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Friday, July 17, 2020

कब डरता है दुश्मन कवि से?




मिल मजदूर, कवि और राजनीतिक सक्रियतावादी दक्षिण अफ्रीकी बेंजामिन मोलायस को पुलिस की हत्या के आरोप में दक्षिण अफ्रीका के छठे राष्ट्रपति अंतर्राष्ट्रीय साम्यवाद के मुखर विरोधी पी डब्ल्यू बोथा की सरकार ने 18 अक्टूबर 1985 की सुबह प्रीटोरिया सेंट्रल जेल में फांसी दे दी। उस समय सोवियत संघ, यूरोपीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और कॉमनवेल्थ के 49 राष्ट्रों ने बेंजामिन मोलायस को जीवन दान देने की अपील की जिसे वहां की सरकार ने अनसुनी की। इस फांसी का विरोध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुआ। दक्षिण अफ्रीका में सड़कों पर लड़ाई हुई। ‘पहल’ पत्रिका का जनवरी 1986 का अंक बेंजामिन मोलायस को समर्पित था। फांसी दिए जाने के मात्र 5 दिन बाद 23 अक्टूबर 1985 को तेलुगु के महान क्रांतिकारी कवि वरवर राव ने बेंजामिन की याद में ‘कवि’ शीर्षक से कविता लिखी ‘कब डरता है दुश्मन कवि से/जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं/वह कैद कर लेता है कवि को/फांसी पर चढ़ाता है/फांसी के तख्ते के एक और होती है सरकार/दूसरी ओर अमरता/कवि जीता है अपने गीतों में/और गीत जीता है जनता के हृदय में’।
इस समय वरवर राव तेलुगू और भारत के ही नहीं विश्व के भी सबसे बड़े क्रांतिकारी कवि हैं। भारत का शायद ही कोई कवि होगा जिसने उनका नाम ना सुना हो। कवि, आलोचक, अनुवादक, पत्रकार और सबको सम्मोहित कर देने वाले वक्ता वरवर राव पर पिछले 45 वर्षों में सभी रंग की सरकारों ने उन पर झूठे मुकदमे दायर किए। उन्हें 8 वर्ष तक जेल में रहना पड़ा है। उनका जीवन एक साथ ‘साहस गाथा’ और ‘संघर्ष गाथा’ है। भारतीय कविता में ‘अभिव्यक्ति के खतरे’ सबसे अधिक वरवर राव ने ही उठाया है। उन्होंने कभी कविता को लेकर सरकार को गिरफ्तार करने को नहीं कहा पर सरकारों ने उन्हें गिरफ्तार किया और खतरनाक माना। छात्र जीवन में ही उन्होंने मद्रास जाकर प्रसिद्ध तेलुगु लेखक चलम और क्रांतिकारी कवि श्री श्री से भेंट की थी। उनके लिए श्री श्री की कविता ‘मां की तरह जन्म देने वाली है’। उन्होंने तेलुगु साहित्य में एम ए किया और केवल पीएचडी की उपाधि के लिए ‘लोक संस्कृति’ और ‘तेलंगाना मुक्तिसंग्राम’ पर शोध कार्य नहीं किया, बल्कि उन्होंने कई पौराणिक कथाओं का संपादन किया। 15 कविता संग्रह, आलोचना की कई किताबें है,ं पर वे केवल कवि लेखक नहीं है।ं क्रिस्टोफर काॅडवेल की तरह वे कला को ‘समाज का उत्पाद’ मानते हैं। संस्कृति उनके लिए उत्पादन में भागीदारी की अभिव्यक्ति है। जन उनके लिए कभी अमूर्त शब्द नहीं रहा है। जन आंदोलन उनकी दृष्टि में वर्ग संघर्ष के विभिन्न प्राकृतिक रूप हैं और लेखक इस संघर्ष का हिस्सा है। संघर्ष उनके लिए वर्गीय समाज में आवश्यक है। कवि उनके लिए ‘विश्व का प्रथम नागरिक’ ही नहीं, संसार का ‘गैर मान्यता प्राप्त विधि निर्माता’ भी है। 