जांच कमेटी की रिपोर्ट कहती है गढ़चिरौली मुठभेड़, एक फर्जी सोचा-समझा जनसंहार है। टीम इस पर यकीन नहीं करती कि यह हत्याएं अलग-थलग घटनाएं हैं। यह इस क्षेत्र में पुलिस क्रूरता की एक व्यापक परंपरा का हिस्सा लगता है।
-अंग्रेजी से अनुवाद: असीम सत्यदेव
प्रेस विज्ञप्ति
मुठभेड़ के पर्दे में नरसंहार: गढ़चिरौली में विकास हेतु राज्य की नई नीति
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की मामरागढ़ तहसील में बोरिया-कासनासुर में 22 अप्रैल 2018 की सुबह एक तथाकथित मुठभेड़ हुई। अगले दिन पुलिस ने जब प्रेस नोट के साथ 16 लोगों की सूची यह कहते हुए जारी की कि नक्सली मारे गए हैं। 24 अप्रैल को पुलिस ने दावा किया कि इंद्रावती नदी में 14 और लाशें मिली हैं। और इस तरह मरने वालों की संख्या 40 से अधिक हो गई। गढ़चिरोली जिले में इस तथाकथित मुठभेड़ के स्थानों पर 12 राज्यों के 44 लोगों की एक जांच कमेटी टीम पहुंची। जिसमें तीन प्रमुख मानवाधिकार संगठनों और मंचों के लोग थे। यह तीन संगठन: कोआर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स आर्गेनाईजेशन (c d r o) इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपल्स लेयर्स ( IAPL) और वूमेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेशन एंड सेक्सुअल वायलेंस (w s s) थे। हमने हाल ही में हुए सभी पुलिस हिंसा तथा मुठभेड़ों के स्थानों का भी दौरा किया। 5 से 7 मई 2018 तक 3 दिनों तक तथ्यों की जांच की गई और इस टीम की सहायता भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के स्थानीय प्रतिनिधियों, स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों, ग्राम सभा सदस्यों, वकीलों और पत्रकारों ने की। जांच में हमारा निष्कर्ष यह निकला कि जिन घटनाओं के लिए मुठभेड़ शब्द इस्तेमाल किया जा रहा है दरअसल वह सारा फर्जी मुठभेड़ है।
घटना की जांच से जो तथ्य सामने आया कि कि-60 पुलिस तथा CRPF ने चारों तरफ से माओवादियों को घेर लिया और फिर उनकी हत्या करने के इरादे से आधुनिक हथियारों जैसे अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर (यूबीजीएल) से अंधाधुंध फायरिंग की। इस तरह यह एक सोचा समझा जनसंहार है। तथाकथित मुठभेड़ से संबंधित पुलिस की कहानी पर जांच टीम ने सवाल उठाए। मरने वालों की अंतिम संख्या पर ध्यान दिया जाए तो पता चलता है कि सी-60 पुलिस ने फौरन ही लासें बरामद नहीं की। मुठभेड़ के बाद कई दिनों तक इससे संबंधित महत्वपूर्ण सबूत जैसे पत्र, फोटोग्राफ, पहचान पत्र पड़े रहे। 22 अप्रैल 2018 को पुलिस द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के दौरान असली स्थानों का कोई फोटोग्राफ या लाशों का कोई फोटो जारी नहीं किया गया। केवल चुने हुए पत्रकारों को मुठभेड़ स्थान की जानकारी दी गई। और उनकी यह बात भी संदेह पैदा करती है कि इस तथाकथित मुठभेड़ के 2 दिन बाद 24 अप्रैल को उसी जगह से 15 लाशें बरामद होती हैं। यह संदेश इसलिए है क्योंकि घायल लोग मजबूरन पूरे इलाके में फैल जाते हैं। गौर करने लायक दिलचस्प बात यह है कि पूरी कार्यवाही में ही सी-60 टीम को कोई गंभीर चोट नहीं आई।
