Powered By Blogger

Sunday, June 7, 2020

कविता:- मत छुओ मुझे


मत छुओ मुझे,
क्योंकि नफरत है मुझे तुम्हारे "पुरूषत्व" से,
वो पुरूषत्व जो तुम्हें हर बार इंसान बनने से रोक देता है,
और जिसने तुम्हारी बुद्धि पर भी अपना आधिपत्य पा लिया है,

मत छुओ मुझे,
क्योंकि गंदी है तुम्हारी आत्मा और अपवित्र है तुम्हारा देह,
वही देह जिसकी लालसा के लिए हर रोज़ न जाने कितनी औरतों का गला घोंट देते हो,

मत छुओ मुझे,
क्योंकि जब भी मैं तुम्हारी आँखों में देखती हूँ तो हर वो स्त्री का चेहरा नज़र आता है,
जिसे हर रोज न जाने तुम जैसे कितनो का सामना करना पड़ता है,

मत छुओ मुझे,
क्योंकि खोट सिर्फ तुम्हारी निगाहों में ही नहीं बल्कि तुम्हारी जुबान में भी है,
वही जुबान जिसने न किसी नवजात बच्ची को छोड़ा और न ही किसी बूढ़ी औरत को,

मत छुओ मुझे,
क्योंकि नहीं रही मैं तुम्हारी पत्नी,न बहन,न माँ और न ही कोई प्रेमिका,
तोड़ दिया है मैने वो तमाम बन्धन जिसकी नसीहत देकर तुम मुझे हर बार बांध देते थे मोह,मर्यादा तथा रिश्तों के जाल में,
अब मैं आज़ाद हूँ,
हाँ मैं आज़ाद हूँ।



- आकांक्षा कौशिक
  (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं और सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ता हैं)

No comments: