1939 में डाॅ. अम्बेडकर ने ‘देश’ और अछूत जातियों के बीच के शत्रुवत अन्तरविरोधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘‘जब भी अछूत जातियों और देश के हितों के बीच किसी भी तरह का टकराव होगा तो जहां तक मेरा सम्बन्ध है मैं ऐसी स्थिति में अछूतों के हितों को देश के हितों पर वरीयता दूंगा।’’
यह बयान ना सिर्फ डाॅ. अम्बेडकर को समझने का सूत्र मुहैया कराता है बल्कि दलित आन्दोलन को भी समझने में मददगार है। लेकिन आज हम अम्बेडकर के उस बयान को आगे बढ़ाकर यदि यह कहे कि आज ना सिर्फ अछूत जातियों बल्कि भारत की तमाम शोषित-उत्पीडि़त जनता का हित उसके ‘देश’ या अधिक सटीक रुप से कहे तो उसके ‘राष्ट्र’ के हितों से टकराव की स्थिति में है (मार्क्सवाद की भाषा में कहें तो दुश्मनाना अन्तरविरोध की स्थिति में) तो यह गलत नही होगा। आज दलित आन्दोलन और वाम की संभावित एकता का आधार भी यही है। भारत की ब्राहमणवादी-दक्षिणपंथी और प्रतिक्रियावादी ताकते जिस देश और राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है उस देश और राष्ट्र को सबसे बड़ा खतरा इसी एकता से है, जिसे ‘अरुंधति राय’ ने अपने एक भाषण में खूबसूरत तरीके से कहा-”आज दक्षिणपंथी ताकतों को सबसे बड़ा खतरा ‘नीले गगन में लाल सितारे’ से है।”
#मनीष आज़ाद
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