टीम को विदेशी पर्यटक जैसा सूचित किया गया और उसके लिए लोगों से संपर्क साधना मुश्किल किया गया। जब हम बोरिया पहुंचे तो वहां गांव में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की मौजूदगी थी। ऐसा लगा कि जांच टीम के लोगों से बात करने से ध्यान दूसरी ओर बताने के लिए पुलिस फोर्स तैनात की गई है। लोगों को अहेरी से कंसूर पुलिस द्वारा इसलिए लाया गया था कि वे लोग जांच टीम की उपस्थिति के खिलाफ प्रदर्शन करें। जांच टीम रात में गट्टेपल्ली गई और वहां उसने असामान्य रूप से सुरक्षा बलों की मौजूदगी देखी। पिछले 3 दिनों से बिजली नहीं आने की वजह से गांव में पूरा अंधेरा था। गांव वालों ने हमें बताया कि उसी दिन से पुलिस बल यहां तैनात है और उनके सामने बात करने से लोगों को डर लगता है। जांच टीम के इर्द-गिर्द भी पुलिस बल मंडराता रहा जिससे बातचीत में कई मुश्किल पैदा हुई। घटना से जुड़ा हुआ गट्टेपल्ली ऐसा गांव है जहां 22 अप्रैल से 8 लोगों के गायब होने की रिपोर्ट है। वह शादी में शामिल होने गांव से बाहर गए थे। उनमें से केवल एक अवयस्क रासु चाको माडवी की पहचान हो पाई। गांव वालों ने उसकी लाश की पहचान उन लाशों में से की जिनके मारे जाने का दावा बोरिया-कासनासूर मुठभेड़ स्थल पर पुलिस ने किया था। बाद के दिनों में पुलिस के विवरण लगातार बदलते गए। गुमशुदा लोगों के परिवार वाले जब पुलिस के पास पहुंचे तब पुलिस ने यह स्थापित करने की कोशिश की कि वे माओवादी पार्टी के नए-नए भर्ती रंगरूट थे।
जब सवाल उठे कि उनके शव यूनिफॉर्म में क्यों थे तो पुलिस का विवरण बदल गया कि कैसे एक महीने पहले उनकी भर्ती हुई थी। यह भी उचित नहीं लगता कि गुमशुदा लोगों के आधार कार्ड जब्त कर लिए गए हैं और आज की तारीख तक लौटाए नहीं गए। राजाराम खंडाला में 24 अप्रैल की रात की घटना में पुलिस के बयान परस्पर विरोधी हैं। 24 अप्रैल को जिमलगट्टा पुलिस स्टेशन से उनके बयानों के अनुसार घटना राजाराम खंडाला में घटी। 25 तारीख को नंदू का शव उसके परिवार को सौंपते हुए एसपी ने एक पत्र जारी किया जिसमें यह कहा गया कि वह कोपेवंचा कोउटारम जंगल में मारा गया। मारे गए लोगों में चार महिलाएं थी। जांच टीम ने राजाराम खण्डला में मुठभेड़ स्थल का दौरा किया और नंदू के परिवार वालों से मुलाकात भी की। 23 तारीख की सुबह नंदू के परिवार और गांव वालों को स्थानीय पुलिस ने खबर दी कि अन्य लोगों के साथ नंदू को भी पिछली रात बोरिया-कासनासुर से उठा लिया गया है। परिवार ने पकड़े गए लोगों की तलाश में पुलिस स्टेशनों और शिविरों का चक्कर लगाया लेकिन उन्हें खोज नहीं सका। अगले दिन उन्हें सूचना दी गई कि नंदू तथा अन्य लोग 23 तारीख की शाम को नयनार जंगल में मुठभेड़ में मारे गए।
जांच टीम ने नैनार जंगल में मुठभेड़ स्थल की पहचान की। वहां जमीन पर खून के धब्बे, रबड़ के दस्तानों का एक खुला पैकेट, पेड़ के तनों पर गोलियों के निशान और दो खाली डिब्बे थे। ऐसा लगा कि पुलिस ने नंदू को पहले यातना दी और फिर जानबूझकर मार डाला। अन्य कुछ तथ्यों के साथ हमारी टीम ने ध्यान दिया कि परिवार को कोई पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दी गई। 25 अप्रैल को जब पिता ने शव हासिल किया तो वह खराब होता जा रहा था। लेकिन तब भी उसके दाहिने कंधे पर कुल्हाड़ी से किए वार पता चल रहा था। उसके शरीर पर गोली का निशान नहीं था। आस पड़ोस के लोगों ने आमतौर पर मुठभेड़ों के दौरान बंदूक चलने की आवाज नहीं सुनी लेकिन अलग थलग कुछ गन शॉट की आवाज उस रात सुनाई दी थी। परिवार को आशंका है कि सभी छह लोगों को पुलिस हिरासत में यातनाएं दी गई और फिर मार डाला गया। टीम को आश्चर्य हुआ कि नंदू तथा अन्य लोगों को उठा लेने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर क्यों नहीं अदालत में पेश किया गया और जब सारे सबूत और गवाहों से यह पता चल रहा है कि उन्हें हिरासत में लेकर यातना दी गई है और फिर मार डाला गया है। तो कैसे पुलिस इसे मुठभेड़ में हुई मौत का दावा कर रही है।
