चिरस्मरणीय को एक उपन्यास या कहानी भी कह सकते हैं। यह कहानी केरल राज्य के एक गाँव कय्यूर की है। इसकी पृष्ठभूमि 1947 के पहले की है,जब देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था और पूरे में आज़ादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। आज़ादी की लड़ाई में कई तरह की धारा थी, सभी धारा अपने- अपने तरह की आज़ादी और नए भारत के निर्माण के लिए लड़ रहे थे। कैय्यूर की लड़ाई भी इसी का एक हिस्सा है,जो कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों की धारा से जुड़ती है। कैय्यूर की कहानी किसानों के न्यायोचित संघर्ष की कहानी है कि कैसे वहां के किसान संगठित हुए और आज की तरह इतना पढ़े लिखे न होने बावजूद भी उसको कैसे संगठित किया गया। आज देश के जो छात्र-छात्राएं व नौवयुवक व नवयुवतियां सामजिक परिवर्तन की लड़ाई का हिस्सा है या ईमानदारी से भारत की तस्वीर को बदलना चाहते है उनके लिए यह उपन्यास काफ़ी महत्वपूर्ण है। इसमे हम पाते हैं कि कैसे सिफ़र (शून्य)से कहीं भी कोई भी संगठन या आन्दोलन शुरू किया जा सकता है। देश दुनिया मे जितने भी क्रांतिकारी आन्दोलन हुए और संगठन बने या बन रहे हैं उसकी शुरुआत कैसे हुई होगी। इसमें उसकी एक ब्लू प्रिंट भी मिलेगी आपको। यह उपन्यास आपको बहुत ही आत्मविश्वास से भर देगा जिसके फलस्वरूप आप अगर ठीक ठाक रजनीतिक समझ रखते हैं तो आप भी इस तरह के संगठन खड़े कर सकते हैं।
इस गाँव मे दो लड़के(अप्पू और चिरुकण्डन) हैं जिनकी उम्र 14-15 साल है।ये दोनों आपस मे अच्छे दोस्त है और गाँव के स्कूल में पढ़ने जाते हैं। स्कूल का एक मास्टर है जो इस गाँव के बाहर का है। यह मास्टर गाँव के बच्चो को तो पढ़ाता ही है, साथ में अधेड़ और बुजुर्गों को भी अखबार पढ़कर प्रतिदिन सुनाता है। यह मास्टर गाँव मे सिर्फ़ पढ़ाने नहीं आया है बल्कि किसानों को संगठित करने और उनका एक संगठन बनाने आया है। अप्पू और चिरुकण्डन काफ़ी साहसी और समझदार नौजवान है,और दोनों मास्टर जी के प्रिय छात्र है। ये दोनों अपने गाँव मे किसान संगठन बना लेते हैं और जमींदारों के खिलाफ़ लड़ाई भी शुरू भी कर देते हैं। अपने गाँव मे अंग्रेज़ो से आज़ादी के बीज भी बो देते हैं। पूरा गांव एकजुट हो जाता है और राजनीतिक चेतना से लैस हो जाता है। कई वर्षों की मेहनत रंग लाती है और एक संघर्ष की शुरुआत होती है।
अंत में अंग्रेज़ी सरकार को इस संगठन का पता चलता है और इसके दमन के लिए वो गाँव मे सेना भेज देती है। इस संगठन के दमन के उद्देश से अप्पू और चिरुकण्डन समेत 4 नौजवानों को फाँसी दे दी जाती है। लेक़िन जुर्म और शोषण के खिलाफ़ जो बीज कैय्यूर के किसानों में बोए गए थे वो ज़िंदा रहता और ये चारों इंक़लाब ज़िन्दाबाद नारे लागाते हुए भगतसिंह की तरह फाँसी के फंदे से झूल जाते हैं।
#अनुपम
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