पिछले दिनों मुझे " बरगद बाबा" पुस्तक पढ़ने का मौका मिला जो की प्रदीप द्वारा रचित एक रोचक पुस्तक है जिसमे "मानव के विकास की गाथा " के बारे में जानकारी है। इस पुस्तक में मानव के विकास क्रम को उल्लेखित किया गया है कि किस प्रकार मानव वनमानुष से मनुष्य बना और आगे विकसित हुआ। मनुष्य का विकास आदिम साम्यवाद से दास प्रथा में हुआ, उसके बाद सामंतवाद फिर पूंजीवाद और समाजवाद में हुआ। इसी के साथ संघर्ष के बाद साम्यवादी समाज के स्थापना होने की भी बात कही गई है।
इस में बताया गया है की सामूहिक होना मनुष्य का मुख्य गुण है। समूह में शिकार करना , अन्न उपजाना ,भोजन करना आदि उनका मुख्य कार्य जो की आदिम साम्यवाद के समय हुआ करता था। आदिम साम्यवाद में सभी की बराबरी की हिस्सेदारी थी जहां एक के ऊपर दूसरो का शोषण नही था।
इस पुस्तक में उत्पादन के शक्तियों के बारे में भी बहुत ही अच्छे ढंग से बताया गया है। समय के साथ विज्ञान में विकास होता है जिसके चलते औजार में भी विकास होता है।किस प्रकार से लोग पशुपालन का शुरूआत करते हैं और अन्न का उत्पादन करना प्रारंभ करते हैं उसके बारे में भी बताया गया है।
हमारा समाज महिला प्रधान से पितृसत्तात्मक के तरफ कब और कैसे बढ़ता है उसकी जानकारी भी हम पा सकते हैं।
अतिरिक्त उत्पादन के चलते अब बहुत सारे लोग अब उस उत्पादन पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं और इस प्रकार दास प्रथा का शुरूआत हो जाता है।
दास प्रथा के समय दासों की हालत बहुत ही दयनीय स्थिति में रहती है। दासों की जिदंगी जानवरो से भी ज्यादा खराब रहता है। मनुष्यों की खरीद बिक्री होती हैं। दसों को परिवार रखने तक का अधिकार भी नहीं रहता है।
इस पुस्तक में भारत में दास प्रथा के बारे में भी बताया गया है की भारत में दास प्रथा का रूप जाति व्यवस्था के तरह है।
आर्यनो के आक्रमण के पश्चात भारत के मूल निवासी पर शोषण शुरू किया जाता है ।लेकिन इसे दास प्रथा के रूप में नहीं किया जाता है। वर्ण व्यवस्था जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य, शुद्र आदि में शुद्र को अनार्य कहा जाता है और उनके साथ जानवरो के समान बर्ताव किया जाता है।
छुआछूत,शिक्षा से वंचित,संपति से वंचित, मारपीट आदि जैसा व्यवहार शुद्र के साथ किया जाता है।
धीरे धीरे दासों का कार्य के प्रति उदासीनता होना शुरू हो जाता है और दास मालिक के विरुद्ध दास बगावत कर देते हैं। दास मालिको को हटाकर कुछ मजबूत लोग जमीन दासों को लगान के रूप में दे देते हैं और इस तरह सामंतवाद का स्थापना हो जाता है जो लगभग हजार साल तक चलता है।
सामंती व्यवस्था में भले ही भूदास मालिक के निजी संपति नहीं होते हैं लेकिन भू दासों की अवस्था भी बहुत ही दयनीय होता है। भूदासो को अधिक मात्रा में लगान देना पड़ता था। बेगाड़ के रूप में भी काम करना पड़ता था।
भारत में तो इस समय छुआछूत को और मजबूती से स्थापित किया जाता है। महिलाओ की स्थिति और भी अधिक दयनीय था। इन सभी चीजों से तंग आकर आम जनता राजाओं के खिलाफ़ आक्रोशित होकर विद्रोह कर देते है और उन्हें सत्ता से उखाड़ फेकते है।इसका उदाहरण इंग्लैंड के गौरवपूर्ण क्रांति तथा फ्रांसिसी क्रांति में भी देख सकते हैं। यही से समानता , स्वतंत्रता और बंधुत्व की विचार आती हैं और पूंजीवाद व्यवस्था का विकास होने लगता है।
पूंजीवाद के विकास में यूरोप सबसे आगे निकल जाता है क्योंकि वे लोग अफ्रीका, एशिया और अमेरिका को लूटना शुरू कर देते हैं।
अफ्रीका से दासों को ले जाकर यूरोप में काम कराना ,अमेरिका से प्राकृतिक संसाधनों को लूटना , एशिया में आकर अपना औपनिवेश स्थापित करना आदि और पूंजीवाद को बढ़ावा देना। औधोगिक क्रांति के पश्चात किस प्रकार मजदूर वर्ग के लोगों की हालत जानवरो से भी खराब हो जाता है। दिन में 15 घंटे काम करना , न्यूनतम मजदूरी पाना, स्वास्थ व्यव्स्था और सौचालय का कोई व्यव्स्था न होना आदि जैसे बातो को भी पुस्तक में अच्छे से बताया गया है।
इसके विरोध में मेहनतकश जनता बहुत सारे जगहों पर एकजुट होकर सत्ता उखाड़ फेंकने में भी कामयाब हुए हैं।
उन देशों में जनता का सरकार बन जाता है जैसे रूस, चीन, क्यूबा, नॉर्थ कोरिया, वियतनाम, लाओस आदि। परंतु जो आशाएं इन देशों के रहती है उस पर खड़े नही उतरते हैं और ये सब देश भी पूंजीवादी या साम्राज्यवादी बनकर रह जाती है। जिन लोगो को इस देशों से उम्मीद रहती है मानो उनकी सपना ही टूट गया हो।इन सारे बातो की चर्चा इस पुस्तक में बहुत ही अच्छे ढंग से बताया है।
उत्पादन के शक्तियों और उत्पादन के संबंध में टकराहट होने के चलते अब समाज साम्यवाद के तरफ बढ़ने के स्थिति में है बस इसके लिए जरुरी है जन संघर्ष की।
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