50 वर्ष से अधिक का उनका जीवन संघर्ष हमारे समय का सर्वोत्तम उदाहरण है। कला-साहित्य की उनकी दृष्टि वर्गीय है। उन्होंने लेखक द्वारा जन आंदोलन रचने की बात कही है। सरकार किसी भी दल की रही हो, वे गिरफ्तार किए जाते रहे हैं और जेल भेजे गए। सिकंदराबाद षड्यंत्र केस में उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाला गया। आपातकाल में ‘मीसा’ में ढाई वर्ष तक जेल में रहे। 30 मुकदमें दायर किए गए और सब में वे बरी किए गए। जेल में लिखी उनकी कविताओं के संग्रह ‘भविष्य चित्रपटम’ पर सरकार ने पाबंदी लगाई थी और आंध्र प्रदेश की तेदेपा की सरकार ने इन्हें नक्सलवादी नेताओं से शांति वार्ता में मध्यस्थ भी बनाया था। आंध्र प्रदेश में नक्सलवाद का लंबे समय तक प्रभाव था। नक्सलबाड़ी आंदोलन ने श्रीकाकुलम के आदिवासी किसानों में विद्रोह और संघर्ष पैदा किया था। 80 वर्ष के इस समर्पित, प्रतिबद्ध, मुक्तिकामी, परिवर्तनकामी क्रांतिकारी कवि का अग्नि-ताप कभी कम नहीं हुआ। वरवर राव का कोई उदाहरण नहीं है। 20 वर्ष की आजादी और संसदीय राजनीति के बाद नक्सलबाड़ी आंदोलन ने संसदीय राजनीति से एक सर्वथा अलग राह दिखाई थी जिसने भारतीय साहित्य और कविता के एक बड़े हिस्से में गुणात्मक परिवर्तन ला दिया। वरवर राव ने भारतीय समाज और राजनीति का बार-बार वास्तविक चेहरा दिखाया। अपने वक्तव्यों, भाषणों और रचनाओं में ‘जीवन सत्य’ को उन्होंने ‘निरंतर संघर्ष’ से जोड़ा। ‘कसाई का बयान’ कविता में एक कसाई असली कसाई से हमें परिचित कराता है। वरवर राव अग्नि में शब्दों को झोंक देने वाले कवि हैं। अपनी एक कविता में उन्होंने आजीवन संघर्षरत रहने की बात कही है और छात्र जीवन से अब तक सदैव संघर्षरत रहे हैं। ‘भूमंडलीकरण व एकरूपीकारण’ के साम्राज्यवादी प्रयासों का पिछले 30 वर्ष से उन्होंने डटकर विरोध किया है ‘मत हिचको/ओ शब्दों के जादूगर/जो जैसा है, वैसा कह दो/ताकि वह दिल को छू ले’। उन्होंने अपने आत्मवक्तव्य में माक्र्स, लेनिन, माओ, काॅडवेल, टाॅलस्टाय, दास्तोवस्की, गोर्की, लू शुन, कबीर, प्रेमचंद, चलम, वोपन्ना, वीरेश लिंगम पुतुल, अप्पा राव, रॉल फाॅक्स, लोर्का, स्टीफन स्पेंडर, एडवर्ड गोलिआनो, चिनुआ अचेबे....... सबको केवल याद ही नहीं किया, आज के समय में उनके महत्व को समझा है। यह मात्र नाम उल्लेख नहीं है। वरवर राव की कविताएं अन्य भारती में अनूदित हो चुकी हैं।
वरवर राव की गिरफ्तारी के पीछे सत्ता और व्यवस्था का उनकी रचनाओं से खौफ खाना है ‘वह डर रहा है सपनों से/कलम की नोक से डर रहा है/उसने स्वतंत्रता को जकड़ा है जंजीरों में/अब हथकड़ी के हिलने-डुलने पर/जंजीरों की झंकार से/वह डर रहा है’। वरवर राव को नवंबर 2018 में पुनः गिरफ्तार किया गया। एल्गार परिषद के माओवादी संबंध के आधार पर उनके साथ 10 अन्य सक्रियतावादियों को गिरफ्तार किया गया। भीमा कोरेगांव मुकदमे के तहत 18 महीने न्यायिक हिरासत में रखे जाने के बाद भी उनके विरुद्ध कोई आरोप, अभियोग दायर नहीं किया गया है। इन पंक्तियों के लेखक ने इसी अखबार के अपने दो स्तम्भ में ‘भीमा कोरेगांव से निकले कई सवाल’, 13 अगस्त 2018 और ‘ये गिरफ्तारियां अभिव्यक्ति पर आक्रमण है’, 31 अगस्त 2018 में लिखा था कि भीमा कोरेगांव के पहली जनवरी 2018 के आयोजन के विरोध में मिलिंद एकबोटे ने पंफ्लेट वितरित किए थे और पुलिस महानिरीक्षक विश्वास नांगरे पाटील की रिपोर्ट का उल्लेख किया था कि ‘भीमा कोरेगांव