हमने ध्यान दिया कि कोरापल्ली गांव में परिवार तथा पड़ोसियों को सुरक्षाबलों तथा स्थानीय पुलिस द्वारा लगातार परेशान किया जाता रहा है और धमकाया गया है। यह हत्याएं कोई अलग-थलग घटनाएं नहीं लगती बल्कि इस क्षेत्र में पुलिस की बुरी करतूतों की व्यापक परंपरा का हिस्सा लगती हैं। ऐसा लगता है कि बड़ी संख्या में पुलिस शिविरों तथा सुरक्षा बलों द्वारा इस क्षेत्र में रहने वालों के मन में डर का वातावरण तैयार किया जा रहा है। उदाहरण के लिए 5 फरवरी को कोयनवरसा गांव के दो नवयुवक रामकुमार और प्रेमलाल चिड़ियों के शिकार पर गए थे। उन्हें सुरक्षाबलों ने उठा लिया उन्हें अलग-अलग ले जाकर पूछताछ की गई और लगातार उन पर यह दबाव डाला जाता रहा कि वह खुद को माओवादी मान लें। जब उन्होंने इस आरोप से इनकार कर दिया तो उन्हें जबरदस्ती पकड़े रखा गया। उनमें से एक प्रेम लाल सौभाग्य से बच निकलने में कामयाब हो गया और जांच टीम को उससे सारी बातें बताई 6 फरवरी को गांव वाले उस जगह गए जहां से इन आदमियों को उठाया गया था। वहां उन्हें खून के धब्बे रामकुमार की वोटर पहचान पत्र का जला हुआ टुकड़ा और उन लोगों के द्वारा शिकार की गई चिड़िया के अवशेष मिले। इससे उन्हें रामकुमार के मार दिए जाने का संदेह हुआ। जब वह गडचिरोली पुलिस स्टेशन पहुंचे तो उन्हें वहां रामकुमार की लाश मिली। कोयनवरसा गांव के लोगों ने दावा किया कि उनके गांव में ऐसा पहली बार हुआ है और पुलिस का उन पर दबाव था कि कोई आरोप ना लगाएं। गांव वालों को चुप रहने के लिए पुलिस वालों ने घूस देने का प्रस्ताव रखा। परिवार हेदरी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने गया तो वहां एक पत्र पर उनके अंगूठे का निशान लगवा लिया गया। जिसमें यह लिखा था कि वे लोग माओवादियों से जुड़े थे।
एक मजिस्ट्रेट स्तर की जांच हो रही है लेकिन ऐसा नहीं लगता कि अब कुछ हो पाएगा। 2016 में सूरजगढ़ क्षेत्र में लायड माइनिंग कारपोरेशन ने अपना बेस तैयार किया था। जिस दिन से लॉयड को पत्ते पर जमीन दी गयी थी। उसी दिन से इस क्षेत्र में लोगों ने खदान का विरोध शुरू कर दिया था। घमकुंडवानीऔर सूरजगढ़ खदानों के पास के गांवों के लोग लोगों के ऊपर लगातार पुलिस की हिंसक कार्यवाही चलती गई और उन्हें परेशान करने पीटने और गिरफ्तारी का काम होता रहा।
मोहुन्दी और गुडनसुर मैं इसे साफ तौर पर देखा जा सकता है। जहां गट्टा पुलिस द्वारा पहले 2 और फिर 5 लोगों को गांव से उठा लिया गया। जब गांव वालों ने इसका विरोध किया उन्हें पुलिस ने बेरहमी से इस हद तक पीटा कि अब तक उनके बदन पर पुलिस हिंसा के निशान मौजूद हैं। हिरासत में लिए गए लोगों में से एक की मां का हाथ तोड़ दिया गया। जिससे अभी हाथ से काम करने में तकलीफ होती है। जिन 8 लोगों को उठाया गया उनमें सात न्यायिक हिरासत में है। जिनमें दो किशोरावस्था के हैं और एक के बारे में कोई खबर नहीं है। पुलिस का कहना है कि गुमशुदा दिनेश फरार है लेकिन परिवार वालों को डर है कि पुलिस ने शायद उसे मार ही डाला हो। 29 मार्च 2018 को रेकनर गांव के एक युवक संसु मिर्चा उसेंडी ने जानवरों को पकड़ने के लिए जाल बिछाया। 