चरम सीमा पर पहुच गया
है। इसीलिए सारे अधिकार छीने जा रहे है। जिनको देने का दावा मौजूद व्यवस्था ने किया
था। किस तरह से वर्ग संघर्ष को यहां लागू किया जाए। गलतिया हुई है गलतियों से हमने
सबक भी लिया है। भारतीय परिवेश में लागू करने का प्रयास भी किया जा रहा है। यहां और
दुनिया भर में जितने संघर्ष चल रहे है उसकी सूचना छुपाने पर भी जितनी सूचना हमारे सामने
है। उसको देखकर मैं हतास होने का कोई कारण नही देखता हूं। जनता लड़ रही है पूरी शिद्दत
से। व्यवस्था में ये हिम्मत नही है कि वह संघर्ष की असलियत को हमारे सामने उजागर कर
सके। कितना ओ दमन कर रहे है ये भी वो नही बता
सकते है। उसकी कड़ी है निर्दोष आदिवासी छोटे छोटे बच्चे हो उनको कह दिया जाए ये संघर्ष
में मारे गए। ये फर्जी एनकाउंटर का एक और नमूना पेस किये है। यानी ये इतने दमनकारी
है येभी कहने की उनकी हिम्मत नही है। कश्मीर क्या वो ईट का जवाब पत्थर से फे रहे है? कि
गोलियों का जवाब में मजबूरी में पत्थर चला रहे है। इस पर खुली बहस करने के लिए कोई
मीडिया तैयार नहीं है। यहां किसी को यह गलतफहमी नही है कि जब राज्य मसिनरी दमन का उपकरण
है तब मसिनरी चलाने वाले बदल जाएंगे तो दमन खत्म हो जाएगा। इस समझ को व्यवहार में उतारने
की जरूरत है। निश्चित रूप से आने वाली मंजिल हमारी है। ये जल्दी आये इसी कामना के साथ
सभी को धन्यवाद।
अध्यक्षता कर रहे कथाकार
मदन मोहन जी ने कहा आज मार्क्स,लेनिन,माओ अम्बेडकर की विचारधारा पर हमला हो रहा
है। ऐसे में इस आयोजन के कार्यकर्ताओं को मैं धन्यवाद देता हू परन्तु मेरा आग्रह
है कि इन विचारों पर चलने वालों को राजनीति से परहेज नही करना चाहिए।
सभा
मे सभी साथियों ने एकमत से गड़चिरोली में अपने हितो व जंगल खनिज संपदाओं को बचाने
में लगी आदिवासी जनता के 40 लोगो की हत्त्या के लिये राज्य की निंदा की व प्रस्ताव
पास करते हुए निष्पक्ष जांच की मांग किया। संगोष्ठी में पवन कुमार,महेंद्र आदि
लोगों ने सम्बोधित किया और संगोष्ठी में बड़ी संख्या में बुद्धजीवी, छात्र, मजदूर व सभी वर्गो के लोग शामिल
रहे।
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