घटना, जातीय हिंसा में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के प्रमुख संभाजी भिंडे और समस्ता हिंदू अगाड़ी के अध्यक्ष मिलिंद एकबोटे की भूमिका थी’। इन दोनों पर क्या कार्रवाई हुई? वरवर राव पर पिछले कई दशकों में 20 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हुए पर एक मुकदमा भी सही साबित नहीं हो सका। अगस्त 2018 से वरवर राव ट्रायल की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भीमा कोरेगांव केस में गिरफ्तार किए गए। वे नवी मुंबई के तलोजा जेल में हैं। 26 जून को उनका स्वास्थ्य खराब हुआ था और 2 दिन बाद उन्हें जे जे अस्पताल मुंबई में भर्ती किया गया। तलोजा जेल के अस्पताल वार्ड में भर्ती हुए थे पर वहां स्वास्थ संबंधी सुविधाएं कम थी। पिछले महीने जून में विश्व के 98 बुद्धिजीवियों ने जिनमें नोआम चोम्स्की, पार्थ चटर्जी, होमी के भाभा, न्यूगी वा थ्योंगो, फ्रेडरिक आर जेमसन आदि हैं, कोविड-19 के समय में वरवर राव और साईं बाबा की रिहाई के लिए भारत के राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिहाई की मांग की। साईं बाबा लगभग 90 प्रतिशत विकलांग या पंगु हैं। इन बुद्धिजीवियों ने अपने पत्र में यह लिखा कि 28 मई को वरवर राव जेल में मूर्छित हो गए थे। उन्हें जे जे अस्पताल में भर्ती किया गया था, पर उन्हें पुनः जेल भेज दिया गया। वहां केवल आरंभिक जांच हुई। उनके पारिवारिक सदस्यों को न तो उनसे मिलने दिया गया, ना फोन से बात कराई गई। वरवर राव की पत्नी हेमलता ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए के कोर्ट में जमानत पर उन्हें रिहा किए जाने के लिए अर्जी दी। कोर्ट ने इसे अस्वीकृत किया। बुद्धिजीवी हस्ताक्षरकर्ताओं ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का अपने पत्र में उल्लेख किया है, जो कैदी सहित सभी नागरिक के जीने की गारंटी प्रदान करता है। बुद्धिजीवियों ने उनके जीवन पर ‘संभावित खतरा’ देखा। अनेक अंतरराष्ट्रीय विद्वानो,ं प्रशंसित संस्थाओं जिनमें ‘पेन’ इंटरनेशनल भी है, उन्हें रिहा करने की मांग की है। महाराष्ट्र में कोरोना वायरस सर्वाधिक है। महाराष्ट्र सरकार ने स्वीकार किया है कि तलोजा जेल में कोविड-19 से एक की मृत्यु हुई है। 9 मई 2014 को साईं बाबा अपहृत या गिरफ्तार हुए थे। इनका भी माओवादियों से संबंध बताया गया जो एक प्रतिबंधित पार्टी है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने साईं बाबा पर लगाए गए आरोपों को ‘गढ़ा हुआ’ कहा है और उनके अनुसार उनकी जांच अंतरराष्ट्रीय निष्पक्ष जांच मानकों पर नहीं है। वरवर राव को रिहा करने अथवा जमानत देने की मांग पिछले एक सप्ताह से, विशेषतः उनकी पत्नी और पावना की ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद अधिक जोर पकड़ चुकी है। अब वे जे जे अस्पताल मुंबई में भर्ती हैं और यह आशा एवं कामना की जा रही है कि उनका शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होगा।
