भारतीय परिवार भारतीय राजव्यवस्था का प्राथमिक अंग है। समाज में व्याप्त कुरूतियों को परिवार सबसे पहले घर में लागू करवाता है तथा अगर आप इसका विरोध करते हैं तो आपको प्रतिदिन मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है।
परिवार नामक संस्था में जहाँ स्त्री-पुरूष की अभेदता
का प्रतिपादन किया गया है वहाँ पूरे संस्थान को तथाकथित धर्म की मर्यादाओं में बाँधकर उसे अनुशासित रहने को कहा जाता है (यहाँ अनुशासित रहने से आशय धर्म की मर्यादाओं के अंतर्गत रहना है)
भारत के अर्द्धसामंती समाज में तथा सामन्तों के गाँव में आप अपने जीवनसाथी चुनने का निर्णय भी नहीं ले सकते ये भी परिवार या नातेदारी ही तय करेगी या फिर तथाकथित धर्म,संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदारी लिए बैठे घर के बड़े-बुजुर्ग तय करेंगे कि आपका विवाह किससे होगा और अगर आप कड़े शब्दों में इसका प्रतिरोध करते हैं तो इन धर्मान्धों में किसी का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है तो कोई हॉस्पिटल पहुँच जाता है। अगर आप युवा हैं और आप समाजिक कुरूतियों का कड़ा प्रतिरोध करते हैं तो आप यकीन मानिये ये समाज आपको अकर्मण्य और अचेतन बनाने की पुरजोर कोशिश करेगा।
अंत में अदम गोण्डवी के कविता की दो पंक्तियां -
"जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए"
-शशांक ( परास्नातक छात्र,बीएचयू)
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