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Sunday, April 19, 2020

सुमित की कविता 'विद्रोही मजदूर' को पढ़िए।

हम जा जरूर रहे हैं
पर लौट के भी आएंगे!!
हर बार की तरह
 टुकड़ों में नहीं एक साथ आएंगे।
पर तुम्हारी गुलामी 
के लिए नहीं आएंगे।।
हम आएंगे अपने 
अधिकार के लिए।
अपने आने  वाली पीढ़ियों
 के लिए आएंगे।
और हां..
तुम्हारी दया की भीख नहीं मांगेंगे..
तुम्हारा दिल पसीजने का 
इंतजार नहीं करेंगे।
क्यूंकि वो पत्थर का है..
और पत्थर तो चोट मांगता है।
तो इस बार हम हम मांगने नहीं..
छीनने आएंगे।
गिड़गिड़ाने नहीं ..
लड़ने आएंगे।
और तुम्हें एहसास करा देंगे..
अपनी ताकत का।
हम आएंगे,
अपने लहू और पसीने का 
हिसाब मांगने आएंगे।
अपने बच्चो को कलम थमाने के लिए..
अब हम विद्रोह का झंडा उठायेंगे।
और जब हम आएंगे तब
मजबूर मजदूर नहीं..
विद्रोही मजदूर कहलाएंगे।

         - सुमित ( छात्र,बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी)

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