सही चिकित्सा सेवा-सुविधा का अधिकार सबको है। 12 जुलाई को ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राज्य सरकार से वरवर राव को यथाशीघ्र चिकित्सा उपचार प्रदान करने का अनुरोध किया गया था। भारत भर से लगभग 2000 बुद्धिजीवियों और अनेक सामाजिक संगठन राव के समर्थन में आगे आए। उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर सबकी चिंता स्वाभाविक थी। उनके भतीजे और लेखक एन वेणुगोपाल राव ने उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर केवल चिंता ही प्रकट नहीं की, यह मांग भी की कि उन्हें जेल में मत मारो। जहां तक जेल का सवाल है, वहां कैदियों की संख्या निश्चित संख्या से कहीं अधिक है। तलोजा जेल में कुल 2124 कैदियों को रखने की क्षमता है, पर वहां कैदियों की संख्या तीन हजार के करीब है। वहां कोरोना वायरस के फैलने की अधिक संभावना है। अप्रैल के आरंभ से ही संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने जेल खाने में निर्धारित कैदियों की संख्या से अधिक संख्या होने के कारण इस वायरस के फैलाव की ओर ध्यान दिलाया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह भी कहा था कि ऐसी स्थिति में राजनैतिक कैदियों और विरोधियों को छोड़ा जाए। 2017 में भारत के जेलों में बंद कैदियों में से 68.5 प्रतिशत परीक्षण के तहत अर्थात अंडर ट्रायल थे। बाद के वर्षों में भी स्थिति बेहतर नहीं हुई है। कुछ वर्षों से सरकारी नियमों और नीतियों के विरुद्ध विरोधियों की संख्या बढ़ती गई है जिनमें एक साथ छात्र, शिक्षक, वकील, पत्रकार, कवि, लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता और उपेक्षित-वंचितों के पक्ष में आवाज उठाने वाले सब है।ं ये सब जेलों में बंद हैं जिनके स्वास्थ की गारंटी सरकार नहीं दे सकती। कोविड-19 के दौर में विचाराधीन कैदियों की रिहाई की मांग बार-बार की गई है। ‘सुरक्षात्मक उपाय’ का संबंध केवल चिकित्सा सुविधा से ही नहीं है। कैदियों के मामले में इसका संबंध न्याय प्रक्रिया से भी है। न्यायालय न्याय देने के लिए है ना कि ‘दया’ और ‘सहानुभूति’ प्रदान करने के लिए। कोविड-19 के समय में इसका संबंध सरकार की जन स्वास्थ संबंधी चिंताओं से भी है। वरवर राव अस्पताल में हैं पर मुख्य सवाल यह है कि उन्हें जमानत मिलेगी या नहीं? वे जेल से बाहर आएंगे या नहीं? सरकार के पास उनके खिलाफ पक्का-पर्याप्त सबूत नहीं है। कोर्ट ने हमेशा ‘जमानत’ को नियम और जेल को अपवाद माना है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार किसी भी अवैध या गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना किसी भी व्यक्ति का अपराधी प्रमाणित करने के लिए काफी नहीं है। दुनिया के बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति और मुख्य न्यायाधीश को अपने पत्र में संविधान का हवाला दिया है। बड़ा प्रश्न यह है कि भारत में ‘लिबरल डेमोक्रेसी’ संकट में है। सरकार को स्वतंत्र भाषणों का, मौलिक अधिकारों का, लोकतंत्र और भारतीय संविधान का सदैव आदर करना चाहिए। वरवर राव और अन्य कैदियों के स्वास्थ्य से व्यापक अर्थ में भारतीय लोकतंत्र का स्वास्थ्य जुड़ा है। हमें एक साथ नागरिकों के स्वास्थ्य और लोकतंत्र के स्वास्थ्य की चिंता करनी होगी। स्वस्थ और शक्तिशाली भारत के लिए यह आवश्यक है।

-रविभूषण

मो - 9431103960
आज के जनसंदेश टाइम्स में 


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