राज्यसत्ता एक ऐसी चीज है जिसके जरिए शासक वर्ग अपनी इच्छा को बाकि जनता पर लादता है । आदिम समाज में राजसत्ता नहीं थी परंतु मानव समाज वर्गों में बट गया तो वर्गों के हितों में टक्कर होने लगी और इस कारण जिस वर्ग को ज्यादा अधिकार मिले हुए थे उसके लिए बिना किसी सशस्त्र शक्ति के अपने विषय से विशेष अधिकारों की रक्षा करना असंभव हो गया या आवश्यक था कि सशस्त्र शक्ति इस वर्ग के नियंत्रण में रहे ताकि वह उसके हितों की रक्षा कर सकें। एंगेल्स ने लिखा है - इस प्रकार की सार्वजनिक शक्ति प्रत्येक राज्य में होती है इसमें न केवल हथियारबंद आदमी होते हैं बल्कि तरह तरह साजो सामान, जेल खाने और दमन करने की दूसरी संस्थाएं भी शामिल होती है।
इस सार्वजनिक शक्ति का उद्देश्य सदा यह होता है कि वह वर्तमान व्यवस्था को कायम रखें। इसका मतलब यह है कि मौजूदा वर्ग-भेद और वर्ग अधिकारों को कायम रखा जाए। परंतु ऊपर से सदा या दिखाने की कोशिश की जाती है कि यह एक निष्पक्ष संस्था है जिसका स्थान समाज से ऊपर है और जिसका एकमात्र उद्देश्य कानून और व्यवस्था की रक्षा करना है । परंतु कानून और व्यवस्था को कायम रखने का मतलब वास्तव में वर्तमान व्यवस्था (भारत मे जाती आधारित और धर्म आधारित व्यस्था आदि) को कायम रखना होता है। समाज को बदलने की यदि जरा भी कोशिश होती है तो यह शक्ति (राज्यव्यस्था ) फौरन उस पर टूट पड़ती है । अपने रोजमर्रा के कामों में जैसे राजद्रोही( वर्तमान व्यवस्था को बदले वाले लोग) लोगों को गिरफ्तार करते समय या फिर आज राज्यद्रोही साहित्य को रोकते समय सरकारी मशीन ऐसे उपायों से काम लेती है जो ऊपर से देखने में शांति कायम करने वाली लगती है,परंतु जब आंदोलन फैल जाता है और ज्यादा जोर पकड़ लेता है तब पुलिस और आवश्यकता हुई तो फौज भी खुलेआम ताकत का इस्तेमाल करती है। बल प्रयोग करने वाली यही मशीन जो शासक वर्ग के हितों में काम आती है वास्तव में राजसत्ता के मुख्य और सबसे आवश्यक विशेषता है।
-मार्क्सवाद क्या है? पुस्तक से (एमिल बर्न्स )
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