30 मार्च को वह जाल का हाल लेने पहुंचा तो उस पर CRPF ने पीछे से हमला बोल दिया। उसे सुरक्षा बल द्वारा पीटा गया, घसीटा गया और फिर मार डाला गया। 1 अप्रैल को उसके परिवार वालों ने उसकी तलाश शुरू की और पुलिस स्टेशन गए। उसके मारे जाने की खबर उन्हें नहीं दी गई। 3 अप्रैल को उसकी तलाश में यह लोग पुलिस स्टेशन के आस पास जमा हुए तो पुलिस ने कथित मुठभेड़ में मारे जाने की बात उनसे कही। 6 अप्रैल को SP ऑफिस के सामने परिवार और गांव वालों ने इस हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
इस क्षेत्र में धमकुंडवानी और सूरजगढ़ माइनिंग प्रोजेक्ट बढ़ती पुलिस हिंसा के केंद्र बनते हुए प्रतीत हो रहे हैं। 2006-07 जहां खदान प्रस्तावित हुई थी वह स्थानीय समुदाय के विरोध के चलते रोक दी गई थी। अब एक बार फिर से पुलिस और अर्धसैनिक बलों के शिविरों की संख्या बढ़ाई गई है और आस-पास के गांव के लोगों को परेशान किया जा रहा है। पिछले कटु अनुभव के कारण महिलाएं पुलिस हिंसा के डर से जंगल में जाने से डरती हैं क्योंकि पहले उन्हें परेशान किया गया था और सुरक्षा बलों द्वारा रातों-रात उठा लिया गया था। पुलिस द्वारा उठा लिए जाने के डर से पुरुष बाजार जाना बंद कर चुके हैं। कारपोरेशन तथा पुलिस के दबाव के चलते तेंदूपत्ता और बांस खरीदने वाले ठेकेदारों ने यहां आना बंद कर दिया है। गांव वालों की गिरफ्तारी तथा हत्याएं और इन मामलों पर न्यायिक प्रतिक्रिया और कार्यवाही के अभाव लोगों के अंदर डर और गुस्से का भाव पैदा कर रहा है।
महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासियों के लिए धमकुंडवानी पहाड़ी एक पवित्र स्थान है और खनन से उनके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर हिंसक प्रभाव पड़ेगा। गढ़चिरोली जिले की स्थिति को समझने के लिए जांच टीम ने 3 दिनों में कई गांव वालों और सैकड़ों लोगों से मुलाकात की। हमारे सामने यह बात बिल्कुल साफ है कि इस सरकार द्वारा विकास का मापदंड जो निर्धारित किया गया है उसमें लोगों के हितों को नजरअंदाज कर दिया गया है। अपनी जमीनों पर हिंसक तरीके से अधिग्रहण और उनके जीविका के साधनों को छीनते देखकर लोग दृढ़ता से खड़े हो गए हैं और फलस्वरुप बर्बर राजकीय दमन का सामना कर रहे हैं जिसमें लोगों को जान से हाथ धोना पड़ रहा है। जांच टीम सरकार द्वारा मुठभेड़ में की जाने वाली हत्याओं की नीति की भर्त्सना करती है और मांग करती है कि :
- बोरिया-कासनासुर, राजाराम खंडाला, कोयन वरसी और रेखानेर में हुए फर्जी मुठभेड़ों की न्यायिक जांच हो।
- पुलिस क्रूरता के खिलाफ बोलने वाले सिविल सोसाइटी के सदस्यों के ऊपर दर्ज सारे झूठे केस वापस लिए जाएं फर्जी मुठभेड़ों की योजना बनाने वालों तथा पुलिस बल का अंधाधुंध इस्तेमाल करने के लिए जिम्मेदार लोगों पर केस दर्ज किए जाएं।
- इलाके से पुलिस तथा अर्धसैनिक बल हटाए जाएं।
- ग्राम सभा के लिए PESA एक्ट में संशोधन को वापस लिया जाए।
- तेंदूपत्ता और बांस एकत्र करने के काम को बिना किसी बाधा के संचालित होने तथा वाजिब दाम की सरकार को बिक्री के लिए जंगलों को सुरक्षित किया जाए।
कोआर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स आर्गेनाईजेशन (c d r o)
इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपल्स लायर्स ( i a p l)
वूमेन अगेंस्ट स्टेट प्रिपरेशन एंड सेक्सुअल वायलेंस (w s s)
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