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Thursday, June 4, 2020

पर्यावरण बचाने की लड़ाई,जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई के बिना अधूरी है!






आज विश्व पर्यावरण दिवस है।

भारत मे पर्यावरण को बचाने की वास्तविक लड़ाई 
यहां के आदिवासी लड़ रहें हैं।

भारत में जल-जंगल-जमीन को बचाने की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लड़ाई लड़ने वाले सभी साथियों को हूल जोहर!
इंक़लाबी सलाम!

दूसरी तरफ भारतीये राज्य लगातार जल-जंगल-जमीन का दोहन कर रही है।

देश दुनिया की नज़र भारत के जंगलों में दबे हुए अकूत संसाधन पर लगी है। जिसको बड़े से बड़े साम्राज्यवादी देश उसको किसी भी कीमत पर लूटना चाहते हैं।

भारतीये सरकार देशी विदेशी कंपनियों को आमंत्रित कर मध्य भारत के गर्भ में जो संसाधनों उसको औने पौने दामों में बेच रही है।

संसाधनों की लूट अनवरत जारी रखने के लिए मध्य भारत मे सेना और अर्धसैनिक बल तक को लगा दिया गया है।

जो सेनाएं देश के बॉर्डर पर होनी चाहिए थी आज उनको अपने ही नागरिकों के खिलाफ़ खड़ा कर दिया गया है।

भारतीये सरकार देश के आदिवासियों के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए है और देश की जनता से इसको छिपा भी रही है।
क्योंकि इसका सीधा फ़ायदा और मुनाफा सरकार और बड़ी बड़ी कंपनियों को जाता है।

आज जो मध्यभारत में संसाधन है उसको आदिवासियों ने हज़ारो सालों से सहेज कर रखा हुआ है। जहां उसके पूर्वज बाहरी लुटेरों से हमेशा इसकी रक्षा करते आये हैं और आज भी कर रहे हैं।

जिसमे बिरसा मुंडा,सिद्धू-कानू, गुंडाधुर, तिलका मांझी आदि का नाम सर्वोपरि है।

पर्यावरण बचाने की लड़ाई बिना जल-जंगल-जमीन को को बचाने की लड़ाई लड़े बिना मुक़म्मल नहीं हो सकती है।

और इस लड़ाई को सबसे बड़े स्तर पर लड़ने वाले मध्य भारत के आदिवासी ही हैं।


इसलिए इन पर्यवरण से अथाह प्रेम करने वाले आदिवासियों के लिए आवाज़ उठाने वाले और उनके अधिकारों के लिए लड़ने वालों बुद्धिजीवियो और कार्यकर्ताओं को जेलों में डाला जा रहा है ताकि कोई भी आदिवासियों की लड़ाई को समर्थन न करे और संसाधनों की लूट जारी रहे।

इसलिए आज हम सभी जो सच्चे अर्थों में पर्यवारण से प्रेम करते और इस धरती को हरा-भरा देखना चाहते हैं। उनको चाहिए कि वो इन जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई के साथ खड़े हों।

हूल जोहर!!
जल-जंगल- जमीन कि लड़ाई ज़िन्दाबाद!!



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